देहरादूनः विद्यार्थियों की बाट जोहते सरकारी स्कूल
कड़वी सच्चाई यह है कि देहरादून के सरकारी स्कूल-कॉलेजों में सभी सुविधाएं होने के बावजूद वहां विद्यार्थियों की संख्या घटती जा रही है।
शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की के भले ही हम लाख दावे करें, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि देहरादून के सरकारी स्कूल-कॉलेजों में सभी सुविधाएं होने के बावजूद वहां विद्यार्थियों की संख्या घटती जा रही है। दूसरी तरफ, निजी स्कूलों की संख्या में इजाफा होने के बाद भी वहां छात्रों की भीड़ साल दर साल बढ़ती जा रही है। सरकारी क्षेत्र की शिक्षा भी छात्र का बेहतर भविष्य संवार सकती है, जब तक यह भरोसा हम आम अभिभावकों के मन में पैदा नहीं कर लेते, तब तक सही मायने में शैक्षिक उन्नयन की बात बेमानी है। यह कहना है कि 21 वर्षों से गरीब बच्चों के शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रहीं राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता शिक्षिका डॉ.पूनम शर्मा का।
डॉ. शर्मा कहती है कि देहरादून में संपन्न परिवार पहले से ही अपने बच्चों को दून, वेल्हम जैसे नामी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। आज भी इन स्कूलों में संपन्न परिवारों के बच्चों का आधिपत्य है। नीति नियंता यदि शिक्षा में आमूलचूल बुनियादी परिवर्तन लाने के इच्छुक हैं तो उन्हें यहां के सरकारी स्कूलों में घटती छात्रों की संख्या में ध्यान देना होगा।
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उनके मुताबिक सरकारी शिक्षा का समुचित विस्तार न होने के पीछे हम खुद जिम्मेदार हैं। सरकार के स्तर पर आधुनिक बुनियादी शिक्षा पर कभी जोर नहीं दिया गया। इसका परिणाम यह है कि निजी स्कूलों की महंगी शिक्षा के मुकाबले सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले प्रतिभावान बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़ते जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को भी शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद समेत व्यक्तित्व विकास के मोर्चे पर मजबूत किया जाए, ताकि वे निजी स्कूलों के विद्यार्थियों का मुकाबला कर सकें। यह कोई कठिन कार्य भी नहीं। जरूरत है तो बस सरकारी स्कूलों के शिक्षक इस तरफ गंभीरता से ध्यान केंद्रित करें।
12 किमी में 169 सरकारी स्कूल
डॉ. पूनम के अनुसार दून शहर के 12 किलोमीटर के दायरे में 169 सरकारी स्कूल (प्राइमरी, जूनियर हाईस्कूल, इंटर कॉलेज) हैं। इनमें करीब 900 शिक्षक हैं, जो पूरी तरह योग्य और प्रशिक्षित हैं। यही नहीं, करीब अस्सी फीसद स्कूलों में प्रयोगशालाएं व उपकरण भी मौजूद हैं। इस सबके बावजूद सरकारी स्कूलों में छात्रों की बेहद कम संख्या संख्या चौंकाने वाली है।
स्थिति यह है कि कुछ प्राइमरी स्कूलों में प्रति विद्यालय शिक्षकों की संख्या चार से पांच है, जबकि विद्यार्थियों की संख्या महज 30-35 के बीच है। कुछ ऐसा ही हाल जूनियर व इंटर कॉलेजों का भी है। वह कहती हैं कि सरकारी स्कूल- कॉलेजों की तरफ विद्यार्थियों का रुझान बढ़े, इसके लिए अभिभावकों के मन में यह विश्वास पैदा करना होगा कि निजी स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूलों के शिक्षक ज्यादा दक्ष एवं उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। और बेहतर शिक्षण कार्य कराने के योग्य हैं। दूसरी ओर, देहरादून में निजी स्कूलों की संख्या ढ़ाई सौ के आसपास है, जिनमें करीब 28 हजार से अधिक बच्चे पढ़ते हैं।
2030 तक लक्ष्य हासिल करना चुनौती
वह कहती हैं कि संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट खास मायने रखती है कि भारत 2030 तक सबको शिक्षा देने के लक्ष्य से काफी पीछे रह जाने वाला है। हाल ही में जारी हुई रिपोर्ट बताती है कि इस दिशा में जारी प्रयास अगर पूर्ववत बने रहे, तो इस लक्ष्य से 50 साल पीछे छूट जाएंगे। इसके हिसाब से देश सबको प्राथमिक शिक्षा 2050 तक ही दिला पाएगा और सबको सेकेंडरी स्तर तक की शिक्षा दिलाना 2060 व तक संभव होगा।
स्थिति की गंभीरता का अंदाजा तब होता है, जब हम याद करते हैं कि हमारी सरकार ने 2015 में बड़े आत्मविश्वास के साथ संयुक्त राष्ट्र के उस टिकाऊ विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डिवलपमेंट गोल्स) को 2030 तक हासिल करने के संकल्प पर हस्ताक्षर किए थे।
गरीब बच्चों की शिक्षा जीवन का उद्देश्य
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के देवबंद निवासी डॉ. पूनम शर्मा को उल्लेखनीय कार्यों के लिए वर्ष 1996 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका शिक्षा के क्षेत्र में लंबा योगदान है। वह शिक्षा के अलावा अनवरत संस्था से भी जुड़ी हैं, जो गरीब बच्चों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। इलाहाबाद विवि से एमएससी बॉटनी कर उन्होंने एलटी राजकीय महिला ट्रेनिंग कॉलेज इलाहाबाद से की और उत्तर प्रदेश टॉप किया। इसी विवि से उन्होंने एमएड में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। वर्ष 1991 में उनका विवाह देहरादून में जीवन लाल शर्मा के साथ हुआ, जो पीएनबी में हैं। डॉ. पूनम शर्मा 21 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं और वर्तमान में सनराइज एकेडमी मैनेजमेंट सोसायटी रायपुर में प्राचार्या के पद पर कार्यरत हैं।
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