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Joshimath Sinking: दरारों में मलबा भरने से विज्ञानी नहीं सहमत, बोले- स्थिति बेहद गंभीर, बस दिख रहा एक विकल्‍प

Joshimath Sinking उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के पूर्व निदेशक व एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट का कहना है कि भूधंसाव जैसी वृहद स्थिति में दरारों को भरने का प्रयास समय व धन दोनों की बर्बादी है।

By Suman semwalEdited By: Nirmala BohraPublished: Tue, 24 Jan 2023 08:00 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jan 2023 08:00 AM (IST)
Joshimath Sinking: दरारों में मलबा भरने से विज्ञानी नहीं सहमत, बोले- स्थिति बेहद गंभीर, बस दिख रहा एक विकल्‍प
Joshimath Sinking: दरारों को भरने का प्रयास समय व धन दोनों की बर्बादी है।

सुमन सेमवाल, देहरादून: Joshimath Sinking: जोशीमठ में भूधंसाव की स्थिति निरंतर गंभीर होती दिख रही है। भवनों और जमीन पर उभरी दरारें न सिर्फ चौड़ी होती जा रही हैं, बल्कि कई जगह दरारों की लंबाई भी बढ़ रही है। इस स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए दरारों में मलबा भी भरा जाने लगा है।

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हालांकि, भूविज्ञानी इससे सहमत नहीं दिख रहे। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के पूर्व निदेशक व एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट का कहना है कि भूधंसाव जैसी वृहद स्थिति में दरारों को भरने का प्रयास समय व धन दोनों की बर्बादी है।

नीचे की तरफ सरकने की है जमीन की प्रकृति

भूविज्ञानी प्रो. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक, जोशीमठ की जमीन ग्लेशियर के पीछे खिसकने के बाद शेष बचे मलबे से बनी है। ऐसी जमीन की प्रकृति नीचे की तरफ सरकने की होती है। इसके साथ ही जोशीमठ के करीब-करीब नीचे से ऐतिहासिक भूकंपीय फाल्ट लाइन मेन सेन तरल थ्रस्ट (एमसीटी) भी गुजर रहा है। लिहाजा, भूधंसाव की स्थिति गंभीर दिख रही है।

सतह पर उभरी और गंभीर होती दरारों में पानी जाने से रोकने के लिए सरकारी तंत्र इन दिनों इनमें मलबा भर रहा है। कुछ जगह दरारों को प्लास्टिक से भी ढका जा रहा है।

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हालांकि, लगभग पूरे जोशीमठ में भूधंसाव व दरारों के उभरने के चलते यह प्रयास निरर्थक साबित होता दिख रहा है। क्योंकि, यहां की जमीन की प्रकृति नमी व पानी को शीघ्र सोखने की है। जहां दरारें नहीं हैं, वहां से भी जमीन नमी व पानी को सोख रही है। ऐसे में दरारों में मलबा भरने से कोई असर नहीं पड़ेगा।

विस्थापन ही दिख रहा विकल्प

भूविज्ञानी प्रो. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक, जोशीमठ क्षेत्र में भूधंसाव की स्थिति बताती है कि सरकार को उपाय के रूप में प्राथमिकता के आधार पर विस्थापन के विकल्प पर आगे बढ़ना होगा। इससे जोशीमठ से दबाव भी कम हो सकेगा।

विस्थापन में प्लानिंग का रखें ध्यान

भूविज्ञानी प्रो. बिष्ट ने कहा कि वर्ष 1970 में अतिवृष्टि जनित आपदा में बिरही ताल टूटने के दौरान पीपलकोटी क्षेत्र में बदरीनाथ राजमार्ग का 14 किलोमीटर भाग पूरी तरह ध्वस्त हो गया था।

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यहां पर सड़क का नए सिरे से निर्माण करने के दौरान अनियंत्रित ब्लास्टिंग की गई। जिससे पहाड़ कच्चे पड़ गए और आज भी यह पूरा क्षेत्र कई भूस्खलन का जोन बना है। लिहाजा, विस्थापन की प्रक्रिया में पूर्व की गलतियों से सीख लेकर बेहतर प्रबंधन व तकनीकी मानकों का ध्यान रखना होगा।


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