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एनडी तिवारी ने उत्तर प्रदेश में नौ बार पेश किया बजट

उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बतौर वित्त मंत्री नौ बार बजट पेश करने का रिकार्ड एनडी तिवारी ने बनाया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 09:08 AM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 09:08 AM (IST)
एनडी तिवारी ने उत्तर प्रदेश में नौ बार पेश किया बजट
एनडी तिवारी ने उत्तर प्रदेश में नौ बार पेश किया बजट

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: एनडी तिवारी ने उत्तर प्रदेश में सत्ता के केंद्र में रहते हुए अद्भुत अंतरदृष्टि से समाज के हर तबके की भावनाओं को छूने और जन आकांक्षा को केंद्र में रखा। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बतौर वित्त मंत्री नौ बार बजट पेश करने का रिकार्ड उन्होंने बनाया।

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1970-71 में चौ चरण सिंह और कांग्रेस की संयुक्त गठबंधन सरकार में प्रदेश का पहला बजट पेश किया। इसके बाद वर्ष 1988 तक विभिन्न वित्तीय वर्षों में नौ बार बजट पेश कर कामयाब वित्त मंत्री की मिसाल कायम की। पहले बजट में ही उन्होंने राज्य के विकास के एजेंडे के साथ अंतरराष्ट्रीय संघ और प्रशासनिक सुधार की अंतरदृष्टि के साथ नियोजित विकास को प्राथमिकता दी। पर्यटन को स्वतंत्र विभाग और शहरी संपत्ति की सीमा निर्धारित करने का श्रेय श्री तिवारी को जाता है।

उनके शुरू किए गए कदम बाद में मार्गदर्शक भी साबित हुए। वर्ष 1972-73 में बजट भाषण में पहली बार उन्होंने संस्थागत वित्त का उल्लेख किया। बाद में यह अगले बजट का नियमित हिस्सा बन गया। कृषि को आर्थिक आय की मुख्य रीढ़, पंचायत क्षेत्रों की आर्थिक समस्याएं सुलझाने को पंचायत राज वित्त निगम की स्थापना की तो हथकरघा, शक्तिचालित करघा पोषण एवं विकास निगम की स्थापना कर बुनकरों के कल्याण की मुहिम आगे बढ़ाई।

वर्ष 1974-75 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना शुरू करते हुए विभिन्न स्तरों पर आर्थिक असमानता कम करने, टिहरी बांध निर्माण की नींव रखने के साथ ही झांसी, फैजाबाद, बरेली में विश्वविद्यालयों की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस अवधि में मुद्रा स्फीति और आर्थिक दबाव के साथ ही कृषि उत्पादन में कमी एवं पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने से महंगाई ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी। ऐसे में श्री तिवारी ने कई सुधारात्मक उपायों से जनता को राहत दी।

वर्ष 1976-77 में पर्वतीय अंचलों का बजट आठ करोड़ से बढ़ाकर 60 करोड़ किया गया। 25 जून, 1988 को नौंवी बार बजट पेश किया तो इसमें हर तबके को तवज्जो दी गई। उत्पीड़ित व्यक्ति के प्रति लगाव और विपक्षी दलों के प्रति दलगत सियासत से उठकर संबंध बनाने की कला में श्री तिवारी दक्ष माने जाते रहे। यही वजह है कि वह कई मौकों पर संकटमोचक की भूमिका में भी रहे।

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