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इतिहास नहीं बनेंगी मशरूम की कानुडिया-नाग छतरी प्रजाति, वन विभाग कर रहा संरक्षण

उत्‍तराखंड में जंगली मशरूम की गोभी-कानुडिया, नाग छतरी जैसी तमाम प्रजातियों पर संकट के बादल भी मंडरा रहे हैं। वन विभाग जंगली मशरूम की करीब 12 प्रजातियों को सहेजेगा।

By Edited By: Published: Thu, 30 Aug 2018 03:01 AM (IST)Updated: Thu, 30 Aug 2018 10:45 AM (IST)
इतिहास नहीं बनेंगी मशरूम की कानुडिया-नाग छतरी प्रजाति, वन विभाग कर रहा संरक्षण
इतिहास नहीं बनेंगी मशरूम की कानुडिया-नाग छतरी प्रजाति, वन विभाग कर रहा संरक्षण

देहरादून, [केदार दत्त]: जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड के जंगल मशरूम विविधता को भी जाने जाते हैं। जंगली मशरूम की कुछ प्रजातियों को खाने के उपयोग में लाया जाता है तो कुछ का व्यावसायिक महत्व है।वर्षाकाल में अनियंत्रित दोहन के साथ विभिन्न कारणों से जंगली मशरूम की 'गोभी-कानुडिया', 'नाग छतरी' जैसी तमाम प्रजातियों पर संकट के बादल भी मंडरा रहे हैं। इसे देखते हुए वन विभाग की अनुसंधान विंग ने जंगली मशरूम की करीब 12 प्रजातियों को सहेजने की ठानी और चकराता वन प्रभाग के अंतर्गत देववन रिसर्च सेंटर में किए गए प्रयास सफल भी हुए हैं। वहां मशरूम की विभिन्न प्रजातियों को नर्सरी में प्राकृतिक माहौल देकर उगाया गया है। वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक भविष्य में अन्य क्षेत्रों में भी जंगली मशरूम की प्रजातियों के संरक्षण को प्रयास किए जाएंगे। इसके पीछे मंशा ये है कि यदि आने वाले दिनों में ये जंगलों से खत्म भी हो गईं तो इनका वजूद बना रहेगा।

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गोभी-कानुडिया 

नौ हजार फीट की ऊंचाई पर चकराता वन प्रभाग की कनासर रेंज के देववन ब्लाक में देवदार के जंगलों में पाया जाता है यह मशरूम। यह सामान्यत: गोभी के आकार में खिलता है। स्थानीय भाषा में इसे कानुडिया नाम से जाना जाता है। पौष्टिकता से लबरेज इस जंगली मशरूम को लोग वर्षाकाल में सब्जी के रूप में प्रयोग में लाते हैं। यही नहीं वर्षाकाल में इसे इकट्ठा कर सुखा लिया जाता है और फिर सर्दियों में उपयोग में लाया जाता है। वहीं, घुमंतू चरवाहे इसे व्यावसायिक उपयोग में भी लाते हैं।

नाग छतरी 

गोभी-कानुडिया की भांति नाग छतरी मशरूम भी देवदार के जंगलों में बहुतायत में मिलता है। हल्का लाल और पीलापन लिए नाग के फन के आकार में उगने के कारण इसे नाग छतरी नाम मिला। यह मशरूम खाने के उपयोग में नहीं लाई जाती, लेकिन इसका व्यावसायिक महत्व है। यह आजीविका का साधन भी है। असल में नाग छतरी मशरूम का इस्तेमाल लैदर पॉलिस में होता है। यह दो से ढाई हजार रुपये प्रति किलो बिकता है।

लदियों च्यूं 

खरसू व मोरू के वनों में पाई जाने वाली लाल मशरूम को जौनसार क्षेत्र में 'लदियों च्यूं' कहा जाता है। लाल रंग का होने के कारण यह प्राकृतिक शोभा बढ़ाता है। प्रचलित धारणा है कि यह बेहद जहरीला होता है और इसे छूने में भी सतर्कता बरती जाती है। 

खूनी मशरूम 

नरेंद्रनगर वन प्रभाग कद्दूखाल क्षेत्र में गहरा लाल व सफेद रंग लिए इस मशरूम को 'खूनी मशरूम' नाम मिला है। यह भी देवदार, खरसू व मोरू के वनों में पाया जाता है। यह जहरीला मशरूम है। इसके तोड़कर हाथ पर लगाने से खून का रंग प्रदर्शित होता है।

पिट छतरी 

गहरा पीला रंग और सफेदधारी युक्त पिट छतरी मशरूम भी जहरीला माना जाता है। इसके चलते इसे छूने अथवा तोड़ने से भी परहेज किया जाता है।

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