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कैलाश सत्यार्थी बोले, बाल अपराधों की सुनवाई के लिए हर जिले में खुले कोर्ट

देहरादून पहुंचे चपन बचाओ आंदोलन के प्रणेता कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि हर जिले में बच्चों से हो रहे अपराध से निपटने के लिए अदालत होनी चाहिए।

By raksha.panthariEdited By: Published: Fri, 13 Oct 2017 08:20 PM (IST)Updated: Fri, 13 Oct 2017 10:51 PM (IST)
कैलाश सत्यार्थी बोले, बाल अपराधों की सुनवाई के लिए हर जिले में खुले कोर्ट
कैलाश सत्यार्थी बोले, बाल अपराधों की सुनवाई के लिए हर जिले में खुले कोर्ट

देहरादून, [जेएनएन]: नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और बचपन बचाओ आंदोलन के प्रणेता कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों की तस्करी पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बाल अपराध और बाल मजदूरी रोकने के लिए सरकारें ठोस नीति बनाएं। उन्होंने कहा कि बच्चों से जुड़े लंबित अपराधों के निस्तारण के लिए प्रत्येक जिले में अदालतें खोली जानी चाहिए। 

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इन दिनों कैलाश सत्यार्थी 'सुरक्षित बचपन-सुरक्षित भारत' का संदेश लेकर भारत यात्रा कर रहे हैं। 11 सितंबर को तमिलनाडु से शुरू से हुई यात्रा का समापन 16 अक्टूबर को दिल्ली में होगा। इसके तहत शुक्रवार को वह देहरादून पहुंचे और ग्राफिक एरा डीम्ड विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की। इस दौरान युवाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अकेले वर्ष 2015 में बाल अपराध से जुड़े 96 फीसद केस लंबित चल रहे हैं। वहीं वर्ष 2016 में भी महज चार फीसद में सजा हो पाई और छह फीसद मामलों में आरोपी छूट गए। यानि 90 फीसद मामले लंबित हैं। 

उन्होंने कहा कि ये सिर्फ दो साल के आंकड़े हैं। इस लिहाज से देखें तो इन्ही मामलों के निस्तारण में वर्षों लग जाएंगे। उन्होंने कहा कि इन मामलों को सुलझाने में हम चुप नहीं रहेंगे। नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि दोषियों को सजा मिले इसके लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। मांग की कि मुकदमों की पैरवी और निस्तारण में देरी करने वालों की भी जिम्मेदारी तय हो। ह्मूमन ट्रैफिकिंग पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत इसका रास्ता ही नहीं बल्कि गढ़ बनता जा रहा है। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह  इसके लिए सख्त कानून बनाने का आग्रह किया गया है। राज्य सरकारें भी अपनी तरफ से ऐसे मामलों में सख्ती बरतें और केन्द्र के समक्ष ठोस पैरवी करें। 

ग्लोबल मार्च से 11 हजार पहुंची बाल मजदूरी 

नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि बाल मजदूरी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिनेवा में पहली बार ग्लोबल मार्च हुआ। गुलामी से छूटे बच्चों ने कार्यक्रम में भाग लेकर अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहा था कि पेंसिल, किताबों की जगह उनके हाथों में काम दे दिया। मामला दुनियाभर में उठा तो उस दौरान 26 करोड़ बाल मजदूरी की संख्या घटकर इस साल 15 तक पहुंच गई है। जो आगे और कम होने की उम्मीद हैं। 

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