पर्यावरण सुधार को बढ़े मंत्रीजी, सौ से ज्यादा सरकारी विद्यालयों में करेंगे पौधारोपण
कोरोना संकटकाल में जब शिक्षा महकमा अस्त-व्यस्त है शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय जोशो-खरोश के साथ शिक्षा महकमे के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने में जुटे हैं।
देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। उत्तराखंड में हरेला पर्व पर्यावरण व प्रकृति के साथ गहरी रची-बसी उसकी संस्कृति का प्रतीक है। पर्यावरण प्रेमियों और सियासतदां को यह विषय समान रूप से प्रिय है। कोरोना संकटकाल में जब शिक्षा महकमा अस्त-व्यस्त है, शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय जोशो-खरोश के साथ शिक्षा महकमे के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने में जुटे हैं। अपने गृह क्षेत्र रुद्रपुर से अस्कोट से आराकोट तक हरेला कार्यक्रम की शुरुआत कर वह अब पिथौरागढ़ होते हुए बागेश्वर पहुंचे हैं। अस्कोट चीन व नेपाल सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिले का दूरस्थ इलाका है। इसी तरह आराकोट भी सीमांत जिले उत्तरकाशी का दुर्गम क्षेत्र है। विभिन्न जिलों से होते हुए तकरीबन सौ से ज्यादा सरकारी विद्यालयों में मंत्री जी पौधारोपण करेंगे। जानने वाले कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री के चित्र के साथ छेड़ी गई उनकी ये मुहिम सियासी पर्यावरण अनुकूल बनाने की कोशिश है। हालांकि खुद शिक्षा मंत्री इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते।
खुशी को तरस गए गुरुजी
वर्षों के इंतजार के बाद प्रवक्ता बनने की खुशी नसीब हुई। तैनाती को लेकर लंबा इंतजार फिर खुशियों में सेंध लगा रहा है। प्रदेश में 1949 एलटी शिक्षकों के प्रवक्ता बनने का सफर काफी रोमांचक रहा है। राज्य लोक सेवा आयोग से पदोन्नति पर मुहर लगने के बावजूद हाईकोर्ट में चल रहे मामलों से निजात पाने में ही दस माह से ज्यादा वक्त गुजर गया। कोरोना महामारी के दौर में मामला सुलझा, लेकिन तैनाती में दिक्कतें पैदा हो गईं। कोरोना संक्रमण से बचाव के चलते शिक्षण संस्थाएं बंद हैं। तबादलों पर सरकार रोक लगा चुकी है। पदोन्नति से मिलने वाली तैनाती पर रोक नहीं है, पर काउंसिलिंग पर रोक की वजह से पेच फंसा है। तोड़ निकालने को एनआइसी को सॉफ्टवेयर तैयार करने को कहा गया। समाधान तब भी नहीं हुआ। शिक्षक शिक्षा निदेशालय के चक्कर काट रहे हैं। इंतजार की ये इंतेहा शिक्षकों की झुंझलाहट में बदल रही है।
कौशल विकास की नई उम्मीदे
प्रदेश में सरकारी स्कूलों के लिए नई व्यावसायिक शिक्षा में उम्मीदें बंध रही हैं। ये महत्वाकांक्षी योजना तकरीबन पांच साल से लागू होने को तरस गई। कक्षा नौ से 12वीं के सरकारी विद्यालयों के छात्र-छात्राओं के लिए इस योजना का खाका केंद्र सरकार ने खींचा है। कौशल विकास से जोड़ते हुए इसमें व्यावहारिक व्यावसायिक पाठ्यक्रम शामिल किए गए हैं। शिक्षा महकमा लंबे अरसे से योजना को जमीन पर उतारने के लिए पार्टनर की तलाश कर रहा है। टेंडर के जरिए व्यावसायिक पार्टनर आमंत्रित किए गए, लेकिन कोशिशें कामयाब नहीं हुईं। तकनीकी अड़चन दूर करने के बाद महकमे ने एक बार फिर टेंडर आमंत्रित किए हैं। फिलहाल टेंडर को लेकर प्रारंभिक रुझानों से महकमे के भीतर भी उम्मीदें हरी हो रही हैं। योजना अमल में लाई गई तो एक साल में राज्य के 10 हजार छात्र-छात्राओं का कौशल निखर उठेगा यानी आत्मनिर्भर भारत की ओर उत्तराखंड के कदम भी बढ़ सकेंगे।
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दूसरे तरसे, मंत्रीजी कर गुजरे
कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। दुष्यंत की इन पंक्तियों को इन दिनों उच्च शिक्षा महकमे में गुनगुनाया जा रहा है। हुआ यूं कि कोरोना महामारी की वजह से इस वर्ष तबादले नहीं करने का आदेश सरकार ने जारी किया है। इस आदेश के बावजूद कुछ महकमों ने अपने स्तर पर तबादले की कसरत शुरू की तो कार्मिक अपर मुख्य सचिव ने सख्त आपत्ति जताई, इसकी पुनरावृत्ति नहीं करने की हिदायत भी दी। कुछ दिन बाद मामला आया-गया हो गया। अब सरकारी डिग्री कॉलेजों के सात प्राचार्यों के तबादले किए गए। शासन ने आदेश जारी करते हुए सावधानी बरती और तबादले की जगह संबद्धता कर दिया। प्राचार्यों को उनकी तैनाती वाले कॉलेजों से हटाकर दूसरे कॉलेजों में भेजा गया है। बताया जा रहा है कि दुष्यंत की पंक्तियों को विभागीय मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने साकार कर दिखाया।
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