मेजर जनरल आलोक जोशी बने भारतीय सैन्य अकादमी के डिप्टी कमांडेंट
मेजर जनरल आलोक जोशी भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) के नए डिप्टी कमांडेट व मुख्य प्रशिक्षक बने हैं। गुरुवार को उन्होंने मेजर जनरल जेएस मंगत से यह पदभार संभाला। मेजर जनरल मंगत 16 माह तक बतौर डिप्टी कमांडेट व मुख्य प्रशिक्षक अकादमी में तैनात रहे हैं।
जागरण संवाददाता, देहरादून। मेजर जनरल आलोक जोशी भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) के नए डिप्टी कमांडेट व मुख्य प्रशिक्षक बने हैं। गुरुवार को उन्होंने मेजर जनरल जेएस मंगत से यह पदभार संभाला। मेजर जनरल मंगत 16 माह तक बतौर डिप्टी कमांडेट व मुख्य प्रशिक्षक अकादमी में तैनात रहे हैं। उनके कार्यकाल में कोविड-19 की बड़ी चुनौती सामने रही, पर इस दौरान भी उन्होंने अकादमी में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे देश-विदेश के कैडेट का हौसला डिगने नहीं दिया।
कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए कैडेट को वह सभी तरह के प्रशिक्षण दिए गए जो कि सामान्य परिस्थितियों में दिए जाते हैं। अब यह जिम्मेदारी नए डिप्टी कमांडेंट मेजर जनरल आलोक जोशी के कंधों पर आ गई है। मेजर जनरल जोशी आइएमए से ही सैन्य प्रशिक्षण पूरा कर 19 दिसंबर, 1987 को पास आउट हुए व सेना की राजपूत रेजीमेंट में कमीशंड हुए थे। इसके बाद वह सेना में कई अहम पदों पर तैनात रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में काउंटर इंसरजेंसी आपरेशन को संचालित करने का भी उनके पास बेहतर अनुभव है।
अमर शहीद मेजर दुर्गा मल्ल को श्रद्धांजलि दी
अमर शहीद मेजर दुर्गा मल्ल की 108 वें जन्मोत्सव पर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। शहीद मेजर दुर्गा मल्ल योगा पार्क गढ़ी कैंट में उत्तराखंड राज्य भाषा समिति के उपाध्यक्ष मधुसूदन शर्मा एवं गोर्खाली सुधार सभा की प्रबंधक प्रभा शाह के नेतृत्व में गोर्खाली समुदाय ने उनकी प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर देश सेवा में उनके योगदान को याद किया। प्रभा शाह ने बताया कि दुर्गा मल्ल आजाद हिंद फौज के प्रथम गोर्खा सैनिक थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। उनका जन्म डोईवाला में गोर्खा राईफल्स के नायब सुबेदार गंगाराम मल्ल क्षेत्री एवं पार्वती देवी के घर में हुआ था।
बचपन से ही बहादुर और प्रतिभा के धनी दुर्गा मल्ल ने पहले गोरखा राइफल और बाद में आजाद हिंद फौज में देश सेवा की। उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर नेताजी सुभाष चंद्र ने उन्हेंं मेजर की पदवी से नवाजा। बाद में उन्हें गुप्तचर शाखा का महत्वपूर्ण कार्य भी सौंपा गया। लंबे समय तक नेताजी के साथ देश की आजादी की लड़ाई लडऩे के बाद उन्होंने अपना अंतिम वक्त लालकिले की सैंट्रल जेल में बिताया। यहां लाए जाने के दस दिन बाद 25 अगस्त 1944 को उन्हें फांसी दे दी गई। आज के युवाओं को उनके जीवन से प्रेरणा लेने की जरूरत है। इस अवसर पर राजेंद्र मल्ल, सुयश थापा, सृजना थापा, हरि बहादुर, आरएस शाह, वंदिता राना कृष्ण सिंह, काजल आदि मौजूद रहे।
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