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इस घाटी में है सात तालों का मनमोहक संसार, ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए भी है कुछ खास; जानिए

चमोली जिले के दशोली ब्लॉक की निजमुला घाटी में झींझी गांव से 24 किमी की दूरी पर स्थित सात तालों के इस दुर्लभ खजाने को सप्तकुंड के नाम से जाना जाता है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 29 Oct 2019 03:48 PM (IST)Updated: Tue, 29 Oct 2019 08:40 PM (IST)
इस घाटी में है सात तालों का मनमोहक संसार, ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए भी है कुछ खास; जानिए
इस घाटी में है सात तालों का मनमोहक संसार, ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए भी है कुछ खास; जानिए

देहरादून, दिनेश कुकरेती। चलिए! आपको लिए चलते हैं सुदूर हिमालय की गोद में स्थित सात तालों (कुंड) के मनमोहक संसार में। सीमांत चमोली जिले के दशोली ब्लॉक की निजमुला घाटी में झींझी गांव से 24 किमी की दूरी पर स्थित सात तालों के इस दुर्लभ खजाने को 'सप्तकुंड' के नाम से जाना जाता है। नंदा घुंघटी पर्वत श्रृंखला की तलहटी में समुद्रतल से लगभग पांच हजार मीटर (16400 फीट)की ऊंचाई पर स्थित ये सातों ताल एक-दूसरे से लगभग आधे-आधे किमी के फासले पर मौजूद हैं। इन सात तालों को 'सप्तऋषि' भी कहते हैं। यहां पहुंचने के लिए एशिया के सबसे कठिन पैदल ट्रैक को पार करना पड़ता है। हालांकि, साहसिक पर्यटन और पहाड़ घूमने के शौकीन लोगों के लिए सप्तकुंड एक रोमांचित कर देने वाला ट्रैक है। 

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सप्तप्तकुंड समूह के सात में से छह तालों पार्वती कुंड, गणोश कुंड, नारद कुंड, नंदी कुंड, भैरव कुंड और शक्ति कुंड का पानी इस कदर ठंडा है कि उनमें डुबकी लगाने का कोई साहस तक नहीं जुटा पाता। जबकि शिव कुंड नामक ताल का पानी बेहद गर्म है। इस ताल में स्नान करने से पर्यटकों की पूरी थकान पलभर में काफूर हो जाती है। इसी ताल में नंदा देवी की वार्षिक लोकजात संपन्न होती है। 

26 किमी के ट्रैक पर सात किमी का खड़ा सफर 

सप्तकुंड पहुंचने के लिए चमोली से बिरही होते हुए निजमुला क्षेत्र के पगना गांव तक सड़क सुविधा उपलब्ध है। पगना से झींझी गांव तक आठ किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। झींझी से सप्तकुंड के लिए 26 किमी का पैदल ट्रैक है। इसमें झींझी से सात किमी दूर वन विभाग के टिन शेड तक एकदम खड़ी चढ़ाई है। इसके बाद दस किमी के फासले पर गौंछाल ओड्यार (गुफा) पड़ता है। यहां से तीन किमी दूर सिम्बे बुग्याल है, जबकि सिम्बे से सप्तकुंड पहुंचने के लिए छह किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। 

नंदा घुंघुटी के करीब से नहीं गुजरते जहाज 

सप्तकुंड समूह नंदा घुंघुटी की तलहटी में स्थित है। नंदा घुंघुटी पर्वतमाला की विशेषता यह है कि इसके करीब से कभी भी कोई जहाज नहीं गुजरता, क्योंकि इसकी चुंबकीय क्षमता काफी अधिक है। 

मां काली के खप्पर से जुड़ी लोक मान्यता 

मां काली ने अपने खप्पर पर महाभारत के युद्ध में मारे जाने वाले लोगों के नाम लिखे थे। इनमें अजरुन का नाम भी शामिल था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को यह बात बताई और उनसे माता पार्वती की तपस्या करने के लिए कहा। द्रोपदी की तपस्या से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए। तब द्रोपदी ने उनसे मां काली के खप्पर के बारे में पूछा। माता ने उन्हें बताया कि यह खप्पर सप्तकुंड में मौजूद है। इसके बाद माता पार्वती स्वयं सप्तकुंड पहुंचीं और खप्पर से अजरुन का नाम मिटाकर उसे दो हिस्सों तोड़ डाला। मान्यता है कि इस खप्पर का आधा हिस्सा कोलकाता और आधा सप्तकुंड में मौजूद है। हर साल काफी संख्या में बंगाली ट्रैकर सप्तकुंड पहुंचते हैं। 

