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देहरादून: मनुर्भव की मुहिम, खिला बचपन, फैला उजियारा

डॉ. गिरिबाला जुयाल की एक सशक्त सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अलग पहचान है। वह करीब ढाई दशक से मलिन एवं मजूदर बस्ती के नौनिहालों के लिए कार्य कर रही हैं।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 06:00 AM (IST)
देहरादून: मनुर्भव की मुहिम, खिला बचपन, फैला उजियारा

फटे-पुराने मैले कपड़े और अंधेरी झुग्गी-झोपड़ियों में रहना इनकी नियति है। इनके लिए पढ़ाई से ज्यादा जरूरी है, दो जून की रोटी, लेकिन जब मलिन बस्तियों के यही बच्चे ओएनजीसी समेत दून के नामी संस्थानों में नाटकों का मंचन करते हैं, तो लगता है, जैसे पात्रों का चरित्र इन्होंने आत्मसात कर लिया है।

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शहर की मलिन बस्तियों में रहने वाले नौनिहालों की संख्या हजारों में है। लेकिन, राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे नौनिहालों का जीवन संवारने के लिए न तो कोई नीति है और न जज्बा ही। हां! व्यक्तिगत रूप से अंतर्रात्मा में सेवा का जज्बा लिए कुछ लोग जरूर मलिन बस्तियों के नौनिहालों का जीवन संवारने का काम कर रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं देहरादून की डॉ. गिरीबाला जुयाल।

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मनुर्भव महिला बाल कल्याण समिति की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. गिरिबाला बीते 27 सालों से समाज के निर्बल एवं संसाधनविहीन बच्चों और महिलाओं के कल्याणार्थ कार्य कर रही हैं। उन्होंने वर्ष 2004 में मनुर्भव संस्था गठित की, जो तब से देहरादून के कौलागढ़ क्षेत्र की मलिन बस्ती में रहने वाले निर्धन एवं जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित कर रही हैं।

बस्ती के कई बच्चे आज दसवीं कक्षा तक पहुंच गए हैं। इन्हें शिक्षा के साथ संस्कार का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है। यहां के बच्चों को दून के नामी संस्थानों में रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है। वह कहती हैं कि मलिन बस्तियों के बच्चे आज भी शिक्षा से काफी हद तक वंचित हैं और वहां की तस्वीर भी भयावह है। इसकी पुष्टि बिंदाल सहित एक दर्जन मलिन बस्तियों के सैकड़ों परिवारों से मिलकर होती है।

27 वर्षों से गरीब बच्चों की आशा
डॉ. गिरिबाला का कहना है कि आधुनिक समय में शिक्षा ज्ञान के साथ आर्थिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करती है। शिक्षा मनुष्य को तमाम सामाजिक बंधनों से मुक्त कर नए जीवन की ओर भी अग्रसर करती है। इस मर्म को उन्होंने 27 वर्ष पहले समझा और वर्ष 1981 में टिहरी गढ़वाल के फकोट गांव में नैनिहालों को अच्छी शिक्षा देने के लिए नर्सरी स्कूल की स्थापना की। बाद में यह स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर ने अंगीकृत किया। विद्यालय आज भी चल रहा है। इसके बाद उन्होंने निरंतर समाज के निर्बल एवं संसाधनविहीन बच्चों के उत्थान के लिए काम किया।

नशा छुड़ाना सबसे बड़ी चुनौती
डॉ. गिरिबाला के अनुसार मलिन बस्तियों के बच्चों को मुख्य धारा में लौटाना चुनौती तो है, लेकिन नशे के मकड़जाल में फंसे युवाओं को शिक्षा से जोड़ना उससे भी बड़ी चुनौती है। मजदूर माता-पिता रोजी की तलाश में सुबह घर से निकल जाते हैं और देर शाम लौटते हैं। दिनभर उनके पाल्य क्या कर रहे हैं, इसकी उन्हें जानकारी तक नहीं होती।

देखने में आया है कि 10 वर्ष से ऊपर आयु के बच्चे दिन के समय कबाड़ जमा करते है और उसे बेचकर नशा खरीदते हैं। लंबे समय तक नशे की लत पड़ने पर ऐसे बच्चे आगे चलकर अपराध की दुनिया में चले जाते हैं। गलत रास्ते पर चलने से पहले ही शिक्षा के प्रति प्रेरित करना बड़ी चुनौती है।

शिक्षा से दूर होंगी कुरीतियां
वह कहती हैं कि शिक्षा के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों और जघन्य अपराधों से मुक्ति काफी हद तक संभव है। आजादी के सात दशक बाद भी शिक्षा जनसुलभ नहीं बन सकी है। जबकि, शिक्षा के नाम पर हर साल अरबों रुपये की योजनाएं बनती हैं, लेकिन नतीजा 'ढाक के तीन पात' जैसा ही है। वैसे तो देश में प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा हासिल है, लेकिन मलिन बस्तियों के अधिकांश नौनिहाल इस अधिकार से वंचित हैं। हमें मलिन बस्तियों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

मलिन बस्तियों के लिए बने ठोस नीति
मलिन बस्तियों के लिए सरकारी स्तर पर कोई ठोस नीति नहीं है। हम बेसहारा, असहाय एवं निर्धन बच्चों के भीख मांगने की प्रवृत्ति को प्रतिबंधित करना चाहते हैं। लेकिन, उनके पुनर्वास एवं शिक्षा का प्रबंध करने की नहीं सोचते हैं।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) के मुताबिक भारत की आबादी का आठवां हिस्सा झुग्गी बस्तियों में रहता है। इससे हमें पता चलता है कि देश के लोगों को ठीक-ठाक मकान और बुनियादी सुविधाएं देने का काम कितना कठिन है।

ये हैं चुनौतियां
- मलिन बस्तियों के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करना, खासकर सरकारी क्षेत्र में ढांचागत विकास
- बुनियादी शिक्षा के मौलिक अधिकार के दायरे में मलिन और झुग्गी-झोपड़ियों को भी लेना
- गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को ज्यादा प्रभावी बनने की जरूरत, ताकि बच्चों को भोजन के लिए भीख न मांगनी पड़े
- समाज के समग्र उत्थान के लिए जरूरी है कि बचपन को बचाया जाए
- मलिन बस्तियों के बच्चों की अलग-अलग कैटेगिरी तैयार कर होनहार बच्चों को शिक्षा से जोड़ना
- नशे के मकड़जाल में फंसे नौनिहालों की काउंसिलिंग कर उन्हें निराशा एवं हीनभावना से उबारना

70 नौनिहालों के जीवन में शिक्षा के दीप

डॉ. गिरिबाला जुयाल की एक सशक्त सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अलग पहचान है। वह करीब ढाई दशक से मलिन एवं मजूदर बस्ती के नौनिहालों के लिए कार्य कर रही हैं। गिरिबाला मनुर्भव महिला बाल कल्याण समिति की संस्थापक अध्यक्ष हैं और कौलागढ़ स्थित पंचायत भवन में 70 गरीब बच्चों का जीवन शिक्षा के दीप से जगमग करने में जुटी हैं। हिंदी से एमए एवं पीएचडी गिरीबाला ने मानवाधिकार विषय पर पीजी डिप्लोमा भी किया है।

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