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उत्तराखंड ओडीएफ घोषित हो चुका है, पर चुनौतियों की है भरमार; पढ़िए पूरी खबर

उत्तराखंड भले ही खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुका है। बावजूद इसके चुनौतियों की भी भरमार है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 05:13 PM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 05:13 PM (IST)
उत्तराखंड ओडीएफ घोषित हो चुका है, पर चुनौतियों की है भरमार; पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड ओडीएफ घोषित हो चुका है, पर चुनौतियों की है भरमार; पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, राज्य ब्यूरो। देश के अन्य हिस्सों की उत्तराखंड में भी स्वच्छता के प्रति जन से लेकर तंत्र तक जागरूक हुआ है। 'स्वच्छ भारत मिशन' के तहत घर-घर शौचालय निर्माण अभियान के साथ सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण को लेकर भी जागरुकता बढ़ी है। फलस्वरूप वर्ष 2012 के बेसलाइन सर्वे के आधार पर भले ही उत्तराखंड ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) घोषित हो चुका है। बावजूद इसके चुनौतियों की भी भरमार है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती अक्टूबर 2019 तक शेष रह गए व्यक्तिगत और सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण की है। रोजाना शहरों से निकलने वाले 1406 मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण सो अलग।

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उत्तराखंड में दो अक्टूबर 2014 से मिशन की शुरुआत हुई। इसके तहत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत व सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण पर फोकस किया गया। इस बीच 2012 के बेस लाइन सर्वे के आधार पर परिवारों की संख्या से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ और जून 2017 में ग्रामीण इलाके ओडीएफ घोषित हो गए। इसके बाद फरवरी 2018 में सभी 101 शहरी क्षेत्रों को भी ओडीएफ घोषित कर दिया गया। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। 2012 के बाद बड़ी संख्या में नए परिवार भी अस्तित्व में आए हैं। खासकर, ग्रामीण क्षेत्रों में ही 83 हजार शौचालय बनाने का लक्ष्य है। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों में मिशन के तहत स्वीकृत व्यक्तिगत शौचालयों में से 10 हजार से अधिक का निर्माण होना अभी बाकी है, जबकि मिशन की अवधि दो अक्टूबर 2019 तक ही है। इसके अलावा शहरों से रोजाना निकलने वाला कूड़ा भी परेशानी का सबब बना हुआ है, जिसमें से अभी तक केवल 40 फीसद का ही वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण हो पा रहा है। हालांकि, राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता और शहरी विकास महकमों का दावा है कि इन चुनौतियों से पार पाने के लिए पूरी गंभीरता से कदम उठाए जा रहे हैं।

शहरी क्षेत्रों की तस्वीर

व्यक्तिगत शौचालय

  • 27640 कुल शौचालय स्वीकृत
  • 16901 ही अब तक बन पाए

सामुदायिक एवं सार्वजनिक शौचालय

  • 2000 सीट का लक्ष्य निर्धारित
  • 760 अभी तक निर्मित
  • 226 में चल रहा कार्य
  • 3445 निकायों ने अन्य मदों से बनाए

कूड़ा निस्तारण

  • 1406 मीट्रिक टन कूड़ा रोजाना निकलता है
  • 40 फीसद कूड़े का ही वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण
  • 1162 है सभी निकायों में वार्डों की संख्या
  • 914 निकाय वार्डों में ही डोर-टू-डोर कूड़ा उठान
  • 278 वार्डों में ही अलग-अलग होता है सूखा व गीला कूड़ा

ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति

  • 509000 व्यक्तिगत शौचालय निर्माण का था वर्ष 2012 के सर्वे के आधार पर लक्ष्य
  • 589000 शौचालय बने जून 2017 तक और फिर ग्रामीण क्षेत्र ओडीएफ  घोषित
  • 83000 शौचालय छूटे परिवारों के लिए बनाने का रखा गया है लक्ष्य

ये हैं चुनौतियां

  • शेष रह गए और निर्माणाधीन शौचालयों का वक्त पर निर्माण
  • शहरी क्षेत्रों में अवैध बस्तियों में शौचालय निर्माण
  • सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालयों के बनने के बाद इनका रखरखाव
  • पर्वतीय क्षेत्रों में मोबाइल टायलेट की व्यवस्था
  • कूड़े-कचरे का वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण
  • पहाड़ी क्षेत्र में क्लस्टर आधार पर कूड़ा निस्तारण
  • घर से सूखा व गीला कूड़ा अलग-अलग करने की आदत

जन की टूटी निंद्रा, तंत्र में बेफिक्री

स्वच्छ भारत अभियान के चार साल पूरे हो चुके हैं। लाखों की तादाद वाली जनता भी नींद से जागी और उसमें शहर की स्वच्छता के प्रति सुधार भी आया, लेकिन सैकड़ों की संख्या वाला सरकारी तंत्र नींद में ही रहा। सरकारी तंत्र हमेशा संसाधनों की कमी का रोना रोकर सफाई के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ता रहा और कछुआ चाल से बाहर नहीं आया। बात शहरवासियों की करें तो घरों या दुकान के बाहर कूड़ा फेंकने के बदले अब लोग कूड़ा कलेक्शन सेंटर पर कूड़ा फेंकने जा रहे हैं। यह अलग बात है कि सरकारी मशीनरी इसकी समय से लिफ्टिंग कराने में नाकाम रही। 

योजना शुरू होने के वक्त देहरादून नगर निगम ने भी वार्डों में स्वच्छता के लिए योजना बनाई, लेकिन यह ठीक से परवान नहीं चढ़ी। स्वच्छ वार्ड को दस-दस लाख रुपये के विकास कार्य का इनाम देने का एलान भी हुआ,पर नतीजा सिफर ही रहा। दावा किया जा रहा था कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट दून में शुरू होते ही शहर में सड़कों पर फैले कूड़े व गंदगी के ढेर नहीं दिखेंगे, मगर प्लांट शुरू हुए सालभर बीतने के बावजूद ऐसा संभव नहीं हुआ। 

पिछले साल परिसीमन के बाद शहर से सटे 71 ग्रामीण क्षेत्र निगम का हिस्सा बन गए और शहर का दायरा साठ वार्ड से बढ़कर सौ वार्ड हो गया।

 स्थिति ये है कि नए क्षेत्रों में न तो स्ट्रीट लाइट की सुविधा मिल पाई, न ही सफाई की कोई पुख्ता व्यवस्था। इन वार्डो में डोर-टू-डोर कूड़ा उठान की गाडिय़ां तक नहीं जा रहीं। मौजूदा समय में निगम ने कूड़ा उठान का काम नई कंपनी को दिया है और अभी 30 वार्डों में ही कूड़ा उठान हो रहा है। इसका भी कोई समय तय नहीं है। कर्मचारी सुबह के बजाए दोपहर में कूड़ा उठाने निकलते हैं। ऐसे में पुराने कूड़े के उठते-उठते ही नया कूड़ा शहर में पड़ चुका होता है। ऐसे में शहर कभी भी साफ नजर ही नहीं आता।

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