सप्तकुंड ट्रैक की विशेषता यह है कि आप ओर से छोर तक हिमालय की मनोहारी चोटियों का दीदार कर सकते हैं। साथ ही ट्रैक के दोनों ओर खड़े बांज, बुरांश, देवदार, कैल, खोरू, भोज सहित नाना प्रकार के वृक्षों की शीतल छांव थकान का अहसास ही नहीं होने देती। सप्तकुंड ट्रैक पर झींझी गांव से 20 किमी दूर पड़ने वाले सिम्बे बुग्याल में सैकड़ों प्रजाति के रंग-बिरंगे फूल पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे हम फूलों की घाटी में पहुंच गए हों। औषधीय वनस्पतियां, दर्जनों प्रकार के हिमालयी जीव-जंतु और परिंदों का दीदार भी यहां कदम-कदम पर किया जा सकता है। पूरे ट्रैक पर फेन-सा बिखेरते झरने अंतर्मन को आल्हादित कर देते हैं। 

हर छठे साल सप्तकुंड जाती है नंदा की लोकजात 

लोक मान्यताओं में सप्तकुंड को भगवान शिव का निवास स्थान माना गया है। हर छठे साल भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (नंदाष्टमी) के दिन ईराणी, झींझी, पाणा, रामणी, दुर्मी और पगना गांव समेत पूरी निजमुला घाटी के ग्रामीण यहां पहुंचकर भगवान शिव और भगौती (भगवती) नंदा की पूजा करते हैं। नंदा कुरुड़ की दशोली डोली की वार्षिक लोकजात नंदाष्टमी के दिन सप्तकुंड में ही पराकाष्ठा को पहुंचती है। यहां देवी नंदा की पूजा के बाद लोकजात रामणी वापस लौटती है। जबकि, अन्य सालों में लोकजात बालपाटा बुग्याल जाती है। बदरी-केदार हिमालय के कोने-कोने का भ्रमण कर चुके प्रकृति प्रेमी एवं ट्रैकर मनीष नेगी व बृहषराज तड़ियाल बताते हैं कि सप्तकुंड पहुंचकर जैसी शांति एवं सुकून मिलता है, वैसा कहीं और संभव नहीं है। 

सप्तकुंड का परिचय 

पार्वती कुंड: सप्तकुंड समूह में सबसे पहले पार्वती कुंड पड़ता है, जो करीब 500 मीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 

गणोश कुंड: यह कुंड लगभग 800 मीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 

नारद कुंड: यह कुंड 200 मीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 

शिव कुंड: यह समूह का सबसे बड़ा कुंड है, जो लगभग एक किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस कुंड के पास वार्षिक लोकजात के दौरान भगवती नंदा की डोली का पूजन होता है। यहां एक छोटा-सा मंदिर भी बना हुआ है। 

नंदी कुंड: यह कुंड लगभग 500 मीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 

भैरव कुंड: यह सप्तकुंड समूह का सबसे छोटे आकार वाला कुंड है। यह सौ मीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 

शक्ति कुंड: लगभग 200 मीटर क्षेत्रफल में फैला यह कुंड बिल्कुल चोटी के पास स्थित है। अन्य छह कुंड इससे काफी नीचे हैं। 

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ईराणी की राह बेहद दुर्गम 

निजमुला घाटी का झींझी गांव सप्तकुंड का बेस कैंप है। हालांकि, सप्तकुंड ईराणी गांव से भी पहुंचा जा सकता है। लेकिन, यहां से रास्ता बेहद दुर्गम है। ईराणी से दुग्ध कुंड होते हुए सप्तकुंड पहुंचा जाता है। 

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एक लोक मान्यता यह भी 

स्थानीय लोगों का मानना है कि निजमुला घाटी में सात नहीं, बल्कि 11 ताल हैं। लेकिन, लोगों को जानकारी सिर्फ सात तालों के बारे में ही है। शेष चार ताल कहां हैं, यह किसी को नहीं मालूम। 

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