राजधानी देहरादून में खड़े हैं 28 हजार से अधिक अवैध भवन, कितने हो पाएंगे वैध
राजधानी में 28 हजार से अधिक अवैध भवन खड़े हैं। यह भवन भी वह हैं जिनके चालान एमडीडीए ने किए हैं। यानी कि अवैध भवनों की संख्या इससे भी कहीं अधिक होगी। सरकार समय-समय पर ओटीएस लाकर अवैध भवनों को कंपाउंड कर वैध बनाने के लिए प्रेरित करती रहती है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। राजधानी में 28 हजार से अधिक अवैध भवन खड़े हैं। यह भवन भी वह हैं, जिनके चालान एमडीडीए ने किए हैं। यानी कि अवैध भवनों की संख्या इससे भी कहीं अधिक होगी। सरकार समय-समय पर वन टाइम सेटेलमेंट स्कीम (ओटीएस) लाकर अवैध भवनों को कंपाउंड कर वैध बनाने के लिए प्रेरित करती रहती है। बावजूद इसके भवनों को वैध करने के लिए अपेक्षित आवेदन नहीं आ पाते हैं। इस दफा भी सरकार ने ओटीएस को मंजूरी दी है, मगर अभी इसका शासनादेश जारी होना बाकी है। फिर भी एमडीडीए ने अपने स्तर पर ओटीएस के लिए तैयारी शुरू कर दी है।
सोमवार को मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) उपाध्यक्ष रणवीर सिंह चौहान ने अधिकारियों व आर्किटेक्ट के साथ बैठक पर ओटीएस पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह शासनादेश आने के बाद भी स्पष्ट हो पाएगा कि भवनों को वैध बनाने के लिए मानकों में कितनी ढील मिलेगी। एमडीडीए को स्कीम से पहले ही इस तरह की व्यवस्था बनानी होगी कि स्कीम लागू होने के बाद आमजन को अनावश्यक परेशानी न हो, क्योंकि ओटीएस के बाद भी कई दफा लोग भवन का वैध कराने के लिए अनावश्यक एमडीडीए कार्यालय के चक्कर लगाते रहते हैं।
उन्होंने सभी आर्किटेक्ट से आग्रह किया कि वह मानकों को लेकर जनता को स्पष्ट जानकारी दें और प्रयास करें कि बिना किसी अड़चन के उनका नक्शा पास हो जाए। यदि कहीं पर तकनीकी दिक्कत आती है तो उसे सुलझाने का पूरा प्रयास किया जाएगा। बैठक में संयुक्त सचिव मीनाक्षी पटवाल, हर गिरी, अवर अभियंता प्रमोद मेहरा, गोविंद सिंह, आइटी एक्सपर्ट नवजोत सिंह सजवाण, आर्किटेक्ट गौरव वर्मा, मनीष, गौरव सिंह, सुमित अग्रवाल, विनय सिंह आदि उपस्थित रहे।
इस तरह के भवन हो सकेंगे वैध
जिन भवनों का नक्शा पास नहीं है, या उनका निर्माण स्वीकृत नक्शे से भिन्न किया गया है। इस तरह के सभी भवन मालिक कंपाउंडिंग के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि, यह ओटीएस का शासनादेश जारी होने के बाद स्पष्ट हो पाएगा अवैध निर्माण को किस सीमा तक वैध किया जा सकता है। क्योंकि एक सीमा तक किया गया अवैध निर्माण ही पास हो सकता है या संबंधित भवन उपयुक्त लैंडयूज के मुताबिक बना हो।
कंपाउंडिंग शुल्क निभाएगा अहम भूमिका
भवन का नया नक्शा पास कराने में उतना शुल्क नहीं लगता, जितना कंपाउंडिंग में लगता है। क्योंकि इसमें अवैध निर्माण की पेनाल्टी भी शामिल होती है। जनवरी 2019 से पहले कंपाउंडिंग शुल्क सर्किल रेट के साथ सिर्फ भूतल की गणना की जाती थी और ऊपरी मंजिल पर सामान्य शुल्क लगता था। इसके बाद सर्किल रेट की गणना (पांच से 15 फीसद तक) हर तल के साथ की जाने लगी। इससे शुल्क में काफी इजाफा हो गया। अवैध निर्माण पर अंकुश लगाने के लिहाज से यह उचित कदम था। ताकि लोग अवैध निर्माण करने की सोचें भी नहीं। हालांकि, पूर्व में किए जा चुके अवैध निर्माण भी इसकी जद में आ जाने से लोग कंपाउंडिंग से तौबा करने लगे।
अब देखने वाली बात यह होगी कि ओटीएस में सरकार अवैध निर्माण को वैध कराने के लिए जनता को कितनी रियायत दे पाती है। इस मामले में उत्तराखंड इंजीनियर्स एंड आर्किटेक्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस राणा का कहना है कि सरकार की तरफ से संकेत मिले हैं कि कंपाउंडिंग शुल्क पूर्व की भांति लगाए जाएंगे। सर्किल रेट भी वर्ष 2012 के अनुसार लागू होंगे और सेटबैक में अधिकतम छूट दी जाएगी।
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