कोरोना मृतकों के स्वजन के लिए फरिश्ते से कम नहीं ललित, खुद की जान जोखिम में डाल जुटे हैं निस्वार्थ सेवा में
Mahamari se azadi कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर में डेढ़ माह का समय बेहद डरावना रहा। संक्रमित व्यक्ति के जब अपने काम नहीं आए तब ऋषिकेश निवासी ललित शर्मा ने स्वयं की जान जोखिम में डालकर कई मरीजों को चिकित्सालय और कोविड केयर सेंटर पहुंचाया।
हरीश तिवारी, ऋषिकेश। Mahamari se azadi कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर में डेढ़ माह का समय बेहद डरावना रहा। संक्रमित व्यक्ति के जब अपने काम नहीं आए तब ऋषिकेश निवासी ललित शर्मा ने स्वयं की जान जोखिम में डालकर कई मरीजों को चिकित्सालय और कोविड केयर सेंटर पहुंचाया। मानवता के लिए मिसाल बने ललित इस दौरान स्वयं संक्रमित हो गए। जब स्वस्थ हुए तो फिर से निस्वार्थ सेवा में जुट गए।
बीते डेढ़ वर्ष में कोरोना संक्रमण से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हुए। जब दूसरी लहर चरम पर थी तो कई मरीजों को अपनों ने दूर कर दिया। कई लोग ऐसे थे जो असमय मौत को प्राप्त हो गए। ऐसी विपत्ति के समय कोई अनजान यदि अपना बन कर सामने खड़ा हो तो वह किसी फरिश्ते से कम नहीं होता।
ऋषिकेश शिवाजी नगर निवासी 35 वर्षीय ललित शर्मा पेशे से एंबुलेंस संचालक है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के बाहर वह एंबुलेंस का संचालन करते हैं। संक्रमण काल में उन्होंने एंबुलेंस की निश्शुल्क सेवा देकर मानवता की मिशाल पेश की। ऋषिकेश, रानीपोखरी, देहरादून, हरिद्वार क्षेत्र के करीब 30 संक्रमितों को वह एम्स ऋषिकेश, कोविड केयर सेंटर मुनिकीरेती और श्री देव सुमन राजकीय चिकित्सालय नरेंद्र नगर तक पहुंचाया।
ऐसे वक्त में जब कुछ एंबुलेंस संचालक किराया को लेकर मनमानी कर रहे थे तो ललित ने गरीब मरीजों को मुफ्त एंबुलेंस सेवा उपलब्ध कराई। कई बार ऐसे भी मौके आए जब सिर्फ तेल के खर्च पर उन्होंने यह सेवा जरूरतमंद तक पहुंचाई। एम्स ऋषिकेश में छह मरीज ऐसे थे जिनकी कोरोना के कारण मौत हो गई। इन सभी को इन्होंने स्वयं अपनी एंबुलेंस से मुक्तिधाम पूर्णानंद घाट मुनिकीरेती पहुंचाने का काम किया। कभी हालात ऐसे भी समाने आए कि संक्रमित मृतक को जब कोई अपना ही हाथ लगाने को तैयार नहीं था तो उन्होंने स्वयं पीपीई किट पहनकर यह काम पूरा किया।
दो मृतकों को मुखाग्नि देकर निभाया मानव धर्म
दो मृतक ऐसे थे जिन्हें मुखाग्नि देने वाला कोई नहीं था तो इन्होंने इनकी चिता को मुखाग्नि दी। हरिद्वार और बिजनौर निवासी इन महिला मृतकों के अंतिम संस्कार का खर्च भी उन्होंने स्वयं वहन किया। डीजीपी उत्तराखंड की ओर से संक्रमित व्यक्तियों की सहायता के लिए मिशन हौसला शुरू किया गया तो उन्होंने कुछ दिन अपनी एंबुलेंस कोतवाली पुलिस की सेवा में लगा दी। कई मरीजों के घर तक आक्सीजन सिलिंडर पहुंचाने का काम किया।
आपकी रसोई अभियान में जुड़ भी की मदद
इतना ही नहीं एम्स में आने वाले तीमारदारों के लिए कोविड कफ्यरू के दौरान जब भोजन की समस्या पैदा हुई तो इन्होंने आपकी रसोई अभियान से स्वयं को जोड़कर सहयोग किया। समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाते हुए ललित बीते 20 मई को संक्रमित हो गए। शरीर में आक्सीजन का स्तर काफी नीचे पहुंच गया था। करीब 10 दिन तक चिकित्सालय में जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए वह कोरोना को मात देने में सफल रहे।
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