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उत्पाती बंदरों पर करोड़ों खर्च, फिर भी नतीजा सिफर

उत्पाती बंदरों पर करोड़ों खर्च किए गए। लेकिन फिर भी नतीजा सिफर है। प्रदेश में बंदरों के उत्पात से निबटने के मामले में तस्वीर कुछ ऐसी ही है।

By Edited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 03:00 AM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 01:44 PM (IST)
उत्पाती बंदरों पर करोड़ों खर्च, फिर भी नतीजा सिफर
उत्पाती बंदरों पर करोड़ों खर्च, फिर भी नतीजा सिफर
देहरादून, राज्य ब्यूरो। तीन साल में लगभग चार करोड़ खर्च और नतीजा सिफर। प्रदेश में बंदरों के उत्पात से निबटने के मामले में तस्वीर कुछ ऐसी ही है। मानव-वानर संघर्ष न्यूनीकरण योजना के तहत हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर बंदर बंध्याकरण की कवायद चल रही है, मगर अभी तक इसके आशानुरूप परिणाम सामने नहीं आ पाए हैं। तीन वर्ष के आंकड़े देखें तो सिर्फ 3310 बंदरों का बंध्याकरण इसकी तस्दीक करता है। यही नहीं, शहरों और गांवों से बंदरों को पकड़कर घने जंगलों में छोड़ा जा रहा है, मगर ये नीति भी कारगर साबित नहीं हो पा रही। ऐसे में महकमे की पेशानी पर बल पड़ने लगे हैं। 
जंगल की देहरी लांघ बंदरों के गांवों व शहरों की ओर रुख करने की गहराती समस्या को देखते हुए पूर्व में वन विभाग ने सर्वे कराया। इसमें बंदरों की संख्या डेढ़ लाख के लगभग सामने आई। इसके साथ ही मानव-वानर संघर्ष न्यूनीकरण की योजना की शुरुआत की गई। इसके तहत हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर बंदरों के बंध्याकरण कर निर्णय लिया गया, जिसके लिए चिड़ियापुर (हरिद्वार प्रभाग), रानीबाग (नैनीताल प्रभाग) व अल्मोड़ा (सिविल सोयम वन प्रभाग अल्मोड़ा) में बंदर बाड़े बनाए गए। 
तमाम प्रयासों के बावजूद इन बंदरबाड़ों में तीन साल में केवल 3310 बंदरों का ही बंध्याकरण हो पाया है। यही नहीं, आबादी वाले इलाकों से बंदरों को पकड़कर जंगलों में छोड़ने की मुहिम भी ठीक से परवान नहीं चढ़ पा रही। ऐसे में समस्या तस की तस बनी हुई है। हालांकि, सरकार का कहना है कि अब इस समस्या के समाधान को प्रभावी रणनीति बनाने पर मंथन चल रहा है। 
मानव-वानर संघर्ष न्यूनीकरण योजना 
वर्ष,               व्यय धनराशि (लाख में) 
2016-17,      170.16 
2017-18,      196.50 
2018-19,       28.07 
(दिसंबर 2018 तक)
तीन साल में बंध्याकरण 
स्थान,               संख्या 
चिड़ियापुर,          2600 
रानीबाग,            700 
अल्मोड़ा,            10
वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने बताया कि वन क्षेत्रों में फलदार पौधे लगाने पर जोर दिया जा रहा है, ताकि बंदरों को वनों में पर्याप्त भोजन मिल सके। इसके अलावा बंदरों के उत्पात को थामने के मद्देनजर अन्य विकल्पों पर भी मंथन चल रहा है। अधिकारियों को प्रभावी कार्ययोजना तैयार करने के लिए निर्देशित किया गया है। साथ समस्या के निदान में जनसहयोग भी जरूरी है।

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