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Child Labour: यहां शिक्षा ने तोड़ी 'मजबूरी' की बेड़ी तो खिलखिलाया बचपन, जानिए

दून में पिछले दो वर्षों में श्रम विभाग और प्रशासन ने ऐसे कई बाल मजदूरों को मुक्त कराने के बाद स्कूल भेजकर उनके जीवन को नई दिशा दी है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 12 Jun 2020 09:15 AM (IST)Updated: Fri, 12 Jun 2020 09:15 AM (IST)
Child Labour: यहां शिक्षा ने तोड़ी 'मजबूरी' की बेड़ी तो खिलखिलाया बचपन, जानिए
Child Labour: यहां शिक्षा ने तोड़ी 'मजबूरी' की बेड़ी तो खिलखिलाया बचपन, जानिए

देहरादून, जेएनएन। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि देश में लाखों बच्चे होटल, रेस्तरां, दुकानों और फैक्टियों में मजबूरी की चक्की में पिसने को मजबूर हैं। हालांकि, दून में पिछले दो वर्षों में श्रम विभाग और प्रशासन ने ऐसे कई बाल मजदूरों को मुक्त कराने के बाद स्कूल भेजकर उनके जीवन को नई दिशा दी है। शिक्षा का उजियारा मिला तो इन बच्चों का बचपन फिर से खिलखिला उठा। किताबों के ज्ञान ने न सिर्फ उन्हें मजबूरियों के अंधकार से बाहर निकाला, बल्कि उज्ज्वल भविष्य की राह भी दिखाई।

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राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक हुकुम सिंह उनियाल बताते हैं कि उनके स्कूल में बाल श्रम से जुड़े कई बच्चे शिक्षा ले चुके हैं। इनमें अधिकतर वो बच्चे थे, जो पारिवारिक मजबूरी के कारण बाल श्रम के लिए मजबूर हुए। शिक्षा ऐसे बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने में अहम किरदार निभा रही है। साथ ही उन्होंने कहा कि अब तक केंद्र सरकार ने ऐसे बच्चों के लिए आठवीं तक की शिक्षा का प्रावधान ही किया है, जबकि इसे कम से कम 12वीं तक होना चाहिए। बताया कि इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास हो रहे हैं। देहरादून की श्रम प्रवर्तन अधिकारी पिंकी टम्टा ने बताया कि पिछले दो साल में श्रम विभाग ने 58 बच्चों को अलग-अलग जगह से रेस्क्यू कर स्कूलों में भर्ती कराया। इसमें 2018-19 में 22 और 2019-20 में 36 बच्चों को स्कूल पहुंचाया गया।

15 माह में 22 लोगों पर हुआ मुकदमा

बाल मजदूरी न सिर्फ बच्चों के विकास में रुकावट है, बल्कि समाज के लिए भी खतरनाक है। हालांकि, सरकार की ओर से इसके खिलाफ सख्त कानून बनाने के बाद बाल श्रम के मामलों में कमी आई है। डीआइजी अरुण मोहन जोशी ने बताया कि जनवरी 2019 से मार्च 2020 तक ऐसे 22 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए गए, जो बाल श्रम करा रहे थे। इसके अलावा पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को सख्त हिदायत दी गई है कि बाल श्रम रोकने के लिए आगे आएं। डीआइजी ने बताया कि बाल श्रम अपराध की श्रेणी में आता है। बच्चों से मजदूरी कराते पकड़े जाने पर बाल श्रम प्रतिषेध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। इसमें छह महीने से दो साल तक की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना हो सकता है।

ब्रिज कोर्स भी साबित हुआ कारगर

नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजेक्ट (एनसीएलपी) के तहत श्रमिक परिवारों के बच्चों और बाल मजदूरों को रेस्क्यू करने के बाद समग्र शिक्षा अभियान के तहत संचालित हो रहे केंद्रों पर ब्रिज कोर्स कराया जाता है। अकेले देहरादून में पिछले सत्र में सात अलग-अलग केंद्रों पर 127 बच्चों को ब्रिज कोर्स कराया गया। ब्रिज कोर्स पूरा करने के बाद इन बच्चों को पास के सरकारी स्कूलों में भर्ती कराया जाता है।

पिछले सत्र में प्रदेश में बनाए 36 केंद्र

समग्र शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने बताया कि एनसीएलपी के तहत प्रदेशभर में पिछले सत्र में 36 केंद्र स्थापित किए गए थे। जिनमें श्रमिकों के बच्चों को उनकी काम की साइट के नजदीक ही केंद्र स्थापित कर ब्रिज कोर्स करवाया गया। उन्होंने बताया कि हर केंद्र पर औसत 10 बच्चे होते हैं। सबसे अधिक बच्चे हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून के केंद्रों पर होते हैं। यहां एक केंद्र पर 30 से ज्यादा बच्चे होते हैं।

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बच्चों को साक्षर बनाने के साथ प्राथमिक शिक्षा का ज्ञान

देहरादून के असिस्टेंट लेबर कमिश्नर कमल जोशी ने बताया कि तीन से चार में जिला स्तर पर सर्वे कराया जाता है। जिसमें श्रमिक परिवारों और बाल श्रम करते हुए रेस्क्यू किए गए बच्चों की सूची तैयार कर उन्हें नजदीकी अध्ययन केंद्रों पर ब्रिज कोर्स में भर्ती कराया जाता है। यहां इन बच्चों को साक्षर बनाने के लिए प्राथमिक शिक्षा से जुड़ा ज्ञान दिया जाता है। 

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