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आपदा न्यूनीकरण: कदम बढ़े, मगर मंजिल तक पहुंचना अभी बाकी

आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में आपदा न्यूनीकरण के लिए काफी कुछ हुआ है लेकिन चुनौतियों से पार पाने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में अभी चुनौतियों का अंबार है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 03:12 PM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2020 03:12 PM (IST)
आपदा न्यूनीकरण: कदम बढ़े, मगर मंजिल तक पहुंचना अभी बाकी
आपदा न्यूनीकरण: कदम बढ़े, मगर मंजिल तक पहुंचना अभी बाकी।

देहरादून, राज्य ब्यूरो। प्रकृति पर किसी का वश नहीं, मगर उसके साथ तालमेल बैठाकर चलने में ही समझदारी है। इस लिहाज से आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में आपदा न्यूनीकरण के लिए काफी कुछ हुआ है, लेकिन चुनौतियों से पार पाने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। विशेषकर, पर्वतीय क्षेत्र में चुनौतियों का अंबार है। आपदा आने पर सबसे बड़ी चुनौती वहां पहुंचने और सूचनाओं के आदान-प्रदान की है। इनसे पार पाने के लिए ठोस कदम उठाने के साथ ही जनजागरण पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

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समूचा उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से संवेदनशील है। भूकंपीय दृष्टि से राज्य जोन-चार व पांच में है तो वर्षाकाल में अतिवृष्टि, भूस्खलन, बादल फटने जैसी आपदाएं हर साल ही जान-माल के नुकसान का सबब बनती आ रही हैं। लगातार आपदाओं के चलते पर्वतीय क्षेत्रों में गांवों के लिए खतरा बढ़ रहा है। इस सबको देखते हुए ही राज्य में आपदा प्रबंधन मंत्रालय गठित किया गया, ताकि आपदा न्यूनीकरण की दिशा में कदम उठाए जा सकें।

इस नजरिये से देखें तो 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद सभी जिलों में राज्य आपदा प्रतिवादन बल (एसडीआरएफ) की तैनाती की जा चुकी है। तहसील स्तर पर सैटेलाइट फोन दिए जा चुके हैं। खोज और बचाव कार्यों के लिए त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली (आइआरएस) लागू है। युवक मंगल दलों को प्रशिक्षित भी किया गया है। बावजूद इसके, आपदा आने के बाद बचाव एवं राहत कार्यों में हाथ-पांव फूल जाते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों का आलम ये है कि आपदा आने पर सूचनाओं का आदान-प्रदान तक नहीं हो पाता। साथ ही दुरुह क्षेत्रों तक पहुंच भी बड़ी चुनौती है।

असल में, राज्य के गांवों के बीच दूरी बहुत अधिक है। एक ही ग्रामसभा के अलग-अलग तोकों के बीच ही काफी दूरी है। तोक बिखरे होने की वजह से भी आपदा प्रभावित स्थलों तक पहुंचना आसान नहीं होता। इस बीच पहाड़ी क्षेत्रों में भी भवन निर्माण का पैटर्न बदला है। पत्थरों के स्थान पर बनने वाले घर अब ईंट, सीमेंट से बन रहे हैं। ऐसे में ये भूकंपरोधी हैं या नहीं, यह अंकन करना अपने आप में चुनौती है।

दूरस्थ क्षेत्रों के लिए क्यूडीए बनेगा वरदान

राज्य के सुदूरवर्ती गांवों के नो सिग्नल एरिया में संचार के मद्देनजर एसडीआरएफ ने नवीनतम प्रणाली क्यूडीए (क्विक डिप्लोएबल एंटीना) का उपयोग शुरू कर दिया है। ऐसा करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है। मुख्यमंत्री ने इस प्रणाली की शुरुआत कर सीमांत क्षेत्रों के गांवों के निवासियों से संपर्क किया था। ऐसे में उम्मीद जगी है कि अब दूरस्थ क्षेत्रों में आपदा की स्थिति में इसकी तुरंत जानकारी मशीनरी को मिल सकेगी और बचाव और राहत कार्य तत्काल प्रारंभ हो सकेंगे।

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उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला का कहना है कि प्रकृति कहीं भी कभी और किसी को भी चौंका सकती है। अलबत्ता, आपदा के नुकसान को कम से कम करने के मद्देनजर क्षमताओं और तकनीकी में इजाफा किया जा रहा है। हालांकि, चुनौतियां हैं, लेकिन इनसे पार पाने के लिए हरंसभव प्रयास किए जा रहे हैं।

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