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देहरादून : उत्तराखंड बनने के बाद 18 साल में बहुत कुछ पाया, छूने को आसमान बाकी

स्वच्छ व सुंदर दून की दिशा में एमडीडीए रिवर फ्रंट डेवलपमेंट व पार्कों के विकास की दिशा में काम कर रहा है ।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sat, 21 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jul 2018 06:00 AM (IST)
देहरादून : उत्तराखंड बनने के बाद 18 साल में बहुत कुछ पाया, छूने को आसमान बाकी

सुमन सेमवाल, जागरण संवाददाता

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दून का इतिहास वैसे तो करीब 343 साल पुराना है, मगर शुरुआत करते हैं नौ नवंबर 2000 से, जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य का उदय हुआ था। तब देहरादून ने महज एक जिले से आगे बढ़कर अस्थाई राजधानी के रूप में अपनी शुरुआत की। कहते हैं कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है।

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दून को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी। राजधानी बनने के बाद मानव दबाव बढ़ा तो हरियाली का हिस्सा कम होने लगा। वाहनों की संख्या बढ़ने लगी और सड़कों की क्षमता को बढ़ाने के लिए नहरों को भूमिगत करना ही एकमात्र चारा बच गया। कुछ डिपार्टमेंटल स्टोर तक सीमित दून के बाजारों ने शॉपिंग मॉल्स और मल्टी प्लेक्स तक का सफर भी तय कर लिया।

रिहायशी इलाकों ने बंगले से बाहर निकलकर फ्लैट कल्चर को आत्मसात करना शुरू कर दिया और शहर की आबादी दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ने लगी। बीते 18 सालों में दून की आबादी में 40 फीसद से अधिक का इजाफा हो गया है।

जाहिर है कि बढ़ती आबादी के साथ ढांचागत विकास को भी रफ्तार पकड़ना बाकी था। वाहनों की संख्या इस अंतराल में 300 फीसद बढ़ जाने के चलते सड़कें पैक होने लगी। बिजली के इंतजाम भी नाकाफी होने लगे और पेयजल, सीवरेज व्यवस्था और कूड़ा निस्तारण की दिशा में भी क्रांतिकारी परिवर्तन की जरूरत महसूस होने लगी।

सबसे पहले रोड-ट्रांसपोर्ट सिस्टम की बात करें तो आज दून में तीन फ्लाईओवर (आईएसबीटी, बल्लीवाला, बल्लूपुर) अस्तित्व में आ चुके हैं। जबकि हरिद्वार बाईपास रोड पर दो रेलवे ओवर ब्रिज (आरओबी) और सहारनपुर रोड पर डाटकाली मंदिर के पास डबल लेन टनल का निर्माण अंतिम चरण में है।

इसके अलावा रानीपोखरी-रायपुर डबल लेन मार्ग अस्तित्व में आ गया, पहाड़ों की रानी मसूरी को जोड़ने वाली सड़क को चौड़ा कर दिया गया और एक वैकल्पिक मार्ग (लंबीधार-किमाड़ी) वाहनों के संचालन के लिए लगभग तैयार है।

हरिद्वार-देहरादून राजमार्ग और बाईपास रोड (आइएसबीटी से अजबपुर कलां रेलवे क्रॉसिंग) का चौड़ीकरण का काम मुश्किल दौर से बाहर आ चुका है, शहर में कई नहरों को भूमिगत कर वहां कैनाल रोड अस्तित्व में आ चुकी है। शिमला बाईपास रोड को भी अपेक्षित रूप से चौड़ा कर दिया गया है। साथ ही भविष्य में शहर के चारों तरफ रिंग रोड का खाका बुना जा रहा है। अब बात करते हैं पेयजल इंतजाम की।

दून में वर्तमान में मांग से अधिक पेयजल उपलब्ध है, यह बात और है कि वितरण प्रणाली की खामी के चलते रोजाना करीब छह करोड़ लीटर पानी बर्बाद हो जाता है और तीन करोड़ लीटर पानी कम पड़ जाता है। वहीं, ऊर्जा प्रदेश होने के नाते दून में बिजली की मांग 03-3.5 मिलियन यूनिट के सापेक्ष इतनी ही बिजली उपलब्ध भी करा दी जाती है।

दूसरी तरफ बिजली व्यवस्था में सुधार के लिए तमाम और काम किए जा रहे हैं। इसी तरह सीवरेज और कूड़ा निस्तारण, शहर की हरियाली को बचाने की दिशा में भी कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है। अब बात करते हैं ढांचागत विकास से हुए नुकसान भी भरपाई की। विकास की दौड़ में हम वर्ष 2000 से 2015 के बीच 30 हजार से अधिक पेड़ों का कटान कर चुके हैं। घटती हरियाली और बढ़ते वाहनों के चलते वायु प्रदूषण में दून देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में छठे स्थान पर जा पहुंचा है।

हालांकि स्वच्छ व सुंदर दून की दिशा में एमडीडीए रिवर फ्रंट डेवलपमेंट व पार्कों के विकास की दिशा में काम कर रहा है। इस तरह की परियोजनाओं के परवान चढऩे के बाद हम विकास बनाम विनाश के बीच भी समन्वय स्थापित कर लेंगे। शायद तब बहुत कुछ पाने और काफी कुछ पीछे छोड़ने के बाद भी दून अपने उम्मीदों के आसमान को छू सकेगा।

