गोमुख में झील नहीं, मलबे का खतरा उससे कहीं बड़ा, जानिए क्या है पूरा मामला
गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने के पास गोमुख में पल रहे केदारनाथ आपदा जैसे खतरे पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने एक बार फिर आगाह किया है।गोमुख का दौरा कर लौटे वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. पीएस नेगी ने कहा कि ग्लेशियर मलबे (डेबरी) का खतरा उससे कहीं अधिक बढ़ गया है।
देहरादून, जेएनएन। गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने के पास गोमुख में पल रहे केदारनाथ आपदा जैसे खतरे पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने एक बार फिर आगाह किया है। हाल में गोमुख का दौरा कर लौटे वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. पीएस नेगी ने कहा कि वहां अब झील नहीं है, मगर ग्लेशियर मलबे (डेबरी) का खतरा उससे कहीं अधिक बढ़ गया है। शायद यही वजह है कि इस खतरे को भांपकर हाईकोर्ट ने भी शासन के अधिकारियों के रवैये पर सख्त नाराजगी जाहिर की है।
वाडिया संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. नेगी के मुताबिक गोमुख क्षेत्र में करीब तीन किलोमीटर लंबाई में मलबा पसरा है। इसमें बड़े-बड़े बोल्डर भी शामिल हैं। यदि केदारनाथ आपदा के दौरान जिस तरह की बारिश हुई थी, उसकी पुनरावृत्ति होती है तो यह मलबा बाढ़ के रूप में निचले क्षेत्रों में कहर बरपा सकता है। हालिया दौरे की रिपोर्ट भी सरकार व शासन को भेजी जाएगी। डॉ. पीएस नेगी ने बताया कि ग्लेशियर मलबा भागीरथी नदी को धारा के दोनों तरफ है। इस तरह के प्रयास किए जाने चाहिए कि नदी की धारा में किसी तरह का अवरोध पैदा न हो। यदि ऐसा होता है तो न सिर्फ कहीं पर भी झील बन सकती है, बल्कि जमा मलबा भी ढीला पड़ सकता है।
ग्लेशियर के मुहाने पर लगा था मलबे का 30 मीटर ऊंचा ढेर
वर्ष 2017 में गोमुख में जो झील बनी थी, उसका कारण 30 मीटर ऊंचे मलबे का ढेर था। जिसके चलते जो झील बनी थी, उसमें चार मीटर तक पानी जमा हो गया था। तब वाडिया संस्थान के विज्ञानियों के आशंका व्यक्त की थी कि यदि मलबा नहीं हटा तो यहां पर 50-60 मीटर लंबी और करीब 150 मीटर चौड़ी झील बन जाएगी। अच्छी बात यह रही कि कुछ समय बाद ही झील स्वत: ही समाप्त होने लगी थी। फिर भी मलबे की स्थिति बरकरार थी। गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने पर पैदा हो रहे खतरे को लेकर डॉ. पीएस नेगी ने एक रिपोर्ट मुख्य सचिव, आपदा प्रबंधन सचिव व आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र को सौंपी थी।
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