उत्तराखंड के एजुकेशन हब के दामन पर लग रहे हैं यौन उत्पीड़न के दाग
दून के बदलते शैक्षिक माहौल और स्कूलों की प्राथमिकताओं को लेकर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। जीआरडी वर्ल्ड स्कूल में यौन उत्पीड़न का मामला सामना आया है।
देहरादून, [जेएनएन]: जीआरडी वर्ल्ड स्कूल की घटना ने दून के बदलते शैक्षिक माहौल और स्कूलों की प्राथमिकताओं को लेकर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। मसूरी इंटरनेशनल स्कूल व नेहरूग्राम स्थित इंडियन एकेडमी में छात्रा के यौन उत्पीड़न का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि कुछ ऐसी ही घटना की पुनरावृत्ति जीआरडी वर्ल्ड स्कूल में हो गई। यौन उत्पीड़न की इन घटनाओं में बड़ी समानता यह भी रही कि मसूरी इंटरनेशनल स्कूल व जीआरडी वर्ल्ड स्कूल में प्रबंधन की ओर से कार्रवाई की पहल करने के बजाय, उसे दबाने की बात अधिक सामने आई। जबकि इंडियन एकेडमी में प्रबंधन के एक पदाधिकारी को ही यौन उत्पीड़न में आरोपित बनाया गया था।
यह है मामला
गौरतलब है कि देहरादून के भाऊवाला स्थित जीआरडी वर्ल्ड बोर्डिंग स्कूल में हाईस्कूल की छात्रा से न सिर्फ सामूहिक दुष्कर्म किया गया, बल्कि एक अस्पताल ले जाकर उसका गर्भपात कराने का भी प्रयास हुआ। मामले में सहसपुर पुलिस ने सोमवार को सामूहिक दुष्कर्म के आरोपित चारों छात्रों के अलावा प्रकरण को दबाने की कोशिश के आरोप में स्कूल के निदेशक, प्रधानाचार्य समेत नौ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। गुरुवार को सभी आरोपितों को कोर्ट में पेश किया गया।
एक दौर था, जब दून को स्कूलों की राजधानी कहा जाता था और स्कूल प्रबंधन की प्राथमिकता में फीस से कहीं अधिक बेहतर शैक्षिक माहौल होता था। समय के साथ एजुकेशन हब का आकार बड़ा हुआ और नए-नए स्कूल खुल गए। हालांकि, भौतिकवादी युग में ऐसे स्कूलों ने महंगी फीस और पांच सितारा रहन-सहन को ही अधिक तव्वजो दी। इसका नुकसान यह हुआ कि शैक्षिक माहौल बदलता चला गया और सुरक्षा के नाम पर इनकी ऊंची दीवारें ही अधिक नजर आने लगीं।
छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के लिहाज से ऐसे महंगे और पांच सितारा स्कूलों की व्यवस्थाएं पुख्ता हैं भी या नहीं, यह पूछने की हिम्मत हमारा सिस्टम कभी जुटा ही नहीं पाया। यदा-कदा ऐसे मामले भी तब सामने आते हैं, जब बात मैनेजमेंट के हाथ से निकल जाती है। कहने को तो छात्रों की सुरक्षा को लेकर सरकार ने कई नियम बनाए हैं, मगर इसका पालन करना या न करना, पूरी तरह स्कूल प्रबंधन के हाथ में होता है। बच्चों के बेहतर भविष्य की खातिर अभिभावक भी हस्तक्षेप नहीं कर पाते। इन तमाम घटनाओं को नियमों के आइने में देखें तो बहुत कम ही स्कूल होंगे, जहां पैरेंट्स-टीचर-स्टूडेंट्सकी कमेटी बनी होगी।
