कड़वे वचन देने वाले मुनि का स्वभाव था बेहद ही नम्र
भले ही मुनि तरुण सागर अपने कड़वे प्रवचन के लिए जाने जाते रहे हों, लेकिन उनका स्वभाव असल में बेहद ही नम्र था।
देहरादून, [जेएनएन]: मुनि तरुण सागर में ऐसी कई बातें थीं, जो उन्हें अन्य जैन मुनियों से भिन्न करती थी। उनके प्रवचन अक्सर परिवार, समाज के उन विषयों से जुड़े होते थे, जिन पर ज्यादातर लोग बात नहीं करते थे। उनसे रूबरू हो चुके उनके अनुयायियों का कहना है कि मुनि तरुण सागर भले ही अपने कड़वे प्रवचन के लिए जाने जाते रहे, लेकिन वह स्वभाव से बेहद नम्र थे। वहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तरुण सागर महाराज के असामयिक महासमाधि लेने पर शोक जताया है।
मुनि तरुण सागर के असामयिक महासमाधि की खबर सुनकर दून के जैन समाज में शोक की लहर है। सभी ने मुनि को श्रद्धांजलि अर्पित की। दिगंबर जैन समाज देहरादून के अध्यक्ष नेमचंद जैन ने बताया कि मुनि तरुण सागर वर्ष 1999 के दिसंबर माह में दून आए थे। यहां डेढ़ माह के प्रवास के दौरान उन्होंने मांस निर्यात के विरोध में दिल्ली में होने वाले सम्मेलन की भूमिका तैयार की थी। उसके बाद एक जनवरी 2000 को उन्होंने दिल्ली के लाल किले के पास मैदान में मांस निर्यात के विरोध में भारतीय जैन मिलन कार्यक्रम को संबोधित किया था।
भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय महामंत्री नरेश चंद्र जैन ने कहा कि जब मुनि तरुण दून आए थे तो उन्होंने सबसे पहले पुरानी जेल में कैदियों को संबोधित किया था। इसके बाद टाउन हॉल, नगर निगम में भी उनका सर्वधर्म सम्मेलन हुआ था, जिसमें जैन, हिंदू, मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोगों और धर्मगुरुओं को आमंत्रित किया था। बताया कि मुनि हमेशा कहते थे कि मृत्यु को शोक नहीं महोत्सव के रूप में मनाना चाहिए। मृत्यु के बाद व्यक्ति अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाता, इसलिए जीवन को धर्म और परोपकार की दिशा में लगाना चाहिए। जैन समाज की पदाधिकारी मंजू जैन ने बताया कि जैन धर्मशाला में मुनि के प्रवचन के दौरान गैर जैन समाज के लोगों की भी भारी भीड़ उमड़ती थी। बताया कि उनसे मुलाकात के दौरान उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के आदर्शों की जो सीख उन्हें दी थी, वह आज भी उनके जहन में ताजा है। हिंदू, मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोगों और धर्मगुरुओं को आमंत्रित किया था।
बताया कि मुनि हमेशा कहते थे कि मृत्यु को शोक नहीं महोत्सव के रूप में मनाना चाहिए। मृत्यु के बाद व्यक्ति अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाता, इसलिए जीवन को धर्म और परोपकार की दिशा में लगाना चाहिए। जैन समाज की पदाधिकारी मंजू जैन ने बताया कि जैन धर्मशाला में मुनि के प्रवचन के दौरान गैर जैन समाज के लोगों की भी भारी भीड़ उमड़ती थी। बताया कि उनसे मुलाकात के दौरान उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के आदर्शों की जो सीख उन्हें दी थी, वह आज भी उनके जहन में ताजा है।
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