उत्तराखंड में पशु चिकित्सा सेवाएं सुदृढ़ करने की दरकार
उत्तराखंड में कई मोर्चों पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इन्हीं में एक क्षेत्र है पशुपालन। उत्तराखंड में पशु चिकित्सा सेवाओं को भी मजबूती देने की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाली नई सरकार इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाएगी।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 21 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन कई मोर्चों पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इन्हीं में एक क्षेत्र है पशुपालन। यद्यपि, बदली परिस्थितियों में इस दृष्टिकोण से कुछ काम हुआ है, लेकिन अभी लंबा सफर तय करना होगा। साथ ही राज्य में पशु चिकित्सा सेवाओं को भी मजबूती देने की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य की आने वाली नई सरकार इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाएगी।
एक दौर में पशुपालन उत्तराखंड की आर्थिकी का महत्वपूर्ण जरिया हुआ करता था। इससे दूध-घी की प्रचुरता तो रहती ही थी, खेती के लिए गोबर के रूप में खाद भी मिलती थी। जाहिर है कि इससे खेती भी मजबूत स्थिति में थी। वक्त ने करवट बदली और पलायन के चलते गांव खाली होने के साथ ही कृषि एवं पशुपालन बुरी तरह प्रभावित हुआ। पलायन आयोग के आंकड़े ही बताते हैं कि प्रदेश में 1702 गांव निर्जन हो चुके हैं। बड़ी संख्या में गांवों की संख्या ऐसी है, जहां आबादी अंगुलियों में गिनने लायक ही रह गई है। इसके चलते खेत-खलिहान बंजर में तब्दील हुए तो पशुपालन भी निरंतर सिमटता चला गया।
इस बीच रिवर्स पलायन के लिए प्रयास हुए तो गांव लौटे तमाम प्रवासियों ने पशुपालन में भी हाथ आजमाया। इनमें कई सफल उद्यमी के तौर पर सामने आए हैं। इसके अलावा वर्ष 2020 में कोरोना संकट के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे प्रवासियों का गांवों में वापसी का क्रम शुरू हुआ तो गांवों में बंद पड़े घरों के दरवाजे भी खुले। काफी संख्या में प्रवासी गांवों में ही रुके हैं और उन्होंने कृषि एवं पशुपालन पर खास ध्यान केंद्रित किया है। वे विशेषकर भेड़-बकरी पालन, दुग्ध उत्पादन जैसे व्यवसायों से जुड़े हैं।
यद्यपि, सरकार ने भी पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए प्रयास तेज किए तो राज्य में दुग्ध उत्पादन बढ़ा है। ये बात अलग है कि अभी पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए काफी कुछ प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। असल में विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में पशुपालकों की सुविधा के लिए पशु चिकित्सा सेवाएं उस दृष्टि से आकार नहीं ले पाई हैं, जिसकी दरकार है। पशुपालन को लोग अधिक महत्व दें, इसके लिए यह आवश्यक है कि उन्हें गांव के नजदीक पशु चिकित्सा सेवाएं भी मिलें। इन सेवाओं को न्याय पंचायत स्तर तक ले ले जाने की जरूरत है। राज्य में न्याय पंचायतों की संख्या 670 है।
उत्तराखंड में पशु चिकित्सा सेवाएं
- सेवाएं--------------------संख्या
- पशु चिकित्सालय---------329
- पशु सेवा केंद्र--------------778
- कृत्रिम गर्भाधान केंद्र------760
- भेड़ एवं ऊन प्रसार व मेंढा केंद्र--------113
- पोल्ट्री प्रक्षेत्र---------------------------07
- अंगोरा शशक प्रक्षेत्र------------------05
- पशु प्रजनन फार्म---------------------04
- बकरी प्रजनन प्रक्षेत्र------------------03
- सूकर प्रक्षेत्र-----------------------------02
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