Krishna janmashtami 2019: जनमाष्टमी पर ऐसे करें कान्हा की पूजा, इन बातों का रखें खास ध्यान
देहरादून में 23 अगस्त शुक्रवार को जनमाष्टमी पर्व का व्रत रखा जाएगा। आचार्य बंशीधर नौटियाल के अनुसार जनमष्टामी पर्व शुक्रवार अर्ध रात्रि व्यापिनी अष्टमी में होगा।
देहरादून, जेएनएन। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी कहते हैं। केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी जन्माष्टमी पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की मध्य रात्र में रोहिणी नक्षत्र में वृष राशि के चंद्रमा पर हुआ था। यह तिथि इस वर्ष 23 अगस्त शुक्रवार को पड़ रही है, सो दून में जनमाष्टमी पर्व का व्रत शुक्रवार को रखा जाएगा। आचार्य बंशीधर नौटियाल के अनुसार जनमष्टामी पर्व शुक्रवार अर्ध रात्रि व्यापिनी अष्टमी में होगा। अष्टमी शुक्रवार सुबह आठ बजकर दस मिनट से शुरू होगी और शनिवार की सुबह साढ़े आठ बजे तक रहेगी।
आचार्य नौटियाल के अनसुार भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और वृंदावन की परंपरा के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मोत्सव उदय तिथि में मनाते हैं, जबकि कुछ अन्य जगहों पर यह अर्ध रात्रि व्यापिनी अष्टमी काल में भी मनाया जाता है। यहां भी जन्मोत्सव और जनमाष्टमी की अलग-अलग स्थितियां हैं। हमारे यहां जनमाष्टमी पर पूजन किया जाता है, इसलिए यहां शास्त्र की विधि के अंतर्गत जनमाष्टमी व्रत व्यापिनी अष्टमी शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। वहीं, जनमाष्टमी मनाने को लेकर दून के मंदिरों में तैयारियां तेज हो गई हैं। चैतन्य गौड़िय मठ से लेकर इस्कॉन मंदिर, श्री पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर और गीता भवन समेत पुलिस लाइन में पंडाल सजाए जा रहे हैं।
ऐसे करें कान्हा का पूजन
बेशक जन्माष्टमी का पूजन मध्य रात्रि को होता है परंतु इसकी तैयारी प्रात: काल से ही प्रारंभ हो जाती है। इसके लिए सुबह स्नान आदि से निवृत हो कर भगवान को प्रणाम करके व्रत का संकल्प लें। इसके बाद केले के खंभे, आम और अशोक की पत्तियों से मंडप तैयार कर उसमें पालना सजायें। घर के मुख्यद्वार पर मंगल कलश व मूसल को स्थापित करें। इसके बाद मध्य रात्रि होते ही शंख-घंटे की ध्वनि के बीच गर्भ के प्रतीक नार वाले खीरे से भगवान का जन्म कराएं।
इसके बाद पंचोपचार पूजन करें। इसके लिए सर्वप्रथम बाल कृष्ण जिन्हें बाल मुकुंद भी कहते हैं, की मूर्ति को एक पात्र में रख कर दूध, दही, शहद, पंचमेवा और सुंगध युक्त शुद्घ जल और गंगा जल से स्नान कराएं और उन्हें पालने में स्थापित कर वस्त्रों को धारण कराएं। भगवान को पीले वस्त्र पहनाना ही उत्तम माना जाता है। फिर भगवान की विधि विधान से आरती करें व अंत में उन्हें नैवैद्य अर्पित करें। नैवैद्य में फल, मिष्ठान के साथ परंपरा के अनुसार धनिया और पंच मेवा की पंजीरी भोग लगाएं। इस दौरान भगवान को इत्र जरूर लगाएं।
इन बातों का रखें ध्यान
पूजा के दौरान कुछ खास बातों का ध्यान रखें। भगवान के निकट एक बांसुरी रखना ना भूलें, क्योंकि उसके बिना श्री कृष्ण का श्रंगार पूरा नहीं होता। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम की तो विधि पूर्वक पूजा करें ही, इसके साथ ही जहां भी पूजा का मंडप सजाएं वहां बाल कृष्ण के स्वरूप को दुग्धपान कराती देवकी, विष्णु जी और लक्ष्मी जी की युगल मूर्ति, नंदजी व बलदेव समेत यशोदा जी की मूर्ति भी स्थापित करें। पूजा के बाद इन सभी के चरण स्पर्श करें। भगवान पर जल अर्पित करते समय अगर दक्षिणमुखी शंख का प्रयोग किया जाए तो अति उत्तम रहता है।
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आठ फीट की पूतना होगी आकर्षण का केंद्र
श्री पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर सेवा दल की बुधवार को हुई बैठक में शुक्रवार को मनाई जाने वाली जनमाष्टमी की तैयारी पर विचार विमर्श हुआ। महंत 108 रविंद्र पुरी महाराज की मौजूदगी में हुई बैठक के उपरांत बताया गया कि मंदिर में रात आठ बजे से देहरादून से बाहर से आ रहे कलाकार झांकियों का प्रदर्शन करेंगे। इसमें विशेष रूप से लगभग आठ फीट से बनाई पूतना आकर्षण का केंद्र होगी। घूमते हुए शंख पर श्री कृष्ण जी और कैलाश पर्वत को उठाए रावण की झांकी भी प्रस्तुत की जाएगी। मध्यरात्रि को श्री कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल जी का पवित्र गंगाजल, दूध, दही, घी, पंचामृत और शहद से जलाभिषेक किया जाएगा। इसके साथ ही उन्हें वस्त्र भेंट कर उनका सुंदर श्रृंगार कर उन्हें पालने में विराजमान कर उनकी पूजा-अर्चना और आरती की जाएगी। सूखे धनिया व पंचामृत के साथ माखन मिश्री का प्रसाद भी वितरित किया जाएगा।
शनिवार को होगा भव्य नंदोत्सव
सेवा दल द्वारा बताया गया कि शनिवार को रात आठ बजे से भव्य नंदोत्सव मनाया जाएगा, जिसमें मथुरा और वृंदावन के करीब 31 कलाकार मटकी फोड़ लीला करेंगे। इस दौरान राधाकृष्ण का मयूर नृत्य, दीप नृत्य, राधा कृष्ण का डांडिया रास, शंकर भगवान की झांकी समेत देश प्रेम की झांकी का भी प्रस्तुतीकरण होगा।
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