Move to Jagran APP

उत्‍तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में होगी खेती तो थमेगा पलायन

प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के निजी भूमि को कृषि आधारित उद्योगों के लिए देने से प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही रोजगार के अवसर भी पैदा होने की उम्मीद जगी है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 01:48 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jan 2020 08:25 PM (IST)
उत्‍तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में होगी खेती तो थमेगा पलायन
उत्‍तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में होगी खेती तो थमेगा पलायन

देहरादून, राज्य ब्यूरो। प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के निजी भूमि को कृषि आधारित उद्योगों के लिए देने से प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही रोजगार के अवसर भी पैदा होने की उम्मीद जगी है। विशेषकर पलायन के कारण तेजी से खाली हो रहे पर्वतीय क्षेत्रों में बंजर होती खेतों पर फिर से फसल लहलहाने की संभावनाएं बनी हैं। उद्योगों को आकर्षित करने के लिए उद्योग विभाग इनके लिए विशेष प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने के साथ ही सिंगल विंडो के जरिये वन टाइम क्लीयरेंस देने की भी तैयारी कर रहा है। वहीं, पर्यावरणविदों ने इस पहल का अच्छा बताया है लेकिन यह भी साफ किया है कि ऐसे उद्योग नहीं लगने चाहिए जो यहां की पारिस्थितिकी पर विपरीत असर डालें।

loksabha election banner

प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम में बदलाव किया गया है। इसके तहत कृषि आधारित उद्योग यानी कृषि, बागवानी, जड़ी-बूटी उत्पादन, बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन, वृक्षारोपण, पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, मुर्गी पालन, मौन पालन, मत्स्य पालन, कृषि एवं फल प्रसंस्करण, चाय बागान एवं प्रसंस्करण व वैकल्पिक ऊर्जा के लिए व्यवस्था की गई है।

 प्रदेश में इस समय छोटे व बड़े उद्योग चार मैदानी यानी देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर और नैनीताल तथा एक पर्वतीय जिले पौड़ी तक ही सिमटे हुए हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में नए उद्योग लगाने में कोई रुचि नहीं दिखा रहा है। जिसने रुचि दिखाई भी तो यहां के कड़े भू-कानून आड़े आ गए। इसे देखते हुए सरकार ने भू-कानून में संशोधन किया। इससे पलायन की मार झेल रहे पर्वतीय क्षेत्रों में नए उद्योग लगने के साथ ही पलायन के थमने और रोजगार के नए अवसर पैदा होने की संभावना बनी है। विशेष रूप से वर्ष 2018 में हुए निवेशक सम्मेलन में प्रसंस्करण, प्राकृतिक फाइबर, बागवानी, औद्यानिकी, हर्बल एवं सुगंधित उत्पाद और सौर ऊर्जा के कई करार हुए हैं। भू-कानून में संशोधन के बाद इनके परवान चढऩे के रास्ते खुले हैं। उद्योग विभाग इनसे तकरीबन तीन लाख लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद जता रहा है। 

कृषि की मौजूदा स्थिति

उत्तराखंड में कृषि को बढ़ावा देने के लिए ग्रोथ सेंटरों की स्थापना की जा रही है। हर जिले में दो यानी प्रदेश में 26 ग्रोथ सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं। औद्यानिकी का वार्षिक व्यवसाय तकरीबन 3200 करोड़ रुपये, फल उत्पादन में प्रतिवर्ष 4000 हेक्टेयर में बगान स्थापित किए जा रहे हैं। सब्जी उत्पादन की बात करें तो राज्य में तकरीबन 55 हेक्टेयर में यूरोपियन सब्जियों की पैदावार हो रही है, जिसके बढ़ने की उम्मीद है। 1533.29 हेक्टेयर में फूलों की खेती हो रही है। 188.53 हेक्टेयर में जड़ी बूटी उगाई जा रही है।

यह भी पढ़ें: पर्यावरण और विकास के सामंजस्य से उद्योग पकड़ेंगे रफ्तार

सच्चिदानंद भारती (पर्यावरणविद्) का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि को बढ़ावा देने के लिए ऐसा कदम उठाना अच्छा है। इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होगा कि उद्योग लगाने के लिए स्पष्ट नीति हो। ऐसे उद्योग बिल्कुल न लगाए जाएं जो हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण पर असर डालते हों।

यह भी पढ़ें: ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर संवारने में जुटे हैं डॉ. अनिल प्रकाश जोशी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.