नैनीताल के बच्चे उत्तराखंड के लिए बन गए हैं नजीर, जानिए कैसे
मिड डे मील योजना के तहत ऑनलाइन आयोजित की जा रही दो प्रतियोगिताओं में नैनीताल जिले के सर्वाधिक 2885 बच्चे भाग ले रहे हैं। अन्य किसी भी जिले के बच्चों की भागीदारी इस संख्या के 50 फीसद को भी छू नहीं पा रही है।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। झीलों की नगरी वाले जिले यानी नैनीताल के बच्चे उत्तराखंड के लिए नजीर बन गए हैं। मिड डे मील योजना के तहत ऑनलाइन आयोजित की जा रही दो प्रतियोगिताओं में इस जिले के सर्वाधिक 2885 बच्चे भाग ले रहे हैं। अन्य किसी भी जिले के बच्चों की भागीदारी इस संख्या के 50 फीसद को भी छू नहीं पा रही है। शासन की नाक के नीचे देहरादून जैसे जिले से नाममात्र की भागीदारी है। है न चिंता की बात। इस जिले से कम प्रतियोगी सिर्फ बागेश्वर में हैं, मात्र 24 बच्चे। क्विज में भारतीय पारंपरिक भोजन, जलवायु, उत्सवों के भोजन और उनका पोषण से संबंधों पर ऑनलाइन सवाल पूछे जा रहे हैं, जवाब दीजिए और तुरंत एनसीईआरटी से ऑनलाइन सर्टिफिकेट लीजिए। दूसरी प्रतियोगिता में चित्रों व शब्दों को मिलाकर मीम बनाना है। राज्य के 7086 बच्चे इन प्रतियोगिताओं में भाग ले रहे हैं। मीम संबंधी प्रतियोगिता से चार जिले नदारद हैं।
उपलब्धि भी, हुए शर्मसार भी
उच्च शिक्षा विभाग में शिक्षकों को राहत बंधाने वाली खबर भी है तो एक वाकये ने शर्मसार भी कर दिया। स्कूली शिक्षकों की तर्ज पर पहली दफा सरकारी व सहायताप्राप्त डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को राज्यस्तरीय डॉ भक्तदर्शन उत्कृष्टता पुरस्कार मिला। वर्षों से इसकी मांग की जाती रही है। सरकार ने वायदा किया और निभा के भी दिखा दिया। इस खुशी के बीच ऊधमसिंहनगर जिले के रुद्रपुर के एक सरकारी डिग्री कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. एसके श्रीवास्तव अपनी हरकत की वजह से चर्चा में आ गए। कोरोना काल में सार्वजनिक स्थान पर मास्क नहीं पहनने पर मिली नसीहत इन्हें नागवार गुजरी। जनाब ने महिला पुलिस कर्मचारी के साथ बदसलूकी कर दी। इस वजह से इन्हें दस दिन जेल की हवा खानी पड़ी। मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचा तो उन्होंने भी निलंबित करने का आदेश दिया। इस घटना से उच्च शिक्षा महकमे और शिक्षको की छवि को खासा झटका लगा है।
खोखली पोटली और आदर्श ख्वाब
प्रदेश में 174 अटल आदर्श विद्यालय चिह्नित किए गए हैं। शिक्षा महकमे ने इसकी कसरत पूरी कर ली, लेकिन अब इन राजकीय इंटर कॉलेजों को आदर्श बनाने की चुनौती खड़ी हो गई है। वजह विभाग की पोटली में पैसा नहीं होना है। बगैर बजट इन विद्यालयों को आदर्श बनाने का कोई ब्ल्यू प्रिंट न शिक्षा विभाग के पास है और न ही सरकार के पास। राहत की बात ये है कि इन विद्यालयों में सूचना संचार तकनीक और स्मार्ट कक्षाएं शुरू कराने में समग्र शिक्षा अभियान ने सहयोग का भरोसा दिया है। अब सबसे अहम सवाल छात्र-छात्राओं के लिए फर्नीचर उपलब्ध कराने का है। इसके लिए हंस फाउंडेशन से मदद ली जाएगी। यह संस्था सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी मदद कर रही है। लिहाजा विभाग ने इस संस्था को फर्नीचर का प्रस्ताव बनाकर थमा दिया गया है। अब आदर्श विद्यालय योजना फिलवक्त किस्त-किस्त आगे बढ़ती दिख रही है।
केंद्र मददगार, दूर होगी बुराई
साक्षरता में देश के अव्वल राज्यों में होने की वजह से उत्तराखंड को इतराने का मौका मिलता है। इस खूबसूरती पर लगा एक दाग कई सालों से धुल नहीं पा रहा है। यही राज्य की चिंता भी है। एक करोड़ एक लाख की आबादी में आज भी 11.90 लाख लोग निरक्षर हैं। केंद्र की मदद से चल रहे साक्षरता अभियान की गति पिछले कई सालों से धीमी है। इस अभियान से जुड़े शिक्षा प्रेरक अधर में हैं। मुख्यमंत्री राज्य को सौ फीसद साक्षर बनाने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन इसका आधार भी केंद्र से मिलने वाली मदद पर टिका है। राज्य इस बुराई को खत्म करने की योजना अपने बूते तैयार नहीं कर पाया है। राहत ये है कि केंद्र सरकार ने निरक्षरता का अंधेरा छांटने के लिए पढ़ो पढ़ाओ योजना के लिए राज्य से प्रस्ताव मांगा है। इससे सरकार की आंखों में भी चमक दिखने लगी है।