इसके अलावा स्कूलों के लिए पॉक्सो एक्ट के तहत भी एक इंटरनल कमेटी का गठन करने की अनिवार्यता है। यही नहीं, कमेटी की जानकारी स्कूलों को अपनी वेबसाइट पर भी देने की बाध्यता है। स्थानीय पुलिस को भी इस बात की जिम्मेदारी दी गई है कि वह संबंधित स्कूलों की समय-समय पर खबर लेती रहे। जबकि बड़ी सच्चाई यह भी है कि हमारी पुलिस के पास कभी इतना साहस रहा ही नहीं कि वह ऐसे नामी स्कूलों के प्रबंधन से सुरक्षा को लेकर कोई सवाल पूछ सके। जीआरडी वल्र्ड स्कूल की इस ताजा घटना से सबक नहीं लिया गया तो ऐसे प्रकरण सामने आते रहेंगे और एजुकेशन हब की छवि इसी तरह तार-तार होती रहेगी।
स्कूल में बच्चों की सुरक्षा पर सवाल
जिस बोर्डिंग स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों को सुरक्षित समझकर छोड़ रहे हैं। वहां न केवल उनका कॅरियर तबाह हो रहा, बल्कि उनकी सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। जीआरडी वल्र्ड स्कूल भाऊवाला में जिस तरह से प्रबंधन ने संगीन अपराध दबाने की कोशिश की, उसने यहां पढऩे वाले बच्चों के अभिभावकों की चिंता बढ़ा दी है।
अभिभावक अपने बच्चों का कॅरियर बनाने के लिए बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ाते हैं, ताकि उन्हें पढ़ाई का माहौल मिले और कालेज प्रबंधन बच्चों को पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान करे। लेकिन स्कूल प्रबंधन ने जिस तरह से संगीन अपराध छिपाया, उससे बच्चों की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं। बच्चे किस दबाव में इस बोर्डिंग स्कूल में रह रहे होंगे, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
दरअसल, बोर्डिंग स्कूल में बच्चों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार कालेज प्रबंधन को इस संगीन मामले में तुरंत परिजनों व पुलिस को सूचित करना चाहिए था, साथ ही आरोपित छात्रों के खिलाफ स्कूल स्तर पर भी कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन प्रबंधन ने अपनी सारी जिम्मेदारी दरकिनार करते हुए उल्टा पीडि़ता को ही धमकाया और किसी को बताने पर कार्रवाई की चेतावनी दे डाली। ऐसा भी नहीं कि आरोपित छात्रों का पारिवारिक बैकग्राउंड ज्यादा मजबूत था, जिससे प्रबंधन दबाव में आ गया। लेकिन प्रबंधन ने पूरी लापरवाही बरती।
सीओ भूपेंद्र सिंह धोनी व थानाध्यक्ष नरेश राठौड़ के अनुसार स्कूल प्रबंधन का इस मामले में गैरजिम्मेदार रवैया रहा। इतनी संगीन घटना को छिपाने के पीछे क्या मामला रहा, इसकी भी जांच की जा रही है। यदि छात्रा अपनी चाची को न बताती, तो मामला संज्ञान में न आता।
साजिश का हिस्सा बने डाक्टर के भी होंगे बयान
सामूहिक दुष्कर्म पीड़ित छात्रा की मदद करने और दोषी छात्रों पर नकेल कसने के बजाय प्रकरण को ही रफा-दफा करने की साजिश न केवल स्कूल में हुई, बल्कि राजपुर रोड के एक नर्सिंग होम में भी छात्रा को ले जाया गया। लेकिन यहां चिकित्सक मेडिकल चेकअप के बाद गर्भपात कराते, तब तक छात्रा के परिजन पहुंच गए और पूरी साजिश का भांडा फूट गया।
आरोप है कि प्रबंधन ने प्रशासनिक अधिकारी दीपक मल्होत्रा को बुलाकर छात्रा को चुप रहने को कहा गया और यह भी कहा कि जैसे भी हो उसका गर्भ गिराने को कहा गया। साथ ही हिदायत दी कि बात किसी भी सूरत में बाहर नहीं जानी चाहिए।
