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बाघों के डर से गुलदारों की पौड़ी में घुसपैठ, मौत की सीबीआइ जांच शुरू

पौड़ी जिले में गुलदार की सबसे अधिक सक्रियता का कारण बाघों का डर माना गया है। वहीं, बाघों और गुलदार की मौतों के मामले में सीबीआइ ने जांच शुरू कर दी है।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 10:02 AM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 08:26 AM (IST)
बाघों के डर से गुलदारों की पौड़ी में घुसपैठ, मौत की सीबीआइ जांच शुरू
बाघों के डर से गुलदारों की पौड़ी में घुसपैठ, मौत की सीबीआइ जांच शुरू

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: पौड़ी जिले में गुलदार की सबसे अधिक सक्रियता को लेकर भारतीय वन्यजीव संस्थान ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बाघों के डर से गुलदार पौड़ी के आबादी क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहे हैं। वहीं, बाघों की मौत की वजह को लेकर सीबीआइ ने जांच शुरू कर दी है। 

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भारतीय वन्य जीव संस्थान की 32वीं वार्षिक शोध संगोष्ठी में बाघ और गुलदार के इस अध्ययन को रखते हुए प्रोजेक्ट साइंटिस्ट डॉ. दिपांजन नाहा ने कहा कि पौड़ी जिले का जो हिस्सा कार्बेट टाइगर रिजर्व से सटा है, वहीं गुलदार की सक्रियता भी सबसे अधिक है।

आइडेंटिफाइंग इकोलॉजिकल ड्राइवर्स ऑफ ह्यूमन-वाइल्डलाइफ कॉन्फ्लिक्ट्स इन दि हिमालयन रीजन, नामक अध्ययन में डॉ. नाहा बताते हैं कि पौड़ी के एकेश्वर, पोखड़ा, पौड़ी मुख्यालय से सटे क्षेत्र क्षेत्र, दुगड्डा, लैंसडौन में ही गुलदार सबसे अधिक सक्रिय हैं। यही इलाके सबसे अधिक कार्बेट टाइगर रिजर्व की सीमा से भी सटे हैं। 

उन्होंने बताया कि कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों के वासस्थलों के चलते गुलदार उनके पास नहीं फटकते हैं और आसपास के अन्य वनों और आबादी क्षेत्रों में ही अधिक विचरण करते हैं। उन्होंने बताया कि इस पूरे इलाके में 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 12 गुलदार सक्रिय हैं। इस तरह देखा जाए तो 40 से 45 फीसद हिस्से में गुलदारों की धमक है।

अप्रत्याशित रूप से यह बात भी सामने आई है कि जिन क्षेत्रों में गुलदार विचरण कर रहे हैं, वहां अन्य वन्यजीवों की भी काफी कमी है। यह भी एक मुख्य कारण है कि गुलदार आबादी में घुसकर मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ा रहे हैं।

हर साल औसतन 14 लोगों पर हमला

संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. दिपांजन नाहा ने 12 सालों के आंकड़े रखते हुए कहा कि प्रतिवर्ष औसतन 03 लोग गुलदार के हमले में मारे जा रहे हैं और 11 लोग घायल हो रहे हैं।

गुलदार के प्रति अधिक घृणा

वैज्ञानिक डॉ. नाहा ने अपने अध्ययन में यह भी कहा कि गुलदार के बढ़ते हमलों के कारण ही पौड़ी के लोगों में गुलदार के प्रति घृणा सबसे अधिक है। यही कारण है कि पौड़ी में वर्ष 2010-11 में पिंजरे में कैद एक गुलदार को जिंदा जला डाला गया था और वर्ष 2013 में एक अन्य गुलदार को जलाने का प्रयास किया गया था।

गुलदारों पर लगेंगे रेडियो कॉलर

पौड़ी में गुलदारों की अधिक सक्रियता को देखते हुए भारतीय वन्यजीव संस्थानों ने यहां कुछ गुलदारों पर रेडियो कॉलर लगाने की योजना बनाई है। इसके लिए वन विभाग से जल्द अनुमति मांगी जाएगी। ताकि आबादी में घुसने वाले गुलदारों की पहचान करने के साथ ही उनके हर मूवमेंट की जानकारी भी मिल सके। 

