उत्तराखंड में घोस्ट विलेज अब बनेंगे होस्ट विलेज, पर्यटकों को ऐसे करेंगे आकर्षित
अब प्रदेश सरकार घोस्ट विलेज को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करने की तैयारी कर रही है। मकसद पर्यटकों को गांवों की ओर आकर्षित करना है।
देहरादून, [विकास गुसाई]: प्रदेश में पलायन के कारण खाली हो चुके घोस्ट विलेज (निर्जन गांव) को अब प्रदेश सरकार पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करने की तैयारी कर रही है। मकसद यह कि पौराणिक और एतिहासिक गाथाएं संजोए गांवों की ओर पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके। इनका इस्तेमाल न केवल फिल्म निर्माण के कार्यो में हो सकता है बल्कि यहां होम स्टे आदि विकसित कर स्थानीय परंपराओं को भी देश दुनिया के सामने लाया जा सकता है।
पर्यटन विभाग द्वारा ऐसे गांवों को चिह्नित किया जा रहा है, ताकि निवेशकों के सहयोग से इन्हें विकसित किया जा सके। उत्तराखंड का अपना पौराणिक और एतिहासिक महत्व है। चारधाम समेत तमाम तीर्थ स्थल सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र रहे हैं। यहां के तमाम गांव ऐसे हैं तो पुराने जमाने में व्यापार का केंद्र रहे हैं। गढ़वाल व कुमाऊं की राजशाही के गवाह रहे कई गांव आज भी बने हुए हैं। यह बात अलग है कि अब ये गांव खाली होते जा रहे हैं।
दरअसल, प्रदेश में इस समय तेजी से पलायन हो रहा है। शिक्षा, रोजगार व बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ग्रामीण इलाके तेजी से खाली होते जा रहे हैं। मौजूदा समय में स्थिति यह है कि प्रदेश में 1702 घोस्ट विलेज हैं। इन गांवों से पूरी तरह पलायन हो चुका है। खाली हो चुके ये गांव अब रखरखाव के अभाव में जर्जर होते जा रहे हैं। सरकार का फोकस इस समय पलायन रोकने के साथ ही रिवर्स पलायन को मजबूती देना भी है। इसके लिए सरकार इन गांवों को होस्ट विलेज यानी मेजबान गांव का रूप देना चाह रही है।
दरअसल, पर्यटन विभाग को यह विचार विदेशों में इस तरह की पहल को देख कर आया है। इटली में कई पुराने गांवों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। यहां अब प्रतिवर्ष विश्वभर से बड़ी संख्या में यात्री घूमने के लिए आते हैं। इसी तर्ज पर पर्यटन विभाग ने प्रदेश के ऐसे कुछ गांवों को चिह्नित करना शुरू किया है। इनमें अभी तक उत्तरकाशी की नेलांग घाटी का जादूंग गांव हैं। यह गांव 1962 के युद्ध में खाली करा दिए गए थे।
यहां से जाने के बावजूद ग्रामीण हर वर्ष यहां अपने देवताओं की पूजा करने आते हैं। इसी तरह उत्तराखंड में महाभारत काल के दौरान पांडवों की गाथाओं को संजोने वाले गांव भी हैं। अब इन्हें भी चिह्नित किया जा रहा है। सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर ने कहा कि प्रदेश में निर्जन हो चुके गांवों को पर्यटन क्षेत्रों के रूप में विकसित किया जा सकता है। ऐसे गांवों को चिह्नित करने के साथ ही इसके लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार की जा रही है।
उत्तराखंड में निर्जन हो चुके गांव
जिला------------संख्या
पौड़ी-----------------517
अल्मोड़ा------------162
बागेश्वर------------150
टिहरी---------------146
हरिद्वार------------132
चंपावत-------------119
चमोली-------------117
पिथौरागढ़-----------98
टिहरी---------------93
उत्तरकाशी----------83
नैनीताल-----------66
ऊधमसिंहनगर----33
देहरादून------------27
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