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कारगिल शहीद के पिता बोले, एड़ियां घिस गई पर हमारी सुनता कोई नहीं

एक परिवार ने कारगिल में शहीद अपने जिगर के टुकड़े की याद में मंदिर बनाया और वहां बेटे की मूर्ति लगाई। पर ताज्जुब देखिए कि सरकारें ही इस शहीद को भूल गईं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 26 Jul 2019 02:58 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jul 2019 09:39 PM (IST)
कारगिल शहीद के पिता बोले, एड़ियां घिस गई पर हमारी सुनता कोई नहीं
कारगिल शहीद के पिता बोले, एड़ियां घिस गई पर हमारी सुनता कोई नहीं

देहरादून, जेएनएन। ये एक साहसी परिवार की अपने वीर सपूत के प्रति अगाध प्रेम की अनूठी कहानी है। आमतौर पर बच्चों के माता-पिता की स्मृति में मंदिर बनाने के उदाहरण मिलते हैं, पर दून के इस परिवार ने कारगिल में शहीद अपने जिगर के टुकड़े की याद में पाई-पाई जोड़ मंदिर बनाया और वहां बेटे की मूर्ति लगाई। मंशा ये थी कि लोग सदियों तक उनके बेटे की बहादुरी को याद रखें। पर ताज्जुब देखिए कि सैनिकों की हितैषी होने का दंभ भरने वाली सरकारें ही इस शहीद को भूल गईं। बाकी बात छोड़ि‍ए, शहीद के पिता क्षेत्रीय विधायक से मूर्ति के रंग रोगन की गुजारिश कई बार चुके हैं, पर वह भी सुध नहीं ले रहे। 

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कारगिल शहीद राजेश गुरुंग के पिता नायक श्याम सिंह गुरुंग (अप्रा) के चेहरे पर ये बातें कहते हुए उदासी छा जाती है। 

दैनिक जागरण की टीम जब गढ़ी कैंट स्थित चांदमारी गांव में उनके घर पहुंची तो उन्होंने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की। उन्होंने बताया कि उन्हें न जमीन मिली और न बेटे को नौकरी। वह बताते हैं कि राजेश 2 नागा रेजीमेंट में तैनात थे। छह जुलाई 1999 को वह कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे। बेटा शहीद हुआ तो सरकार ने घोषणा की थी कि पांच बीघा जमीन और घर के एक व्यक्ति को नौकरी दी जाएगी। बताया कि शहादत के वक्त करीब 27 लाख रुपये मिले थे, जिससे चांदमारी में मकान बना लिया था। पर आज 20 साल बाद सरकार से चंद हजार रुपये महीना पेंशन के अलावा कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। नौकरी के इंतजार में छोटे बेटे अजय की उम्र ही निकल गई। वह अब प्राइवेट जॉब कर रहा है। इसी तरह सरकार ने आज तक उन्हें जमीन भी नहीं दी। हर साल औपचारिकता पूरी करने के लिए उन्हें सरकारी आयोजन में बुलाया जरूर जाता है, पर उनकी समस्या का समाधान नहीं किया जाता।

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कम से कम शहीदों के साथ तो ऐसा मजाक नहीं किया जाना चाहिए। यह मजाक ही तो है कि कारगिल शहीद को खानापूर्ति के लिए जमीन तो आवंटित कर दी गई गई, मगर यह तक जानने की कोशिश नहीं की गई कि उस जमीन पर किसी का कब्जा तो नहीं। यह कोई आज की बात नहीं, एक अर्से पहले का मामला है, जब कारगिल शहीद संजय गुरुंग के परिवार को सरकार ने विवादित जमीन आवंटित कर दी। इस जमीन पर आज तक शहीद के परिवार का कब्जा नहीं हो पाया है। 

शहीद संजय गुरुंग के भाई सुनील गुरुंग इस बात से खफा नहीं कि उन्हें जमीन नहीं मिल पाई, बल्कि उन्हें पीड़ा इस बात की है कि सरकार ने शहीद के साथ खिलवाड़ किया है। शहीद परिवारों के प्रति सरकार की उदासीनता के और भी मामले हैं। उत्तराखंड के 75 शहीदों में से कई परिवारों को आज तक जमीन मिल ही नहीं पाई है, जबकि इस बाबत सरकार ने बाकायदा आदेश जारी किया था।

कालीदास रोड निवासी शहीद सुबाब सिंह की पत्नी मुन्नी देवी भी सरकारी उपेक्षा से क्षुब्ध हैं। उनका कहना है कि सरकार ने उन्हें पांच बीघा जमीन देने की घोषणा की थी। उन्होंने कई स्तर पर गुहार लगाई। दफ्तर से दफ्तर एडियां रगड़ती रहीं, लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ। इसी तरह शहीद जयदीप सिंह भंडारी के परिवार को भी सरकार ने विवादित जमीन आवंटित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। इसी तरह कारगिल शहीद राजेश गुरुंग के परिवार को दो दशक बाद भी जमीन नहीं मिल पाई है।

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