साथ ही संस्थान ने एकेश्वर क्षेत्र में कुछ स्थानों पर फॉक्स लाइटें भी लगाई हैं। गुलदार इसके आदी न हो पाएं, इसके लिए ऐसी फॉक्स लाइटें भी लगाने पर काम चल रहा है, जिनकी रोशनी रंग बदलेगी और अलग-अलग आवाज भी पैदा करेंगी।       

बाघों की मौत की सीबीआइ जांच शुरू

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों और गुलदारों की मौत की जांच शुरू कर दी है। पिछले दिनों हाई कोर्ट ने सीबीआइ की वन्य जीव शाखा को मामले की जांच के आदेश दिए थे। सीबीआइ ने लैंसडौन वन प्रभाग से भी बाघ व गुलदार की मौत से संबंधित दस्तावेज तलब किए हैं।

पौड़ी जिले का लैंसडौन वन प्रभाग कार्बेट नेशनल पार्क और राजाजी नेशनल पार्क के बीच में है। इस वन प्रभाग के जरिये बाघ एक से दूसरे पार्क में आते-जाते हैं। यह वन प्रभाग उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले से सटा है। 

यहां कई बार वन्य जीव तस्करों की सक्रियता भी सामने आ चुकी है। पूर्व में इस प्रभाग के कोटद्वार, कोटड़ी रेंज में बाघ की शिकार की घटनाएं भी हो चुकी हैं। इसी कारण यह प्रभाग सीबीआइ के रडार पर है। लैंसडौन वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी वैभव कुमार ङ्क्षसह ने बताया कि सीबीआइ ने प्रभाग में बाघ व गुलदारों की मौत से संबंधित आंकड़े मांगे, जिन्हें तैयार कर जांच टीम को भेज दिया गया है। गौरतलब है कि कार्बेट टाइगर रिजर्व में 2014 से 2017 के बीच 20 से अधिक बाघों के शिकार का आरोप है। 

हरिद्वार में गुलदार की खाल और कंकाल मिलने की भी जांच 

हरिद्वार में मार्च में गुलदार के तीन कंकाल और एक खाल मिलने के मामले की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) ने प्रारम्भिक जांच शुरू कर दी है। सीबीआइ की टीम ने अपर सचिव वन मनोज चंद्रन से अब तक हुई जांच से संबंधित दस्तावेज कब्जे में लिए। 

मार्च माह में राजाजी टाइगर रिजर्व की मोतीचूर व हरिद्वार रेंज के बार्डर पर संपेरा बस्ती के पास तीन अलग-अलग गड्ढ़ों से गुलदार की खाल और हड्डियां मिली थी। मामले में गुलदार के शिकार की आशंका जताई गई थी। 

आरोप है कि इस मामले में बरामद सामान को मौके पर सीलबंद किया गया थी, लेकिन बाद में सील तोड़कर दोबार सील लगाई गई। घटना की जांच अपर सचिव वन मनोज चंद्रन को सौंपी गई। मनोज चंद्रन ने बताया कि जांच काफी हद तक पूरी हो गई थी। वह घटना के खुलासे के काफी करीब हैं। इस बीच हाईकोर्ट ने सीबीआइ से जांच के आदेश दिए। 

मनोज चंद्रन ने बताया कि सीबीआइ ने मामले की प्रारंभिक जांच शुरु कर दी है। उन्होंने बताया कि सीबीआइ को मांगी गई जानकारी दे दी गई है। गौरतलब है कि इस मामले में रायवाला निवासी सोनू को गिरफ्तार किया गया था, पूछताछ में उसने पंछी, सहजान, योगेश और अजीवा का नाम बताया। पंछी और सहजान ने बाद में नाटकीय ढंग से महिला के वेश में कोर्ट में सरेंडर कर दिया था। 

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