देहरादून के विकास को मिल रहा बिजली के 'करंट' से बूम
बिजली व्यवस्था में सुधार की बात तब आई, जब वर्ष 2003-04 में एक्सलेरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्मस प्रोग्राम लॉन्च किया गया।
किसी भी ढांचागत विकास (इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट) की कल्पना ऊर्जा के बिना नहीं की जा सकती। ढांचागत विकास में ऊर्जा की भूमिका तब और अहम हो जाती है, जब कोई शहर विकास की सीढ़ी चढ़ रहा होता है। वर्ष 2000 में जब पृथक राज्य के रूप में उत्तराखंड का गठन हुआ और देहरादून को अस्थाई राजधानी बनाया गया तो शहरीकरण ने भी रफ्तार पकड़ ली। उस समय दून शहर की आबादी करीब चार लाख थी और शहर का विस्तार नगर निगम सीमा तक ही सिमटा था।
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जबकि आज 60 वार्डों के नगर निगम का विस्तार 100 वार्डों तक किया जा रहा है। आबादी भी बढ़कर (नगरीय रूप धारण कर चुके आसपास के इलाकों को मिलाकर) नौ लाख को पार कर गई है। अच्छी बात यह कि इस बढ़ती आबादी और बढ़ते शहरीकरण की जरूरतों को पूरा करने के लिए बिजली व्यवस्था में न सिर्फ अपेक्षित सुधार हुआ, बल्कि इसका असर भी नजर आया है।
ऊर्जा निगम के सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता (स्तर प्रथम) एनके जोशी कहते हैं कि बिजली आपूर्ति के संसाधनों में तीन गुना तक इजाफा हो चुका है। यदि ऐसा नहीं होता तो दून को कटौतीमुक्त करना संभव नहीं हो पाता। राज्य गठन के समय दून में कटौती आम बात थी। बिजली व्यवस्था में पहली बार अपेक्षित सुधार की बात तब आई, जब वर्ष 2003-04 में एक्सलेरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्मस प्रोग्राम (एपीडीआरपी) लॉन्च किया गया।
इस प्रोग्राम के तहत दून में नए बिजली घर बनाए गए और लाइनों की लोड क्षमता भी बढ़ाई गई। बढ़ती आबादी और शहरीकरण के बीच बिजली की व्यवस्था नाकाफी साबित होने लगी। राजधानी दून को कटौतीमुक्त करने के बाद भी लचर व्यवस्था के चलते लोगों को घंटों अघोषित बिजली कटौती झेलनी पड़ती थी।
व्यवस्था में सुधार को ये हुए प्रयास
जोशी बताते हैं कि वर्ष 2014 में जब रीस्ट्रक्चर्ड एक्सलेरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्मस प्रोग्राम (आर-एपीडीआरपी) आया तो बिजली व्यवस्था में तेजी से सुधार होने लगे। यह योजना अब अंतिम चरण में है। इसके तहत ईसी रोड पर दो गुणा 05 मेगा वोल्ट एंपियर (एमवीए) व मोथरोंवाला में 02 गुणा 10 एमवीए के बिजली घर बना दिए गए हैं।
इससे शहर के कम से कम 40 हजार लोगों की बिजली आपूर्ति में सुधार हुआ है। साथ ही 600 और नए ट्रांसफार्मर लग जाने के बाद बिजली व्यवस्था को नहीं ऊर्जा मिली। करीब 191 करोड़ रुपये की इस योजना में 150 करोड़ रुपये के आसपास के काम किए जा चुके हैं। जुलाई माह की ही बात करें तो दून में किसी भी दिन रोस्ट्रिंग नहीं की गई। दूसरी तरफ शहर में अब कोई ऐसा इलाका नहीं है, जहां लो वोल्टेज की शिकायत की हो। जबकि पांच-छह साल पहले तक कई इलाकों से लो-वोल्टेज की शिकायत मिलती थी।
