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जौनसार-बावर में सिर्फ नवरात्र की अष्टमी को होती है पूजा

साहिया जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के रिवाज भी अनूठे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 10:41 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 10:41 PM (IST)
जौनसार-बावर में सिर्फ नवरात्र की अष्टमी को होती है पूजा
जौनसार-बावर में सिर्फ नवरात्र की अष्टमी को होती है पूजा

संवाद सूत्र, साहिया: जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के रिवाज भी अनूठे हैं। पूरे देश में जहां मां दुर्गा के नौ रूपों की विधि-विधान से पूजा अर्चना होती है, लेकिन जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर में नवरात्र में दुर्गा के नौ रूपों में से सिर्फ अष्टमी यानि महागौरी की ही पूजा अर्चना की जाती है। प्रत्येक परिवार में घर का मुखिया नवरात्र की अष्टमी को व्रत रखता है, दिन में हलवा-पूरी से मां का पूजन किया जाता है और शाम को नानवेज खाने का कोई परहेज नहीं है।

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देश के विभिन्न राज्यों में नवरात्र मनाने का अलग अंदाज है, गुजरात में नवरात्र में डांडिया व गरबा की धूम रहती है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्य है। इसी तरह से हर राज्य में नवरात्र के नौ रूपों की विधिवत पूजा होती है। पूरे देश में जहां पहाड़ों की पुत्री मां शैलपुत्री, विशेष कृपा करने वाली मां ब्रह्मचारिणी, चांद की तरह दमकने वाली चंद्रघंटा, पूरा जगत अपने पैर में समाने वाली कूष्मांडा, कार्तिक स्वामी की मां स्कंदमाता, कात्यायन आश्रम में जन्मी कात्यायनी, काल का नाश करने वाली कालरात्रि, सफेद दिव्य कांतिवाली महागौरी, सर्वसिद्धि प्रदान करने वाली मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन अपनी अनूठी परंपराओं व रिवाज के लिए विख्यात जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में सिर्फ अष्टमी यानि महागौरी का ही पूजन होता है। यहां पर सभी नवरात्र नहीं मनाए जाते। सिर्फ अष्टमी के दिन श्रद्धालु व्रत रखकर मां काली की पूजा अर्चना करते हैं। क्षेत्रीय महिलाओं नारो देवी, फूलो, नारायणी, सविता, सेमानी, सुनीता, प्रभा, नीलम, अनिता आदि का कहना है कि जौनसारी भाषा में अष्टमी पूजन को आठों पर्व कहा जाता है। जौनसार में हर त्योहार मनाने का अंदाज निराला है। यहां पर देश की दीवाली के एक माह बाद दीवाली मनायी जाती है, उसी तरह से यहां पर पूरे नवरात्र नहीं मनाए जाते, सिर्फ अष्टमी पूजन ही होता है। अष्टमी पूजन में हर गांव में हर घर से मुखिया शामिल होते हैं। अष्टमी के दिन घर के मुखिया सपत्निक व्रत रखते हैं। देवी मां की पूजा के दौरान नए कपड़े पहने जाते हैं। उसके बाद देवी मां को कचोरी, हलवा, चावल व गाय के घी का भोग लगाया जाता है। परिवार के सभी सदस्य दूध व चावल का टीका लगाते हैं। अष्टमी के दूसरे दिन गांवों में एक दूसरे को चाय पर आमंत्रित करने का रिवाज है। जिसको हेला कहते हैं। शाम को नानवेज खाने का भी कोई परहेज नहीं है।


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