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दून की अर्थव्यवस्था को दक्ष हाथों की जरूरत

150 से अधिक निर्माण व अन्य सेवाओं में काम कर रहे हैं। बावजूद इसके कुशल कामगारों की संख्या 10 हजार से भी कम है।

By Krishan KumarEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 10:40 AM (IST)
दून की अर्थव्यवस्था को दक्ष हाथों की जरूरत

अर्थव्यवस्था के आइने में दून को देखें तो पता चलता है कि निर्माता वर्ग भी है, उसे बाजार मुहैया कराने वाले प्रतिष्ठान भी और उपभोक्ताओं का भी बड़ा वर्ग है। यही कारण है कि इंडस्ट्रियल और कमर्शियल सेक्टर में राज्य गठन से अब तक 100 फीसद से अधिक का इजाफा हो गया है। इंडस्ट्री, बाजार और उपभोक्ता के इस चक्र को सुचारू व सफल तरीके से चलाने में सबसे अहम भूमिका होती है, उन हाथों की, जो एक कार्मिक या श्रमिक के रूप में काम करते हैं। कामगारों की भी इस शहर में कमी नहीं है, फिर भी एक कमी हमेशा से खलती आ रही है, वह है दक्ष हाथों की। यह कहना है कि उत्तराखंड इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष पंकज गुप्ता का।

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पंकज गुप्ता के मुताबिक दून में इस समय निर्माण व सेवा सेक्टर में 1.53 लाख से अधिक लोग काम कर रहे हैं। ये लोग 150 से अधिक निर्माण व अन्य सेवाओं में काम कर रहे हैं। बावजूद इसके कुशल कामगारों की संख्या 10 हजार से भी कम है। जबकि इस समय यह मांग कम से कम 20 हजार की है। वर्ष 2022 की बात करें तो हमें 50 हजार से अधिक कुशल कामगारों की जरूरत पड़ेगी। कुशल कार्मिकों की कमी के चलते इंडस्ट्री व बाजार का एक बड़ा वर्ग अभी भी दून में आने से कतराता है।

प्रशिक्षित कामगारों के लिए बाहरी राज्य का सहारा

दून में जो कुशल कामगार हैं भी, उनमें अधिकतर बाहरी राज्यों के लोग शामिल हैं। जबकि यह तय किया गया है कि किसी भी इंडस्ट्री में 70 फीसद स्थानीय रोजगार पैदा किया जाएगा। यानी स्थानीय लोगों को बढ़ावा दिया जाएगा। स्थानीय रोजगार पैदा करने में इंडस्ट्री व कमर्शियल सेक्टर को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन फिर सवाल वहीं पर आकर खड़ा हो जाता है। दून में जो भी कारोबार हो रहा है, उसमें स्थानीय स्तर पर कुशल श्रमिकों का घोर अभाव है। ऐसे में 70 फीसद स्थानीय रोजगार की पूर्ति के लिए यहां के लोगों को छोटी-मोटी जिम्मेदारी तक सीमित कर दिया जाता है। हालांकि, एसोसिएशन के अध्यक्ष पंकज गुप्ता का कहना है कि कौशल विकास, स्टार्ट-अप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया, मुद्रा योजना जैसी योजनाओं को ढंग से धरातल पर उतारा जाए तो कुशल कामगारों की मांग व आपूर्ति की कमी को पूरा किया जा सकता है। इसके साथ ही यहां के स्थानीय युवाओं को सिर्फ सरकारी नौकरी पर फोकस करने की प्रवृत्ति से भी बाहर निकलकर विचार करने की जरूरत है। क्योंकि सरकार कितने भी प्रयास कर ले, एक सूक्ष्म संख्या से हटकर रोजगार पैदा नहीं किए जा सकते हैं।

महिलाओं की भागीदारी 16 फीसद
उत्तराखंड इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष पंकज गुप्ता जनगणना-2011 के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहते हैं कि निर्माण व सेवा सेक्टर में जो लोग काम कर भी रहे हैं, उनमें महिलाओं व कुशल महिला कामगारों की संख्या ना के बराबर है। 16 फीसद भी कुल महिला कामगारों की संख्या है। इनमें कुशल हाथों की बात करें तो यह आंकड़ा कुल प्रशिक्षित कामगारों में पांच फीसद भी नहीं है।

दून में कामगारों की तस्वीर
कुल कामगार, 1.53 लाख
पुरुष कामगार, 1.28 लाख
महिला कामगार, 25.02 हजार

50 प्रकार के काम में है संभावनाएं
दून में रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। जनगणना-2011 के आंकड़ों पर ही गौर करें तो पता चलता है कि यहां लोग 150 से अधिक क्षेत्र में कामधंधा कर रहे हैं। इसमें 84 क्षेत्र तो उत्पादन से ही संबंधित हैं। इसके अलावा राजधानी बनने के बाद से दून में निर्माण सेक्टर ने भी तेजी से बूम किया है। सेवा सेक्टर में भी रोजगार के तमाम अवसर निरंतर बढ़ रहे हैं। खासकर सेलाकुई, पटेलनगर, मोहब्बेवाला व आइटी पार्क जैसे इंडस्ट्रियल क्षेत्रों में रोजगार के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। दूसरी तरफ शहरीकरण के रफ्तार पकडऩे और मेट्रो शहरों की तर्ज पर बढ़ते बाजारवाद ने इस अवसर को बेहतर किया है।

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