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Tiger safari case में कईयों पर आ सकती है जांच की आंच, हो चुकी है गड़बड़ी की पुष्टि

पाखरो में टाइगर सफारी बनाने का निर्णय लिया गया था। वन भूमि हस्तांतरण के साथ ही राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से अनुमति लेने संबंधी सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद स्थापना को लेकर जो अफरा तफरी मचाई गई उसमें संरक्षित क्षेत्र के नियम-कायदों को दरकिनार कर दिया गया।

By Sumit KumarEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2022 10:50 AM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2022 10:50 AM (IST)
Tiger safari case में कईयों पर आ सकती है जांच की आंच, हो चुकी है गड़बड़ी की पुष्टि
पाखरो में टाइगर सफारी के बहुचर्चित मामले में कईयों पर आ सकती है जांच की आंच।

राज्य ब्यूरो, देहरादून: कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग के पाखरो में टाइगर सफारी के बहुचर्चित मामले में विजलेंस द्वारा सेवानिवृत्त आइएफएस किशन चंद समेत अन्य के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किए जाने के बाद अब जांच की आंच में टाइगर सफारी से जुड़े अधिकारियों समेत कुछ अन्य लोग भी झुलस सकते हैं। इसे लेकर वन विभाग में दबी जुबां चर्चा हो रही है, लेकिन कोई खुलकर कुछ भी बोलने से बच रहा है।

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संरक्षित क्षेत्र के नियम-कायदों को क‍िया दरकिनार

पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कार्यकाल में पाखरो में 106 हेक्टेयर वन क्षेत्र में टाइगर सफारी बनाने का निर्णय लिया गया था। इसके लिए वन भूमि हस्तांतरण के साथ ही राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से अनुमति लेने संबंधी सभी औपचारिकताएं पूरी की गईं, लेकिन इसकी स्थापना को लेकर जो अफरा तफरी मचाई गई, उसमें संरक्षित क्षेत्र के नियम-कायदों को दरकिनार कर दिया गया। ऐसा क्यों और किसके इशारे पर किया गया, ये जांच का विषय है।

अवैध कटान और निर्माण की शिकायत मिलने पर खुला मामला

मामला तब खुला जब अवैध कटान और निर्माण की शिकायत मिलने पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की टीम ने स्थलीय निरीक्षण कर शिकायतों को इसे सही पाया। साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध् कार्रवाई की संस्तुति की।

तत्कालीन डीएफओ व मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक न‍िलंब‍ित

मामले के तूल पकड़ने पर शासन ने कालागढ़ टाइगर रिजर्व के तत्कालीन डीएफओ (अब सेवानिवृत्त) किशन चंद व तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक (अब सेवानिवृत्त) जेएस सुहाग को निलंबित कर दिया था। साथ ही कालागढ़ टाइगर रिजर्व के तत्कालीन निदेशक राहुल को वन मुख्यालय से संबद्ध किया गया था।

आख‍िर इन कार्यों के लिए पैसा कहां से आया

बाद में विभागीय स्तर से हुई जांच में इस बात की पुष्टि हुई कि टाइगर सफारी के लिए स्वीकृत से अधिक पेड़ धराशायी कर दिए गए तो पाखरो से कालागढ़ तक के क्षेत्र में भवन व जलाशय भी बना दिए गए। इनके लिए किसी प्रकार की स्वीकृति नहीं ली गई थी। यद्यपि, ये निर्माण कार्य बाद में ध्वस्त कर दिए गए थे, लेकिन प्रश्न अपनी जगह आज भी खड़ा है कि इन कार्यों के लिए पैसा कहां से आया।

जांच में कदम-कदम पर गड़बड़ी की बात आई सामने

इस बीच शासन ने प्रकरण की विजिलेंस जांच कराई तो इसमें भी कदम-कदम पर गड़बड़ी की बात सामने आई। शासन से अनुमति मिलने के बाद विजलेंस अब सेवानिवृत्त आईएफएस किशन चंद समेत अन्य के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर चुकी है। साफ है कि मुकदमे में जैसे-जैसे जांच पड़ताल आगे बढ़ेगी, उसमें कई अन्य नामों का जुड़ना तय है। माना जा रहा है कि प्रकरण में टाइगर सफारी से जुड़े अधिकारियों, ठेकेदारों के साथ ही कुछ बड़े नामों पर भी गाज गिर सकती है।

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