जल की हर बूंद सहेजने को संग खड़े हुए जलप्रहरी, दैनिक जागरण के वेबिनार में जलप्रहरियों ने साझा किए अपने अनुभव
मैदानी क्षेत्रों में जहां भूजल सुलभ है वहां भूजल पर निर्भरता 80 फीसद तक बढ़ गई है और दोहन के अनुरूप रीचार्ज की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा। पर्वतीय क्षेत्रों में जहां झरनों व सतह पर मिलने वाले अन्य जल स्रोतों पर ही प्यास बुझाने का जिम्मा है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। Water Conservation मैदानी क्षेत्रों में जहां भूजल सुलभ है, वहां भूजल पर निर्भरता 80 फीसद तक बढ़ गई है और दोहन के अनुरूप रीचार्ज की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा। इसी तरह, पर्वतीय क्षेत्रों में जहां झरनों व सतह पर मिलने वाले अन्य जल स्रोतों पर ही प्यास बुझाने का जिम्मा है, वहां स्रोत संवर्धन हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। तमाम स्रोत 90 फीसद तक सूख गए हैं। भविष्य पर छा रहे इस संकट को समझते हुए दैनिक जागरण परिवार ने 'सहेज लो हर बूंद' मुहिम शुरू की है। इस मुहिम के तहत आमजन को जागृत किया जा रहा है। सरकारी मशीनरी को उसकी भूमिका याद दिलाई जा रही है। साथ ही जो लोग लंबे समय से जलप्रहरी के रूप में शांतभाव से अपना काम कर रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है। ऐसे जलप्रहरियों को जागरण अपनी मुहिम से भी जोड़ रहा है। इसी कड़ी में देहरादून में शुक्रवार को दैनिक जागरण के पटेल नगर स्थित कार्यालय में आयोजित वेबिनार में गढ़वाल मंडल के तमाम जलप्रहरियों ने अपने अनुभव साझा किए और सुझाव भी दिए। प्रस्तुत हैं वेबिनार के प्रमुख अंश।
शुरुआत मैदानी क्षेत्र से करते हैं। यहां पानी के लिए सर्वाधिक निर्भरता भूजल पर है। दोहन के अनुरूप भूजल रीचार्ज भी होता रहे, इसके लिए 125 वर्गमीटर और इससे अधिक के कवर्ड एरिया पर बनने वाले भवन में रेन वाटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संग्रहण) का प्रविधान किया गया है। मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) भी इसी शर्त पर भवन का नक्शा पास करता है। विषय विशेषज्ञ जलप्रहरियों के मुताबिक एमडीडीए तमाम अवैध निर्माण पर चालान तो करता है, मगर रेन वाटर हार्वेस्टिंग की पड़ताल नहीं की जाती। जब दून में यह स्थिति है तो समझा जा सकता है कि प्रदेश के अन्य क्षेत्रों का हाल कैसा होगा। इससे इतर दून में जलप्रहरियों के कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं, जो न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग कर रहे हैं, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। वेबिनार में बल दिया गया कि इस तरह के व्यक्तिगत प्रयास हर स्तर पर किए जाएं।
पर्वतीय क्षेत्रों में भूजल सुलभ नहीं है, लिहाजा निर्भरता सतह पर मिलने वाले झरने आदि पर ही रहती है। रीचार्ज की व्यवस्था नहीं होने और स्रोत संवर्धन के अभाव में यहां नागरिकों को पेयजल के लिए कई किलोमीटर की दूरी तक नापनी पड़ती है। जलप्रहरियों ने बताया कि वह व्यक्तिगत स्तर पर किस तरह गड्ढे खोदकर बारिश के पानी को सहेज रहे हैं। चाल-खाल बना रहे हैं। पौधारोपण कर रहे हैं और हर वर्ग के व्यक्तियों को इससे जोड़कर जल संरक्षण के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय कर रहे हैं। इसके सकारात्मक परिणाम भी दिख रहे हैं और पानी के स्रोतों को नया जीवन मिलने लगा है। जल प्रहरियों ने बताया कि उन्होंने किस तरह विकासनगर, ऋषिकेश, मसूरी, उत्तरकाशी, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग आदि क्षेत्रों में जल स्रोतों का संरक्षण व संवर्धन किया। इसके अलावा जलप्रहरियों ने सुझाव दिए कि किस तरह ग्राम पंचायतों को जल संरक्षण से प्रत्यक्ष रूप से जोड़कर तस्वीर बदली जा सकती है। विशेषकर जल संरक्षण की दिशा में वर्ष 1954 से काम कर रहे भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान ने बताया कि जल संरक्षण की परियोजना की निगरानी स्थानीय समुदाय अपने हाथ में लें। वहीं, एमडीडीए ने भरोसा दिलाया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर अभियान चलाया जाएगा। जिस भवन में इसकी व्यवस्था नहीं होगी, उसे कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा।