दीपक व उसकी पत्नी तन्नू छात्रा को स्कूल परिसर में ही अपने क्वार्टर में ले गए। जहां उसे गर्भ गिराने की बात कहकर कोई देसी दवाई भी पिलाई गई। इससे छात्रा की तबीयत और बिगड़ गई तो उसे अगले दिन राजपुर रोड पर न्यू अंपायर सिनेमा के पास स्थित एक नर्सिंग होम में लाया गया। यहां छात्रा का चेकअप हुआ। प्रबंधन ने यहां के चिकित्सक से तत्काल गर्भपात करने को कहा। मगर चिकित्सक इसके आगे कुछ कर पाते, तब तक बड़ी बहन की सूचना छात्रा के माता-पिता अस्पताल पहुंच गए। यहां से छात्रा को अपनी सुरक्षा में लेते हुए पुलिस को पूरे मामले की खबर दी।
अमीर घरों के हैं आरोपित बच्चे
चारों आरोपित छात्र अमीर बिजनेसमैन के बेटे हैं। एसओ सहसपुर नरेश राठौड़ ने बताया कि सभी आरोपित बच्चे उत्तराखंड से बाहर के रहने वाले हैं। उनके परिजन भी देहरादून पहुंच गए हैं।
दो 17 तो दो की उम्र है 16 साल
गैंगरेप के आरोपित छात्रों में से दो की उम्र 17 वर्ष तो दो की 16 वर्ष है। इन सभी को थाने के बजाय किसी अन्य जगह पर रखा गया है, जहां से मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया जाएगा।
बालिग की तरह चलेगा केस
विशेष लोक अभियोजक भरत सिंह नेगी बताया कि किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार 16 से 18 वर्ष के बीच के नाबालिग आरोपितों पर जघन्य मामलों जैसे हत्या व दुष्कर्म में बालिगों की तरह केस चलाए जाने का प्रावधान है। हालांकि इन आरोपितों को पेश तो जेजे बोर्ड के समक्ष ही किया जाएगा और वहां से बाल सुधार गृह भेजा जाएगा। मामले में चार्जशीट आने और आरोपितों की अभिलेखों में उम्र स्पष्ट होने के बाद प्रकरण पोक्सो कोर्ट को संदर्भित किया जा सकता है।
आयोग को व्यवस्थाओं में मिलीं कई खामियां
उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से सोमवार को किए गए स्कूल के निरीक्षण में कई खामियां मिलीं। आयोग की टीम ने बताया कि गल्र्स हॉस्टल में एक महीने से वार्डन नहीं है। हॉस्टल कैंपस में सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगे हैं। आयोग ने इसे छात्राओं की सुरक्षा से खिलवाड़ बताते हुए प्रबंधन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात कही है।
सोमवार शाम आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी के नेतृत्व में पहुंची टीम सबसे पहले पीड़ित छात्रा से मिली। सदस्यों ने अभिभावक व छात्रा से करीब आधे घंटे तक बात की। इसके बाद टीम ने व्यवस्थाओं का जायजा लिया। टीम ने पाया कि हॉस्टल में वर्तमान में 22 छात्राएं रह रही हैं। लेकिन, उनकी सुरक्षा को लेकर कोई प्रबंध नहीं किए गए हैं। आयोग की अध्यक्ष ने कहा कि वार्डन के न होने से छात्र आसानी से हॉस्टल में प्रवेश कर सकते हैं। साथ ही हॉस्टल कैंपस में कैमरे भी नहीं लगे हैं।
नर्सिंग होम पर भी होगी कार्रवाई
आयोग की अध्यक्ष ने बताया कि प्रबंधन ने एक निजी नर्सिंग होम में छात्रा का गर्भपात कराने की कोशिश की। हो सकता है इस नर्सिंग होम में ऐसे गैरकानूनी काम पहले से किए जा रहे हों। इसलिए नर्सिंग होम की भी जांच कराई जाएगी।
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