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लोकायुक्त को नई सरकार पर नजर, नौ साल से कई संशोधन के बाद भी विधानसभा की संपत्ति के रूप में है बंद

उत्तराखंड में लोकायुक्त विधेयक नौ साल से कई संशोधन के बाद भी विधानसभा की संपत्ति के रूप में बंद है। नेतृत्व परिवर्तन के बाद अब नई सरकार पर लोकायुक्त को लेकर नजरें टिकी हुई हैं। हालांकि इसके लागू होने की उम्मीद अधिक नहीं है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 16 Apr 2021 09:45 AM (IST)Updated: Fri, 16 Apr 2021 09:45 AM (IST)
लोकायुक्त को नई सरकार पर नजर, नौ साल से कई संशोधन के बाद भी विधानसभा की संपत्ति के रूप में है बंद
लोकायुक्त को अब नई सरकार पर नजर।

विकास गुसाईं, देहरादून। उत्तराखंड में लोकायुक्त विधेयक नौ साल से कई संशोधन के बाद भी विधानसभा की संपत्ति के रूप में बंद है। नेतृत्व परिवर्तन के बाद अब नई सरकार पर लोकायुक्त को लेकर नजरें टिकी हुई हैं। हालांकि, इसके लागू होने की उम्मीद अधिक नहीं है।

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उत्तराखंड में लोकायुक्त विधेयक 2011 में पारित किया गया। इसे राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गई थी। वर्ष 2012 में सत्ता परिवर्तन हुआ तो नई सरकार ने इसमें अपने हिसाब से संशोधन करते हुए लोकायुक्त को नियुक्त करने की नियत अवधि की बाध्यता को समाप्त कर दिया। वर्ष 2017 में भाजपा सत्ता में आई तो विधेयक में फिर संशोधन किए गए। इस पर विधानसभा में चर्चा भी हुई। विपक्ष की सहमति के बावजूद इसे प्रवर समिति को सौंपा गया। प्रवर समिति की रिपोर्ट मिलने पर भी इस दिशा में कदम नहीं उठे। पिछली सरकार ने तर्क दिया कि पारदर्शी शासन में लोकायुक्त की जरूरत नहीं है।

निजी विवि फीस एक्ट को मशक्कत 

शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से पहचान बना रहे उत्तराखंड में निम्न और मध्यम वर्ग के अभिभावकों को अच्छे कालेज में बच्चों को पढ़ाना एक चुनौती बना हुआ है। इसका प्रमुख कारण निजी कालेजों की आसमान छूती फीस है। स्थिति यह है कि कई जगह फीस इतनी अधिक है कि अभिभावक अपनी जीवन भर की पूंजी को जोड़ कर भी भर नहीं सकता। इससे अभिभावकों का अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाकर उन्हें पैरों पर खड़ा करने का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है।

प्रदेश सरकार ने अभिभावकों की इस पीड़ा को समझा और कहा कि सभी निजी विश्वविद्यालयों के लिए फीस एक्ट बनाया जाएगा। सभी को इसके दायरे में लाया जाएगा। सरकार जो भी फीस तय करेगी, सभी विश्वविद्यालयों को वही फीस लागू करनी होगी। सरकार के इस दावे से अभिभावकों के दिल में उम्मीदें परवान चढ़ीं। अफसोस सरकार की यह घोषणा अभी धरातल पर नहीं उतरी है।

कौशल विकास प्रशिक्षण केंद्र पर झटका

प्रदेश के युवाओं को स्वरोजगार दिलाने की दिशा में सरकार ने कदम बढ़ाए। कौशल विकास केंद्रों के जरिये युवाओं का हुनर निखारने का काम शुरू किया गया। विभिन्न स्थानों पर 104 कौशल प्रशिक्षण केंद्र खोले गए। इन केंद्रों में 15902 प्रशिक्षु प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे। इन कौशल विकास केंद्रों में युवाओं को 31 ट्रेड में 577 पाठ्यक्रम पढ़ाए जा रहे थे। सरकार का लक्ष्य इनके जरिये एक लाख युवाओं को प्रशिक्षण देने का था।

उम्मीद जताई गई कि प्रशिक्षण के बाद ये युवा जल्द रोजगार पाने की दिशा में कदम आगे बढ़ा सकेंगे। बीते वर्ष कोरोना के चलते इन केंद्रों को बंद कर दिया गया। इसका कारण केंद्र सरकार द्वारा इनके संचालन पर रोक लगाना रहा। इससे सरकार की युवाओं को प्रशिक्षण देकर रोजगार उपलब्ध कराने की मुहिम को भी खासा झटका लगा है। हालांकि, प्रदेश सरकार ने केंद्र से इन्हें फिर से संचालित करने का अनुरोध किया है।

फिर से घोषणा तक पुलिस रेंज

प्रदेश में बेहतर कानून-व्यवस्था बनाने के उद्देश्य से लंबे समय से नई पुलिस रेंज बनाने की कवायद चल रही है। प्रस्ताव बने, पत्रावलियां चलाई गईं, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। गत मार्च में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सदन के भीतर गैरसैंण को तीसरा मंडल बनाने के साथ ही इसे पुलिस रेंज बनाने की घोषणा की, तो लगा चलो इस बार रेंज बनाने का काम धरातल पर उतरेगा।

अफसोस, घोषणा के चंद दिनों बाद ही प्रदेश सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ। नए नेतृत्व ने गैरसैंण को मंडल बनाने की घोषणा को स्थगित करने का फैसला सुना दिया। इसके साथ ही प्रदेश में एक बार फिर तीसरी पुलिस रेंज बनने का सपना चकनाचूर हो गया है। दरअसल, पुलिस की तीसरी रेंज बनाने की कवायद 2013 से शुरू होकर 2014 तक चली। इस दौरान अल्मोड़ा व हरिद्वार में रेंज बनाने की बात कही गई, लेकिन तब शासन ने इसके लिए स्वीकृति नहीं दी थी।

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