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Chardham Yatra: कत्यूरी शैली में बना है केदारनाथ धाम, सीढ़ि‍यों पर अंकित है अंजान लिपि

केदारनाथ मंदिर 12वीं-13वीं सदी का है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ि‍यों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ अंकित है जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 13 May 2019 12:47 PM (IST)Updated: Mon, 13 May 2019 07:42 PM (IST)
Chardham Yatra: कत्यूरी शैली में बना है केदारनाथ धाम, सीढ़ि‍यों पर अंकित है अंजान लिपि
Chardham Yatra: कत्यूरी शैली में बना है केदारनाथ धाम, सीढ़ि‍यों पर अंकित है अंजान लिपि

देहरादून, जेएनएन। रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 3553 मीटर (11654 फीट) की ऊंचाई पर मंदाकिनी व सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ ही हिमालय के चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। कहा जाता है कि भूरे रंग के विशालकाय पत्थरों से निर्मित कत्यूरी शैली के इस मंदिर का निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने कराया था। मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। मंदिर छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में भगवान शिव का वाहन नंदी बैल विराजमान है।

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कहते हैं कि आठवीं सदी में चारों दिशाओं में चार धाम स्थापित करने के बाद 32 वर्ष की आयु में आद्य शंकराचार्य ने केदारनाथ धाम में ही समाधि ली। उन्हीं के द्वारा वर्तमान मंदिर बनवाया गया। महापंडित राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12वीं-13वीं सदी का है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ि‍यों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ अंकित है, जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका। जबकि, इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल 'चारण' मानते हैं कि शैव लोग आद्य शंकराचार्य से पूर्व भी केदारनाथ जाते रहे हैं। केदारनाथ धाम के पुजारी मैसूर (कर्नाटक) के जंगम ब्राह्मण होते हैं। वर्तमान में 337वें रावल केदारनाथ धाम की व्यवस्था संभाल रहे हैं।

भगवान केदारनाथ के कपाट आम भक्तों के दर्शनार्थ खुले

केदारनाथ धाम के कपाट नौ मई को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। शीतकाल में छह महीने तक ओंकारेश्वर मंदिर में विश्राम के बाद भोले बाबा केदारनाथ धाम में विराजमान हुए। बाबा केदार के जयकारों के बीच पांच हजार से ज्यादा तीर्थयात्री इस मौके के साक्षी बने। मंदिर समिति पदाधिकारियों की मौजूदगी में तड़के करीब चार बजे केदानाथ मंदिर के कपाट खुलने की प्रकिया शुरू हुई। बाबा केदार की पंचमुखी उत्सव डोली को मुख्य पुजारी केदार लिंग ने भोग लगा पूजा अर्चना की। इसके बाद रावल भीमाशंकर लिंग, वेदपाठियों, पुजारियों, हक-हकूकधारियों की मौजूदगी में वैदिक परंपराओं के अनुसार मंत्रोच्चार के बीच पांच बजकर 35 मिनट पर केदारनाथ धाम के कपाट खोले गए।

सम्मोहित करने वाला है केदारनाथ का नया रूप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट की झलक केदारपुरी में दिखने लगी है। देश-दुनिया से आने वाले यात्रियों को इस बार केदारपुरी नए रूप-रंग में नजर आ रही है। मंदिर परिसर में जहां एक साथ तीन हजार यात्री खड़े हो सकते हैं, वहीं यात्री 200 मीटर दूर मंदाकिनी व सरस्वती नदी के संगम से भी केदारनाथ मंदिर के दिव्य दर्शन कर रहे हैं। वर्ष 2013 में आपदा के दौरान केदारपुरी में व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गई थी। बीते एक वर्ष के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत काफी कार्य हुआ है। मंदिर परिसर पहले की तुलना में तीन गुना बड़ा हो गया है। जबकि, मंदिर के सामने 275 मीटर लंबा व 50 फीट चौड़ा रास्ता बनाया गया है। मंदिर के रास्ते में भी यात्रियों के बैठने के लिए व्यवस्था की गई है। 

आस्था के आगे बौनी पड़ी चुनौतियां

यह बाबा के प्रति भक्तों की अटूट आस्था ही तो है कि वह ऊंचे-ऊंचे हिमखंडों के बीच से खड़ी चढ़ाई चढ़कर बाबा के दर पर पहुंच रहे हैं। बर्फ से ढकी केदारपुरी में कड़ाके की ठंड भी भक्तों का उत्साह कम नहीं होने दे रही। पूरी केदारपुरी में अभी भी पांच फीट से अधिक बर्फ है और सुबह व रात के वक्त तापमान शून्य से नीचे चला जा रहा है। 16 किमी लंबे रास्ते में हिमखंडों को पार करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। उस पर मौसम पल-पल करवट बदल रहा है। चारों धाम में सबसे कठिन यात्रा केदारनाथ की ही है। बावजूद इसके भक्तों में केदारनाथ आने को लेकर उत्साह देखते ही बनता है।

केदारनाथ में 3000 से अधिक यात्रियों की ठहरने की व्‍यवस्‍था

केदारनाथ धाम में इस बार तीन हजार से अधिक यात्री रात्रि विश्राम कर सकेंगे। इसके लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन) धाम में 200 अतिरिक्त टेंट लगा है। निगम की पांच टीम टेंट कॉलोनी तैयार करने में जुटी हैं। 

ऐसे पहुंचे

नजदीकी हवाई अड्डा : जौलीग्रांट-239 किमी 

नजदीकी रेलवे स्टेशन : ऋषिकेश-229 किमी 

सड़क सुविधा : हरिद्वार-ऋषिकेश के अलावा देहरादून व कोटद्वार से भी यहां पहुंच सकते हैं। 

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