देहरादून: सामाजिक सरोकारों को लेकर एक सशक्त आवाज़
उत्तराखंड हिमालय के भूगोल और आमजन को केंद्र में रखकर यहां के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और विकामूलक उत्तर तलाशना इस लोक संगठन धाद का अभीष्ट है।
आम धारणा है कि सामाजिक चिंता केवल बुद्धिजीवियों, अकादमिक संस्थाओं या नेतृत्व के स्तर पर ही उठाई जाती हैं। इस समझ के बरअक्स समाज में घटने वाली किसी भी घटना का आमजन पर गहरा असर पड़ता है और वह अपने स्तर पर न सिर्फ इससे चिंतित होता है, बल्कि सवाल उठाता है, जवाब तलाशता है, बहस खड़ी करता है, गतिविधियों में शामिल होता है अथवा कुछ करने की पहल करता है। कभी वह यह पहल, कोशिश, चिंता, सवाल, बहस एक समूह में करता है। ऐसा ही समूह है 'धाद'। उत्तराखंड की लोकभाषाओं में धाद का अर्थ है 'आवाज़' लगाना।
अर्थात आवाज देना या आह्वान करना। उत्तराखंड हिमालय के भूगोल और आमजन को केंद्र में रखकर यहां के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और विकामूलक उत्तर तलाशना इस लोक संगठन धाद का अभीष्ट है। अपने 31 साल के अब तक के सफर में धाद न सिर्फ समाज में अपनी सशक्त उपस्थिति बनाए हुए है, बल्कि उसकी अपनी तरह की अलग सामाजिक यात्रा है।
एक कोना कक्षा का
शिक्षा में सामाजिक सहकार के लिए 'एक कोना कक्षा का', यह धाद की पहल है, जिसमें ऐसे सभी सरकारी स्कूलों की कक्षाओं को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जो आज के दौर में पीछे रह गए हैं। इसके लिए धाद ने हर कक्षा को चार कोनों में विभाजित किया, जिसमें समाज के सहयोग से पुस्तकें, खेल सामग्री व शैक्षिक उन्नयन में सहयोग दिया जाता है। कक्षा के एक कोने के लिए एक व्यक्ति के न्यूनतम सौ रुपये के सहयोग से उन्हें रचनात्मक पुस्तकें दी जाती हैं। मंशा ये है कि कक्षा का वातावरण बेहतर बन सके। इसमें कोई भी सहयोग दे सकता है। धाद के सचिव तन्मय ममगांई बताते हैं कि अभी तक देहरादून में 30, कोटद्वार में 13 और चमोली में एक कोना स्थापित किया गया। यही नहीं, विद्यार्थियों को बाल पत्रिकाएं भी दी जा रही हैं।
लोक परंपराओं की पुनर्स्थापना
उत्तराखंड की लोक परंपराओं को आधुनिक संदर्भों में जनसहभागिता के साथ पुन: स्थापित करने की दिशा में धाद जुटा है। 2010 से प्रारंभ हुई इस पहल के तहत प्रकृति पर्व हरेला, घी संग्रांद, फुलदेई को लेकर प्रयास किए गए हैं। यही नहीं, पारंपरिक होली गीत, दीपावली के बारे में भी शहरी क्षेत्र के जनमानस को रूबरू कराया जा रहा है। हरेला पर्व की मुहिम में तो विभिन्न विभाग भी भागीदारी निभा रहे हैं।
लोकभाषा संरक्षण की मुहिम
उत्तराखंड की लोकभाषाओं के संरक्षण की कड़ी में धाद ने अहम मुहिम प्रारंभ की है। इसके तहत वर्ष 1987 से लोकभाषा गढ़वाली के संरक्षण को सामाजिक अभियान चल रहा है। यही नहीं, राज्य की लोकभाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए हस्ताक्षर अभियान का क्रम जारी है।
संकट की घड़ी में सहयोग
वैचारिक पहल के साथ ही धाद ने संकट की घड़ी में राहत कार्यों में हाथ बंटाने के साथ ही अपने स्तर से यथासंभव मदद का प्रयास किया है। केदारनाथ त्रासदी में प्रभावित 175 विद्यार्थियों की शिक्षा और आजीविका प्रोत्साहन के लिए कार्ययोजना पर धाद कार्य कर रहा है।