बंच केबल से थमी बिजली चोरी
दून में बिजली चोरी पर भी प्रभावी अंकुश लग पाया है। यह संभव हुआ है एयर बंच केबल से। शहर में करीब 650 किलोमीटर बंच केबल डाले जाने के बाद बड़े इलाके में कंटिया डालकर बिजली चोरी करने की प्रथा पर अंकुश लग चुका है। इस समय ऊर्जा निगम के पास ऐसे उपकरण मौजूद हैं, जिससे बिजली के मीटरों को धीमा करने या उनमें किसी भी तरह की गड़बड़ी को पकड़ा जा सकता है। आरएपीडीआरपी के तहत ज्यादातर मीटर घरों के बाहर लग जाने से बिजली चोरी या मीटर में छेड़छाड़ की घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लग गया है।
अंधड़ में कम गुल हो रही बिजली
बंच केबल लग जाने के बाद अंधड़ के समय बिजली गुल होने की समस्या पर प्रभावी अंकुश लग पाया है। जैसे-जैसे बंच केबल डालने का काम आगे बढ़ेगा, शहर में फॉल्ट आने की समस्या में भी उसी अनुपात में कमी आने लगेगी। इसके अलावा भी लाइनों में सुधार हुआ है, जहां अंधड़ से बिजली चली भी जाती है, वहां भी दो-तीन घंटे में हालात सामान्य कर दिए जाते हैं। पहले तो एक-दो दिन तक भी स्थिति काबू में नहीं आ पाती थी।
मुख्य मार्गों की लाइनें होंगी भूमिगत
शहर के मुख्य मार्गों की अधिक लोड वाली बिजली की लाइनों को भूमिगत किए जाने की दिशा में भी तेजी से काम चल रहा है। अभी इस व्यवस्था के अभाव में हाई टेंशन लाइनों में खामी आने की काफी अधिक शिकायतें रहती हैं। हालांकि लाइनों के भूमिगत होने के बाद इस तरह की दिक्कत दूर हो जाएगी। इसके लिए एडीबी (एशियन डेवलपमेंट बैंक) से 500 करोड़ रुपये से लोन लेने की प्रक्रिया गतिमान है। उम्मीद है कि इस साल यह लोन स्वीकृत हो जाएगा। इसके बाद बिजली व्यवस्था की पूरी तस्वीर ही बदल जाएगी।
स्काडा सिस्टम पर चल रहा काम
दून की बिजली व्यवस्था को स्काडा व्यवस्था से लैस करने के लिए तेजी से काम चल रहा है। इसके तहत ऊर्जा निगम मुख्यालय में कंट्रोल रूम बनाया जा रहा है। शहर में जहां पर भी फॉल्ट आएगा, आटोमैटिक ही वह पकड़ में आ जाएगा। फॉल्ट को दूर करने के लिए संबंधित क्षेत्र की बिजली आपूर्ति बंद कर अन्य इलाकों में बिजली आपूर्ति जारी रहेगी। इसका लाभ निश्चित तौर पर प्राप्त होगा और उपभोक्ताओं की समस्याएं भी जल्द दूर हो सकेंगी।
डिमांड के बराबर ही है आपूर्ति
इस समय राज्य की बिजली आपूर्ति की बात करें तो यह मांग के बराबर ही है। इसकी बड़ी वजह यह कि प्रदेश की मांग के आधे हिस्से से अधिक बिजली राज्य के भीतर से ही प्राप्त हो जाती है। क्योंकि राज्य में बिजली उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं और निकट भविष्य में कई परियोजनाओं पर काम शुरू हो सकेगा।
बिजली आपूर्ति की स्थिति (मिलियन यूनिट में)
- राज्य में उत्पादन, 24.34
- केंद्रीय शेयर से प्राप्त, 17.10
- अन्य स्रोत, 2.46
- कुल आपूर्ति, 43.9
- कुल मांग, 43.94