Move to Jagran APP

गुमनाम हो गए गिली-गिली के सरताज गोगिया

प्रख्यात जादूगर गोगिया पाशा के जन्मदिवस पर विशेष

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Aug 2018 03:00 AM (IST)Updated: Tue, 28 Aug 2018 03:00 AM (IST)
गुमनाम हो गए गिली-गिली के सरताज गोगिया
गुमनाम हो गए गिली-गिली के सरताज गोगिया

निशांत कुमार, देहरादून

loksabha election banner

देहरादून में सर्वे चौक के पास एक गली में तीन कमरों की पुरानी इमारत बाहर से यह एहसास ही नहीं कराती कि इसका प्रख्यात जादूगर गोगिया पाशा से गहरा नाता है। आखिर कितने लोग जानते हैं कि जादूगरों की पहचान बन चुका 'गिली-गिली' शब्द पाशा की ही देन थी। भले ही उनके कद्रदान इंग्लैड, आस्ट्रिेलिया और मिस्र तक में फैले हों, लेकिन अपने ही घर में उनको भुला दिया गया।

बंटवारे के बाद 1948 में गोगिया पाशा परिवार के साथ दून आए तो यहां कि आबोहवा इस कदर रास आई कि यहीं आशियाना बना लिया। भारत में जादू के शो को मंच पर प्रतिष्ठित करने देने वाले पाशा की कहानी भी जादू की तरह रहस्य और रोमांच से भरपूर है। दून के जिस घर को पाशा ने बड़े प्यार से बनाया था। अब उसमें उनकी सबसे छोटी बेटी ऊषा खन्ना रहती हैं। 70 वर्ष की हो चुकी ऊषा के पति विजय खन्ना टेनिस खिलाड़ी थे। उनका निधन हो चुका है। ऊषा के बेटे सिद्धार्थ खन्ना एड फिल्म निर्माता हैं और बेटी मनीषा गृहणी। सिद्धार्थ भी दिल्ली में रहते हैं। ऊषा बताती हैं कि 1976 में पिता गोगिया पाशा की मृत्यु के बाद मां तुलसी देवी भाईयों के साथ दिल्ली और मुंबई में रहने लगीं। धीरे-धीरे दून में उनकी संपत्ति पर अवैध कब्जे हो गए। पिछले आठ सालों से ऊषा देहरादून के अपने पैतृक घर में ही रह रही हैं।

---

मुल्तान में जन्मे पाशा

ऊषा खन्ना बताती हैं कि उनके पिता का जन्म 28 अगस्त 1910 में मुल्तान (अब पाकिस्तान में) में हुआ था और प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा बुखारा (उजबेकिस्तान) में हुई। उनका वास्तविक नाम धनपत राय गोगिया था। धनपत के पिता लाला मंगल देव गोगिया मुल्तान के मशहूर ज्वैलर्स थे। उनके बनाए गहनों की मांग इंग्लैंड में खूब थी। ऊषा बताती हैं कि उनकी मां तुलसी देवी डॉक्टर थीं। हालांकि उन्होंने प्रैक्टिस की बजाए परिवार की देखरेख को तवज्जो दी।

-----

ऐसे बने जादूगर पाशा

ऊषा के अनुसार उनके पिता धनपत राय गोगिया मेडिकल की पढ़ाई के लिए लंदन गए। हालांकि ऊषा को यह याद नहीं कि यह किस वर्ष की बात है। वह बताती हैं पढ़ाई के दौरान ही वह इंग्लैंड के प्रसिद्ध जादूगर ओवेन क्लॉर्क के संपर्क में आए। बस यहीं से उन्हें जादू में आकर्षण नजरर आने लगा। वह अक्सर ओवेन के शो में साथ होते। ओवेन ने उन्हें इस कला में प्रशिक्षित किया। वर्ष 1929 में ओवेन ने मृत्यु से पहले अपने सभी उपकरण धनपत को सौंप दिए। बस फिर क्या था। धनपत ने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ शो शुरू कर दिए। इससे उन्हें खूब शोहरत मिले। ऊषा बताती हैं कि इसी दौरान धनपत शो के सिलसिले में मिस्र गए। मिस्र में उनके शो के दीवानों की संख्या अच्छी-खासी थी। यहीं किसी शुभचिंतक ने उन्हें नाम के साथ पाशा जोड़ने की सलाह दी और वह हो गए गोगिया पाशा। ऊषा के अनुसार पहली बार 'गिली-गिली' शब्द का इस्तेमाल उन्होंने मिस्र में ही किया था। आगे चलकर यह शब्द जादूगरो की पहचान बन गया।

-------

राजीव गांधी थे शो के दीवाने

जब भी अवसर मिलता गोगिया पाशा देहरादून में भी अपने शो करते थे। ऊषा बताती हैं कि उन्हें तीन स्थानों पर ही शो करना पसंद था। दून स्कूल, दून क्लब और परेड मैदान। तब राजीव गांधी दून स्कूल के छात्र थे और पाशा के शो के दीवाने भी। उन्होंने इसकी चर्चा अपनी मां इंदिरा गांधी से की। ऊषा बताती हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा ने पाशा का एक शो अपने आवास पर भी आयोजित किया था। फिल्मों में भी किया अभिनय

पाशा को फिल्में देखने का भी बहुत शौक था। हॉलीवुड की फिल्में उन्हें पसंद थीं। इसके अलावा उन्होंने खुद भी दो तमिल फिल्मों में काम किया था। 1937 से 1940 केबीच मिलालकोड़ी और दिलरुवा में उन्होंने अभिनय किया। दून में बनेगा गोगिया पाशा अजूबा वंडरलैंड

ऊषा बताती है कि उनका परिवार जादूगर गोगिया पाशा की याद में दून स्थित आवास में 'गिली गिली गोगिया पाशा अजूबा वंडरलैंड' बनाने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां उनकी फोटो और जादू के उपकरण रखे जाएंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.