अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस : विषम हालात में भी कम नहीं होने दी शिक्षा की ‘लौ’, जानिए इनके बारे में
कोरोनाकाल में कई ऐसे लोग सामने आए जिन्होंने विषम से विषम परिस्थितियों को भी अवसर बना लिया। ऐसे ही इबारत राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान के शिक्षक कमलबीर सिंह जग्गी और शूटिंग में अपनी पहचान बना चुके अनिल कवि ने भी लिखी।
जागरण संवाददाता, देहरादून : विपरीत परिस्थितियों में अपने हौसले एवं जज्बे की बदौलत कामियाबी हासिल करने वाले लोग कम ही होते हैं। लेकिन, कोरोनाकाल में कई ऐसे लोग सामने आए जिन्होंने विषम से विषम परिस्थितियों को भी अवसर बना लिया। ऐसे ही इबारत राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान के शिक्षक कमलबीर सिंह जग्गी ने भी लिखी। जग्गी ने दृष्टिबाधित होने के बाद भी ऑनलाइन शिक्षा का पूरा सिस्टम समझा और छात्रों को पढ़ाया। इन विषम हालात में भी उन्होंने शिक्षा की लौ कम नहीं होने दी।
कमलबीर सिंह जग्गी राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान में पिछले 12 साल से सेवाएं दे रहे हैं। वर्तमान में वह संस्थान के डिपार्टमेंट ऑफ स्पेशल एजुकेशन एंड रिसर्च के एचओडी के तौर पर तैनात हैं।
कमलबीर सिंह ने बताया कि कोरोना के चलते पैदा हुए मुश्किल हालात उनके लिए भी बेहद कठिन साबित हुए। लेकिन, उन्होंने इस कठिन समय को शिक्षा के आड़े नहीं आने दिया। बताया कि सबसे बड़ी मुश्किल यह भी थी कि संस्थान के छात्रों को घर भेजा जा चुका था एवं उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। लेकिन, इसी समय संस्थान में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करवा दी। जग्गी ने बताया कि उन्होंने खुद और संस्थान के बाकी दिव्यांग शिक्षकों ने भी ऑनलाइन पढ़ाई करवाने के लिए संस्थान के आइटी विभाग से वीडियो अपलोड करना सीखा। बताया कि कंप्यूटर का स्क्रीन रीडिंग सॉफ्टवेयर इसमें बड़ा मददगार साबित हुआ। कमलबीर का मानना है कि परिस्थितियां भले ही कितनी विपरीत क्यों न हों, लेकिन अगर कुछ करने की ठान लो तो कोई न कोई रास्ता निकल ही आता है।
खेल भावना ने करवाई बाधाएं पार
खेल भावना इंसान को जीवन जीना और विषम हालात में भी धैर्य बनाए रखना सिखा देती है, यह मानना है राष्ट्रीय स्तर पर शूटिंग में अपनी पहचान बना चुके अनिल कवि का। अनिल के दोनों पैर काम नहीं करते, लेकिन उन्होंने अपनी इस समस्या को कभी अपने खेल के आड़े नहीं आने दिया। अनिल ने 17 साल की उम्र से निशानेबाजी शुरू की थी। अनिल मूल रूप से टिहरी गढ़वाल के नैनबाग के रहने वाले हैं। अनिल ने बताया कि प्रसिद्ध निशानेबाज जसपाल राणा ने 12वीं पास करने के बाद उन्हें अपनी दिल्ली स्थित निशानेबाजी अकादमी में बतौर अकाउंटेंट नौकरी दी।
यहीं उन्होंने काम के बाद निशानेबाजी की ट्रेनिंग ली। साल 2002 में नार्दन इंडिया शूटिंग चैंपियनशिप में दिव्यांग वर्ग में पहला गोल्ड जीता। अनिल बताते हैं कि इस प्रतियोगिता के बाद ही राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए निशानेबाजी में अलग वर्ग बना। इसके बाद अनिल राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर की हर प्रतियोगिता में गोल्ड जीत चुके हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करने के साथ ही वह अपनी निशानेबाजी की अकादमी भी चला रहे हैं।