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    पृथ्वी की गहराई से निकला 2.5 अरब साल पुराना रहस्य, बदला विज्ञानियों का कॉनसेप्‍ट

    Updated: Thu, 13 Nov 2025 01:19 PM (IST)

    एक नए शोध में पता चला है कि पृथ्वी की सबसे पुरानी ग्रेनाइट चट्टानें दो बार पिघलने और धंसने की प्रक्रिया से बनी हैं। वैज्ञानिकों ने दक्षिण भारत के नीलगिरि क्षेत्र की चट्टानों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है। यह खोज पृथ्वी की प्रारंभिक विकास यात्रा को समझने में मदद करती है और बताती है कि प्लेट टेक्टोनिक्स पहले से ही सक्रिय थी। इससे पृथ्वी की ऊष्मा संरचना को समझने में मदद मिलेगी।

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    पृथ्वी की सबसे पुरानी ग्रेनाइट चट्टानें दो बार के धंसाव से बनीं। प्रतीकात्‍मक

    सुमन सेमवाल, जागरण देहरादून। पृथ्वी की गहराई से ऐसा राज बाहर आया है, जो करीब 2.5 अरब साल पहले से दफ्न था। पता चला है कि पृथ्वी की सबसे पुरानी ग्रेनाइट जैसी चट्टानें (फेल्सिक राक्स) एक नहीं, बल्कि दो बार पिघलने और दो बार जमीन के नीचे धंसने (सबडक्शन) की प्रक्रिया से बनी हैं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में आयोजित नौवीं नेशनल जियो रिसर्च स्कालर्स मीट में यह शोध भारतीय इंजीनियरिंग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, शिवपुर, हावड़ा की शोधार्थी डा. रबिरशी चटर्जी ने साझा किया।

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    उन्होंने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा कि अब तक विज्ञानी यही समझते थे कि पृथ्वी की सबसे पुरानी चट्टानें, जैसे ग्रेनाइट या टीटीजी (टोनेलाइट-ट्रेंडजेमाइट-ग्रेनोडाईराइट) सिर्फ एक बार के धंसाव से बनी हैं। यानी अरबों साल पहले जब पृथ्वी की सतह ठंडी हो रही थी, तब समुद्री परतें (ओशनिक क्रस्ट) नीचे धंसकर (जैसे प्लेटें आज भी टकराकर नीचे चली जाती हैं) पिघलीं और उनसे हल्की सिलिका-युक्त चट्टानें बनीं। जिन्हें ग्रेनाइट कहा जाता है।

    विज्ञानी मानते थे कि उसी एक घटना ने पृथ्वी पर महाद्वीपीय पर्पटी (कान्टिनेंटल क्रस्ट या ऊपरी सतह) के बनने की नींव रखी। हालांकि, इस अध्ययन ने पुरानी सभी अवधारणाओं को बदल दिया है। इस अध्ययन में दक्षिण भारत के नीलगिरि नमक्कल क्षेत्र की बहुत पुरानी चट्टानों का रासायनिक और ताप-चाप परीक्षण किया गया। शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि पृथ्वी की इन चट्टानों ने दो बार नीचे धंसाव झेला।

    पहला धंसाव 2.8 से 2.5 अरब साल पहले हुआ

    करीब 2.8 से 2.5 अरब वर्ष पहले महासागर की तलहटी की चट्टानें नीचे धंसीं और वहां अत्यधिक गर्मी से पिघलकर ग्रेनाइट जैसी फेल्सिक चट्टानें बनीं। इन्हें टीटीजी चट्टानें कहा गया।

    दूसरे धंसाव में फिर से फंसी ग्रेनाइट चट्टानें

    उसके बहुत बाद, वही बनी हुई ग्रेनाइट परतें फिर से एक और धंसाव में फंस गईं। इस बार तापमान लगभग 800 डिग्री सेल्सियस और दबाव 9–10 किलोबार तक पहुंचा। इससे चट्टानें और अधिक कठोर, सघन व क्रिस्टलीय रूप में बदल गईं। इसी से बनी ग्रेन्यूलाइट फैसिज चट्टानें आज नीलगिरि क्षेत्र में मिलती हैं।

    इस तरह निष्कर्ष पर पहुंचे विज्ञानी 

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    विज्ञानियों ने चट्टानों का रासायनिक विश्लेषण किया। यह देखा कि इनमें कौन-कौन से खनिज और तत्व कितनी मात्रा में हैं। विशेष रूप से उन्होंने रेयर अर्थ एलिमेंट्स (आरईई) की तुलना की। इन रासायनिक साक्ष्यों से विज्ञानियों को विश्वास हुआ कि ये चट्टानें सिर्फ एक नहीं, बल्कि दो बार गहराई में जाकर पुनः बनीं। इसे सरल शब्दों में समझें तो पृथ्वी की पुरानी रसोई में दो बार पकने के बाद ग्रेनाइट चट्टानें बनी हैं।

    अरबों साल पहले कहीं अधिक था तापमान

    यह शोध बताता है कि प्लेट टेक्टानिक्स यानी पृथ्वी की सतह पर प्लेटों की गति बहुत पहले, आर्कियन युग में ही सक्रिय थी। अध्ययन यह भी दर्शाता है कि पृथ्वी का आंतरिक तापमान अरबों साल पहले कहीं ज्यादा था। इस अध्ययन से हमें यह भी समझने में मदद मिलती है कि पृथ्वी की महाद्वीपीय परत कैसे और कब बनी। भविष्य में यह जानकारी खनिज खोज और पृथ्वी की ऊष्मा संरचना (थर्मल स्ट्रक्चर) को समझने में मदद करेगी।

    मुख्य शोधकर्ता डा. रबिरशी चटर्जी के अनुसार यह अध्ययन पृथ्वी की प्रारंभिक विकास यात्रा को समझने में बेहद अहम है। यह दिखाता है कि हमारी पृथ्वी एक गतिशील ग्रह रही है, जहां सतह की परतें बार-बार बनती और बदलती रहीं। नीलगिरि की ये चट्टानें पृथ्वी के इतिहास की जीवित गवाह हैं।