जलप्रहरियों के सुझाव
- ग्राम पंचायतों की विकास की योजनाओं में जल संरक्षण के कार्यों का समावेश जरूरी है। इस दिशा में बेहतर काम करने वाली पंचायतों को पुरस्कृत किया जाए।
- ग्राम पंचायतवार जल संरक्षण समितियां गठित कर बारिश के पानी को सहेजकर जल स्रोतों को रीचार्ज किया जाए। विशेषकर भावी पीढ़ी को इससे जोड़कर उन्हें जिम्मेदार बनाया जाए।
- जल संरक्षण हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है। पारंपरिक ज्ञान को समाहित कर जल स्रोतों का संरक्षण किया जाए।
- जल संरक्षण के साथ जल उत्पादन की तरफ भी ध्यान देने की जरूरत है।
- जल संरक्षण से पहले वन संरक्षण किया जाए और उन पौधों को रोपा जाए जो बारिश के पानी को सहेजने में सक्षम हैं।
- रेन वाटर हार्वेस्टिंग के साथ ग्रे वाटर हार्वेस्टिंग पर भी काम करने की जरूरत है। आसपास व्यर्थ बह रहे बारिश के पानी को बागीचे तक लाने की जरूरत है और कपड़े धोने व नहाने में प्रयुक्त पानी का भी दोबारा इस्तेमाल करने के उपाय जरूरी हैं।
- उसी स्थान पर टैंक बनवाए जाएं, जहां पानी बेहतर है। मनरेगा के तहत जल संरक्षण का जिम्मा स्थानीय व्यक्तियों को दिया जाए। इससे ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा और वह पूरी तन्मयता के साथ अपने क्षेत्र के जल स्रोतों का संरक्षण कर पाएंगे।
- जहां भी बारिश का पानी तेज गति से बह जाता है, वहां चाल-खाल बनाई जाए। हर ऊंचे स्थान पर पानी को रोकने के लिए गड्ढे खोदे जाएं।
- प्रत्येक घर पानी का किफायती इस्तेमाल करे, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। जल्द स्पैक्स संस्था इस दिशा में नागरिकों को जागरूक करने के लिए एक एप लांच करने जा रही है।
- रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए संबंधित विकास प्राधिकरण ने जो नियम बनाए हैं, उनका कड़ाई से पालन कराया जाए। नक्शा पास करने के बाद प्राधिकरण के कार्मिक भौतिक सत्यापन भी करें।
- हर व्यक्ति सार्वजनिक स्थलों पर लीकेज के रूप में होने वाली पानी की बर्बादी से निगाह फेरने के बजाय उसे बचाने का प्रयास करे। जल स्रोतों को अतिक्रमणमुक्त करने के प्रयास किए जाएं।
- हर खेत में मेंडबंदी की जाए, ताकि पानी के तेजी से बहने की जगह स्रोतों को रीचार्ज करने के काम में लाया जा सके।
- जमीन के ऊपर ढांचा खड़ा कर टैंक बनाने की जगह जमीन में गड्ढा खोदकर तालाब बनाए जाएं।
यह जलप्रहरी जुड़े वेबिनार से
- 1-प्रकाश सिंह डसीला, उत्तरकाशी (रिलायस फाउंडेशन के प्रतिनिधि)
- 2-धन सिंह घरिया, चमोली (सामाजिक कार्यकर्त्ता)
- 3-उमाशंकर बिष्ट, चमोली (सामाजिक कार्यकर्त्ता)
- 4-डॉ. पंकज नौटियाल, उत्तरकाशी (कृषि विज्ञानी)
- 5-अरविंद जियाल, नई टहरी (ग्राम पंचायत तुगणी के प्रधान)
- 6-डॉ. कृष्ण कुमार उप्रेती, ऋषिकेश (सीडा संस्था)
- 7-सुधीर कुमार सुंद्रियाल, कोटद्वार (सामाजिक कार्यकर्त्ता)
- 8-डॉ. कलगराम चौहान, विकासनगर (जल संरक्षण में 24 वर्ष की उम्र से सक्रिय)
- 9-अनिल नेगी, देहरादून (रिटायर्ड जीएम, ओएनजीसी)
- 10-डॉ. बृजमोहन शर्मा, देहरादून (सचिव स्पैक्स)
- 11-डीएस राणा, देहरादून (अध्यक्ष, उत्तराखंड इंजीनियर एंड आर्किटेक्ट एसोसिएशन)
- 12-एचसीएस राणा, देहरादून (अधीक्षण अभियंता, एमडीडीए)
- 13-बांके बिहारी, देहरादून (वरिष्ठ विज्ञानी, भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान)
- 14-सतेंद्र भंडारी, रुद्रप्रयाग (प्राथमिक शिक्षक)
- 15-कमलेश गुरुरानी, उत्तरकाशी (रिलायंस फाउंडेशन के प्रतिनिधि)
- 16-अनिल शर्मा, मसूरी (वाइस प्रेसीडेंट, जेपी रेजीडेंसी)
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