इन परियोजनाओं से ढांचागत विकास को मिलेगा बूम
मेट्रो रेल परियोजना
- देहरादून समेत, इससे जुड़े हरिद्वार, ऋषिकेश को मेट्रो पोलिटन क्षेत्र घोषित किया जा चुका है।
- इसके तहत दून शहर के भीतर लगभग 24 किमी लंबे दो कॉरीडोर करीब 3,372 करोड़ रुपये की लागत से प्रस्तावित हैं। वहीं, देहरादून से नेपाली फार्म (करीब 5026 करोड़ रुपये) और हरिद्वार से ऋषिकेश के बीच दो और कॉरीडोर (करीब 4740 करोड़ रुपये) बनाए जाने हैं।

एयर टैक्सी का होगा संचालन
एमडीडीए ने शहर के विभिन्न रूट को जोड़ने और जाम से मुक्ति दिलाने के लिए एयर टैक्सी (पॉड टैक्सी) की योजना बनाई है, जिस पर तेजी से काम किया जा रहा है।

ऑन स्ट्रीट पार्किंग से सुधरेंगे हालात
राजपुर रोड पर घंटाघर से सिलवर सिटी तक दोनों तरफ सड़क किनारे अत्याधुनिक पार्किंग (ऑन स्ट्रीट पार्किंग) की सुविधा पर एमडीडीए काम कर रहा है।

रेलवे स्टेशन का होगा आधुनिकीकरण
ऐतिहासिक देहरादून रेलवे स्टेशन को एमडीडीए और रेलवे मिलकर आधुनिक स्वरूप देने में जुटे हैं। इससे इस पूरे क्षेत्र में जाम की समस्या से निजात मिल पाएगी।

स्मार्ट सिटी परियोजना से कोर क्षेत्र का विकास
शहर के कोर क्षेत्र (875 एकड़) को स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत विकसित किया जाएगा। इसके लिए देहरादून स्मार्ट सिटी कंपनी का गठन भी कर लिया गया है और धरातल पर तेजी से काम किया जा रहा है। ताकि यातायात व्यवस्था से लेकर अन्य सुविधाओं को स्मार्ट बनाया जा सके।

बचेगा भूजल, लाइनें होंगी सुदृढ़
दून में 90 फीसद तक जलापूर्ति भूजल से की जा रही है। अच्छी बात यह है कि ऐसे में भूजल का दोहन नियंत्रित करने के लिए सिंचाई विभाग नीति बना रहा है। साथ ही जिन जर्जर पेयजल लाइनों से रोजाना छह करोड़ लीटर पानी बर्बाद हो जाता है, उन्हें बदलने का काम अंतिम चरण में है। कई लाइनें बदली भी जा चुकी हैं।

मुख्य मार्गों की बिजली लाइनों को किया जाएगा भूमिगत
शहर के मुख्य मार्गों की अधिक लोड वाली बिजली की लाइनों को भूमिगत किए जाने की दिशा में भी तेजी से काम चल रहा है। अभी इस व्यवस्था के अभाव में हाई टेंशन लाइनों में खामी आने की काफी अधिक शिकायतें रहती हैं। हालांकि लाइनों के भूमिगत हो जाने के बाद इस तरह की दिक्कत दूर हो जाएगी।

इसके लिए एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) से 500 करोड़ रुपये से लोन लेने की प्रक्रिया गतिमान है। उम्मीद है कि इस साल यह लोन स्वीकृत हो जाएगा। इसके बाद बिजली व्यवस्था की पूरी तस्वीर ही बदल जाएगी।

स्काडा सिस्टम पर भी काम
दून की बिजली व्यवस्था को स्काडा व्यवस्था से लैस करने के लिए तेजी से काम चल रहा है। इसके तहत ऊर्जा निगम मुख्यालय में कंट्रोल रूम बनाया जा रहा है। शहर में जहां पर भी फॉल्ट आएगा, ऑटोमैटिक ही वह पकड़ में आ जाएगा। फॉल्ट को दूर करने के लिए संबंधित क्षेत्र की बिजली आपूर्ति बंद कर अन्य इलाकों में बिजली आपूर्ति जारी रहेगी। इसका लाभ निश्चित तौर पर प्राप्त होगा और उपभोक्ताओं की समस्याएं भी जल्द दूर हो सकेंगी।

मजबूत सीवरेज सिस्टम को चल रहा काम
चार-पांच साल पहले तक 6.5-07 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) सीवर रिस्पना और बिंदाल नदी में उड़ेला जाता है, जबकि अब 15 एमएलडी से अधिक सीवर का निस्तारण करने के लिए दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मौजूद हैं। चुनौती सिर्फ इस बात की है कि अभी सीवर लाइन के बड़े नेटवर्क को प्लांट से नहीं जोड़ा जा सका है। 

खासकर शहर के पुराने हिस्से में मौजूद करीब 25 फीसद सीवर लाइनों को बदला जाना जरूरी है। हालांकि इसके लिए अमृत योजना में भी काम चल रहा है और उत्तराखंड अर्बन सेक्टर डेवलपमेंट एजेंसी (यूयूएसडीए) को एडीबी से 1700 करोड़ रुपये का नया लोन मिलने जा रहा है।

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