Move to Jagran APP

वन निगम के जंगलराज का पर्दाफाश, कौड़ियोंं के भाव बेचा सामान

आरटीआइ क्लब के महासचिव अमर सिंह धुन्ता केे उस खुलासे पर सूचना आयोग ने जांच के आदेश दिए हैं, जिसमें उन्होंने वन निगम केे जंगलराज की पोल खोली थी।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 12 Aug 2017 02:49 PM (IST)Updated: Sat, 12 Aug 2017 10:52 PM (IST)
वन निगम के जंगलराज का पर्दाफाश, कौड़ियोंं के भाव बेचा सामान
वन निगम के जंगलराज का पर्दाफाश, कौड़ियोंं के भाव बेचा सामान

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: कुछ दिन पुरानी बात है जब आरटीआइ क्लब के महासचिव अमर सिंह धुन्ता ने खुलासा किया था कि वन विकास निगम ने 60 लाख रुपये के कीमती सामान को महज 15 हजार रुपये में नीलाम कर दिया। कौड़ियों के भाव बेचे गए कार्यालय के साजो-सामान की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक साइकिल को एक रुपये में नीलाम कर दिया गया। उनके खुलासे पर सूचना आयोग ने भी मुहर लगाई और मामले को गंभीर बताते हुए मुख्य सचिव से सीबीसीआइडी जांच कराने को कहा। वन विकास निगम में ही 2.54 करोड़ रुपये का आयकर घोटाला भी अमर सिंह धुन्ता की आरटीआइ में खुला। मामले में आपराधिक मुकदमा दर्ज करने के लिए निगम के प्रबंध निदेशक ने मुख्य सचिव को अपनी संस्तुति भेज दी है। इन ताजा उदाहरणों के अलावा भी धुन्ता सिस्टम के तमाम गोलमाल बाहर निकाल चुके हैं और उनकी हर अर्जी किसी न किसी रूप में व्यवस्था सुधार की दिशा में योगदान कर रही है। 

loksabha election banner

आरटीआइ की 5000 से अधिक अर्जी दाखिल कर चुके अमर सिंह धुन्ता ने आरटीआइ का पहला आवेदन वर्ष 2006 में तब दाखिल किया जब उनकी पत्नी का पदोन्नति आदेश निरस्त कर दिया गया था। उनकी पत्नी गार्गी धुन्ता एमकेपी में प्रवक्ता हैं और उस समय पर एलटी शिक्षक थीं। अपर जिला शिक्षाधिकारी ने उनका पदोन्नति आदेश यह कहकर निरस्त कर दिया था कि वह बीए गृह विज्ञान हैं और प्रवक्ता पद के लिए बीएससी गृह विज्ञान होना जरूरी है। एक तरफ उन्होंने आरटीआइ में साक्ष्य एकत्रित करने शुरू किए और दूसरी तरफ हाई कोर्ट में भी वाद दायर किया। साक्ष्यों में अभाव में सिंगल बेंच का निर्णय उनके खिलाफ आया। इसके बाद उन्होंने पुनर्विचार याचिका दाखिल की और तब तक उनके हाथ उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट एक्ट हाथ लग चुका था और तमाम ऐसे प्रवक्ताअें के साक्ष्य भी उन्होंने जुटा लिए थे, जो बीए गृह विज्ञान थे। कोर्ट ने भी साक्ष्यों को माना और अंत में जीत धुन्ता की हुई। इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और आरटीआइ के दम पर उन्हें यहां भी सफलता मिली। 

यह लड़ाई अमर सिंह धुन्ता की अपनी थी और इसे जीतने के बाद भी वह चुप नहीं बैठे। उन्होंने ठान लिया कि समाज का जो भी वर्ग साक्ष्यों के अभाव में सिस्टम के चक्रव्यूह में फंसा है, उनके लिए आरटीआइ वरदान साबित हो सकता है। उन्होंने वर्ष 2009 में आरटीआइ क्लब का गठन किया और आरटीआइ कार्यकर्ता के रूप में समाज के लिए सिस्टम से लड़ाई शुरू कर दी। करीब तीन साल पहले उन्होंने ऊधमसिंहनगर में एक फर्जी चिकित्सकों वाले अस्पताल के साक्ष्य प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के समक्ष रखे थे। इसके बाद अस्पताल को बंद कर दिया गया था। आरटीआइ के ऐसे तमाम उदाहरण और भी हैं, जिनमें अमर सिंह धुन्ता ने सिस्टम को उसकी खामी बताई और व्यवस्था सुधार के लिए बाध्य भी किया। 

धुन्ता की आरटीआइ से निकली राह 

-आतंकियों से लड़ते हुए अपनी एक टांग गंवाने वाले देहरादून निवासी रिटा. कर्नल सोबन सिंह दानू को राज्य सरकार ने जमीन देने का वादा किया था और इसके बाद भूमाफिया के दबाव में फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई। अमर सिंह धुन्ता ने आरटीआइ लगाकर फाइल खुलवाई और उन्हें जमीन आवंटित कराकर दम लिया। अब उन्हें जमीन पर कब्जा दिलाने की कार्रवाई चल रही है। 

-2007 में लंबे समय से वेतन न मिलने से पौड़ी के एक शिक्षा मित्र ने आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में विभाग के पांच अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज कर खानापूर्ति कर ली गई थी। धुन्ता ने आरटीआइ से साक्ष्य जुटाए और विभाग को शिक्षा मित्र के आश्रितों को उनका वेतन दिलाने के लिए बाध्य किया। 

-जल संस्थान में पानी साफ करने के केमिकल की खरीद के फर्जीवाड़े का खुलासा किया। 

-देहरादून में टीवी के केबल से उलझकर एक छात्र की मौत हो गई थी, इन दिनों अमर सिंह धुन्ता छात्र के माता-पिता को मुआवजा दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंडः छात्रवृत्ति घोटाले की दोबारा सीबीआइ जांच की सिफारिश

यह भी पढ़ें: अब एसआइटी से कराई जाएगी टीडीसी बीज घोटाले की जांच

यह भी पढ़ें: बीज घोटाले के आरोपी अधिकारियों की गिरफ्तारी पर रोक


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.