कश्मीरी पंडितों ने बयां की पीड़ा
जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र देहरादून की ओर से कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को निष्कासन दिवस के रूप में याद करते हुए घटना की भर्त्सना की गई। इस दौरान कश्मीरी पंडितों का दर्द सुन सभी की आंखें भर आई।
जागरण संवाददाता, देहरादून: जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र देहरादून की ओर से कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की घटना के विरोध में 'निष्कासन दिवस' विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें 1990 की घटना में परिजनों को खोने वाले कश्मीरी पंडितों ने अपना दर्द बयां किया। उस मंजर की कल्पना कर हर कोई सिहर उठा। साथ ही हर किसी के दिल में कश्मीरी पंडितों के प्रति संवेदना भी जगी। इस दौरान वक्ताओं ने एक सुर में कश्मीरी पंडितों को देश में लाने व उनका अधिकार दिलाने की वकालत की।
रविवार को राजपुर रोड स्थित विश्व संवाद केंद्र में आयोजित गोष्ठी में जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के संयोजक बलदेव पराशर ने 19 जनवरी 1990 को हुई कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की घटना को देश के लिए काला दिवस बताया। इसके बाद वक्ता निधि ने इस घटना पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि कश्मीर में समुदाय विशेष का राज कराने के लिए कश्मीरी पंडितों को देश से बाहर किया गया। उन्हें धर्म परिवर्तन या देश छोड़ने की धमकी भी दी गई। इसके बाद इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी एवं पीड़ित केके रैना ने अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान परस्त समुदाय विशेष के लोगों ने ¨हदू मां-बेटियों को लूटने व दुष्कर्म जैसी घटनाओं को अंजाम दिया था। इससे बचने के लिए ¨हदू जम्मू भागने लगे। इसी तरह उनकी मां भी भागने लगीं और अपनी जान से प्रिय बछड़े को समीप के एक मुस्लिम परिवार को सौंप दिया। लेकिन, जब मां रोती हालत में जाने लगी तो बछड़ा भी रस्सी तोड़कर मां की ओर दौड़ पड़ा। उस बछड़े की आंख में आंसू थे। शायद उस समय के हालात को बछड़ा भी महसूस कर रहा था। कहा कि ¨हदूओं को बगीचों के लिए मजदूर देने बंद कर दिए गए थे, ताकि उनके सामने जीविका का संकट खड़ा हो जाए। हर तरह से हमें प्रताड़ित किया जा रहा था।
इसके बाद केंद्र के सदस्यों ने एक सुर में केंद्र सरकार से कश्मीरी पंडितों को देश में वापस लाने व उनको उनकी संपत्ति सौंपने की मांग की। साथ ही कश्मीर से धारा 370 हटाकर एक देश-एक कानून लागू करने की भी जरूरत बताई। इस अवसर पर नीरज मित्तल, विशाल, डॉ. सूरज पारचा, दिनेश उपमन्यु, राकेश धर उपस्थित रहे।