विरासत 2019: नूरा सिस्टर्स के मंच पर आते ही तालियों से गूंज उठा स्टेडियम
विरासत समारोह के तीसरे दिन जालंधर की दोनों बहनें ज्योति और सुल्तान यानि नूरा सिस्टर्स के मंच पर आते ही लोग खुशी से झूम उठे।
देहरादून, जेएनएन। कौलागढ़ स्थित आंबेडकर स्टेडियम में विरासत समारोह के तीसरे दिन जालंधर की दोनों बहनें ज्योति और सुल्तान यानि नूरा सिस्टर्स के मंच पर आते ही लोग खुशी से झूम उठे। दोनों बहनों ने मंच पर एक के बाद एक धमाकेदार प्रस्तुतियां दीं। उन्होने बुल्ले शाह के बिरसे गाने के साथ ये जमीन जब न थी..,अल्लाह हू-अल्लाह हू..गीतों पर काफी वाहवाही बटोरी।
मंच से उतरते ही दोनों बहनों के साथ सेल्फी लेने के लिए दर्शकों के बीच होड़ सी मच गई। इस मौके पर नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो के सलाहकार अबू मेहथा, लोंग्कुमेर, टीएफएमए के सलाहकार थेका मैरी, दिल्ली में नागालैंड के रेजिडेंस कमिशनर ज्योति कलश आदि मौजूद रहे।
शिंजिनी के नृत्य में दिखी पंडित बिरजू महाराज की झलक
मशहूर कथक डांसर पंडित बिरजू महाराज की नातिन और शिष्या शिंजिनी कुलकर्णी ने नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। जिसको दर्शकों ने बखूबी सराहा। इस दौरान बतौर मुख्य अतिथि नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि ये लोगों को भारतीय सभ्यता और संस्कृति के नजदीक लेकर आते हैं। ऐसे कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित होने चाहिए।
वहीं, कथक नृत्यांगना शिंजिनी ने बताया कि वह बचपन से ही अपने नाना से नृत्य सीख रही हैं। उनका प्रशिक्षण गुरु शिष्य परंपरा के साथ औपचारिक एंव सख्त रहा। क्योंकि उनके नाना ही उनके गुरु हैं। उन्होंने बताया कि वह सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थी। जब उन्हें कुछ दोस्तों और परिवार के साथ एक फिल्म का प्रस्ताव मिला। अब तक वह तीन भाषाओं में फिल्में कर चुकी है। उन्होंने कहा कि वह नृत्य के प्रति अपने रुझान किसी भी प्रकार कम नहीं होने देंगी।
देश की अमूल्य विरासत को संजो कर रखता है विरासत
कौलागढ़ स्थित बीआर अंबेडकर स्टेडियम में आयोजित विरासत कार्यक्रम एक ऐसा कार्यक्रम है। जहां हर साल आपको देश के विभिन्न राज्यों की संस्कृति और सभ्यता की झलक देखने को मिलती है। यह झलक पारंपरिक वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन से लेकर कला की है। जिन्हें देखते ही जहन में भारतीय संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं की तस्वीर उभरती नजर आती है।
इस बार विरासत में मुख्य आकर्षण का केंद्र बनते नजर आ रहे हैं राजस्थान के पारंपरिक खाने का स्टॉल, कॉफ गिरी आर्ट स्टॉल। इन दोनों स्टॉलों की खासियत यह है कि बाबूलाल कैटर्स के स्टॉल में आपको एक ही थाली में विभिन्न व्यंजनों का स्वाद चखने को मिलेगा। इस थाली की कीमत ढाई सौ रुपये है। जिसमें दाल, बाटी, गट्टे की सब्जी, केसर सागरी, लहसून की चटनी, बाजरे की रोटी, मिस्सी रोटी, मूंगदाल का हलवा, चूरमा और लड्डू जैसे दस व्यंजन शामिल रहेंगे। इसके अलावा इस स्टॉल में दूनवासियों को मावा कचौरी, प्याज कचौड़ी, मूंगदाल कचौड़ी और मिर्ची वड़ा का स्वाद चखने को मिलेगा। जिसकी कीमत 50 रुपये प्रति पीस है। इसके अलावा कार्यक्रम में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के कपड़ों के स्टॉल भी लगाए गए।
जेल कैदियों और नारी निकेतन बालिकाओं ने दिखाई प्रतिभा
विरासत में हरिद्वार जेल के कैदियों और नारी निकेतन में रह रही बालिकाओं द्वारा तैयार किए गए सामान के स्टॉल भी लगाई गई है। इसमें बिना टूल के बनाए गए हैंडमेड कारपेट, कुर्सिया, फर्नीचर का सामान घर का सामान और कपड़े शामिल हैं। सामान तैयार करने वाले कैदियों और संवासिनियों को सफी उल्ला ने प्रशिक्षण दिया है। उन्होंने बताया कि सामान के लिए वह स्वंय जरूरत के हिसाब से सामान उपलब्ध करवाते हैं।
हेरिटेज वॉक में युवाओं ने लिया भाग
तीसरे दिन सुबह सहस्त्रधारा रोड स्थित खलंगा स्मारक से युद्ध स्मारक तक हेरिटेज वॉक का आयोजन किया गया। जिसका नाम खलंगा वॉर मेमोरियल हेरिटेज वॉक रखा गया। वॉक का नेतृत्व सरगम मेहरा ने किया। जिसमें 90 लोगों ने भाग लिया। बता दें वॉक एंग्लों- गोरखा युद्ध की गाथाओं पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से करवाई गई, कि किस तरह वर्ष 1814 में नालापानी के युद्ध में पांच सौ गोरखा और दस हजार से अधिक ब्रिटिश सैनिकों के बीच युद्ध लड़ा गया था।
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महाराणा प्रताप के यश का प्रतीक है मुकुट
वहीं कॉफ गिरी आर्ट गैलरी में राजा महाराजा द्वारा युद्ध में इस्तेमाल किए जाने वाले अस्त्र शस्त्र प्रस्तुत किए गए है। जिनमें महाराणा प्रताप के यश का प्रतीक युद्ध के दौरान पहना जाने वाला उनका लोहे का मुकुट शामिल है। जिसकी कीमत 45 हजार रुपये है। स्टाल की मालिक श्यामलता ने बताया कि स्टाल में तलवार, ढाल, फोटोफ्रेम, पेन लगाए गए हैं। स्टॉल में रखा गया सारा सामान म्यूजियम पीस की रिपलिका है। जिनमें सिल्वर और गोल्ड वर्क वाले पेन की कीमत चार हजार रुपये है।
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