पर्यावरणीय मानकों का मखौल उड़ाने पर सिडकुल और खेल विभाग समेत 21 को नोटिस
सीआ ने अब इस पर नजरें टेढ़ी की हैं। इस कड़ी में 20 हजार वर्ग मीटर से अधिक भूमि में फैले 21 प्रोजेक्ट पर शिकंजा कसा गया है और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं।
देहरादून, [केदार दत्त]: उत्तराखंड में न सिर्फ निजी क्षेत्र बल्कि सरकारी महकमें भी पर्यावरणीय मानकों का मखौल उड़ा रहे हैं। राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव निर्धारण प्राधिकरण (सीआ) ने अब इस पर नजरें टेढ़ी की हैं। इस कड़ी में 20 हजार वर्ग मीटर से अधिक भूमि में फैले 21 प्रोजेक्ट पर शिकंजा कसा गया है और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं।
इनमें सिडकुल के इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट सितारगंज और खेल विभाग के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम रायपुर के अलावा निजी बिल्डर्स, कॉलोनाइजर्स, होटलियर्स, मॉल व संस्थानों के प्रोजेक्ट शामिल हैं। इन सभी ने वर्ष 2015 से सीआ को कोई रिपोर्ट नहीं भेजी है, जबकि नियमानुसार यह छह माह में भेजना आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में 20 हजार वर्ग मीटर से ज्यादा भूमि में होने वाले किसी भी भवन समेत अन्य निर्माण के साथ ही उपखनिज (मिट्टी, रेत-बजरी व बोल्डर) चुगान कार्य के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति अनिवार्य रूप से लेने का प्रावधान है।
पर्यावरणीय स्वीकृति राज्य स्तर पर गठित सीआ और सीआ के अस्तित्व में न रहने पर केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से लेनी अनिवार्य होती है। यह स्वीकृति निर्माण कार्य शुरू होने के छह माह के भीतर लेनी आवश्यक है। इसके बाद हर छह माह में पर्यावरणीय मानकों के संबंध में रिपोर्ट भेजनी होती है। इन प्रावधानों की राज्य में चल रहे प्रोजेक्ट खुलेआल धज्जियां उड़ा रहे हैं और इनमें सरकारी महकमे भी पीछे नहीं है। सीआ ने जब प्रदेशभर के ऐसे प्रोजेक्ट के संबंध में जांच पड़ताल की तो पता चला कि 2015 से 21 प्रोजेक्ट की कोई रिपोर्ट सीआ के पास नहीं पहुंची है।
दरअसल, सीआ बोर्ड का कार्यकाल जनवरी 2016 में खत्म हो गया था, जो इस वर्ष अगस्त में अस्तित्व में आया। इसी का फायदा सरकारी व निजी क्षेत्र के इन प्रोजेक्ट संचालकों ने उठाया और अब तो ये प्रोजेक्ट अस्तित्व में आ चुके हैं। इस सबको देखते हुए सीआ ने अब ऐसे 21 प्रोजेक्ट को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। इनमें सिडकुल का सितारगंज इंडस्ट्रियल एस्टेट भी शामिल है। सिडकुल को वहां नाले पर बाढ़ रोधक दीवार और आधे हिस्से में पेड़ लगाने समेत अन्य कदम उठाने थे। इस बारे में सिडकुल ने कोई रिपोर्ट सीआ को नहीं भेजी।
इसी प्रकार देहरादून के रायपुर में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण में ग्रीनरी, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट समेत अन्य बिंदुओं पर खेल विभाग ने हामी भरी थी। ये कार्य हुए या नहीं अथवा कितने फीसद हुए, इस बारे में कोई जानकारी सीआ को नहीं भेजी गई। यही नहीं, निजी क्षेत्र के बिल्डरों, कॉलोनाइजर्स, होटलियर्स, मॉल व संस्थान संचालकों ने भी 2015 से रिपोर्ट नहीं भेजी है। इनकी संख्या 19 है। सीआ के अध्यक्ष डॉ.एसएस नेगी ने बताया कि अब इन सभी को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। सभी को 15 दिन के भीतर जवाब देना है। यदि जवाब नहीं आता है और आता भी है तो संतोषजनक न होने पर फिर नोटिस भेजा जाएगा।
इसे भी गंभीरता से न लेने पर ऐसे प्रोजेक्ट को बंद कराने का एक्ट में प्रावधान है। वहीं, सीआ ने प्रदेशभर में संचालित 106 खनन पट्टों के संचालकों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं। इनमें उत्तराखंड वन विकास निगम, गढ़वाल व कुमाऊं मंडल विकास निगमों के 40 पट्टे भी शामिल हैं। शेष निजी क्षेत्र के हैं। इनके द्वारा भी 2014 से सीआ को रिपोर्ट नहीं भेजी गई। जागरण ने हाल में इस मसले को प्रमुखता से उठाया था। सिस्टम की भूमिका पर भी सवाल पर्यावरण संबंधी मानकों का अनुपालन न होने पर सिस्टम की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। ठीक है कि जनवरी 2016 से सीआ का बोर्ड अस्तित्व में नहीं था, लेकिन दफ्तर तो मौजूद है। ऐसे में सीआ को रिपोर्ट भिजवाना तो विभागों का दायित्व था, मगर अधिकारियों ने भी इस तरफ आंखें फेर ली थीं।
यह भी पढ़ें: त्योहार में बिगड़ा बजट, 59 रुपये महंगी हुई रसोई गैस
यह भी पढ़ें: सरकारी गोदाम में नहीं पहुंचा खाद्यान्न, रोस्टर प्रणाली पर सवाल