पूर्व मुख्यमंत्रियों को गुपचुप सुविधाओं से बुद्धिजीवियों में उबाल
पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास चालक समेत मुफ्त वाहन इच्छित सुविधाएं अध्यादेश के जरिए दिए जाने की तोड़ ढूंढ निकाली गई है। सरकार के उक्त कदम से बुद्धिजीवियों में उबाल है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। पूर्व मुख्यमंत्रियों के बड़े सियासी रुआब का ही असर देखिए, सरकार ने उन्हें सुविधाएं देने के मामले में घुटने टेक दिए। हाईकोर्ट की सख्त हिदायत और आदेश को दरकिनार करते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास, चालक समेत मुफ्त वाहन, इच्छित सुविधाएं अध्यादेश के जरिए दिए जाने की तोड़ ढूंढ निकाली गई है। इस मामले में जनाक्रोश को भांपते हुए मंत्रिमंडल ने गुपचुप तरीके से पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं अनुमन्य करने के अध्यादेश के मसौदे को मंजूरी दी। इसे मंजूरी के लिए राजभवन भेजा जाएगा।
उधर, सरकार के उक्त कदम से बुद्धिजीवियों में उबाल है। उन्होंने खराब माली हालत और विकास कार्यों में धन के संकट से जूझ रहे उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्रियों पर सुविधाएं लुटाने का पुरजोर विरोध किया है। जनता के पैसे से पूर्व मुख्यमंत्रियों को उक्त सुविधाएं देने के विरोध में याचिकाकर्ता व रुलक संस्था के संस्थापक पदमश्री अवधेश कौशल ने सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि अध्यादेश लागू होने पर हाईकोर्ट, और जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सरकार के इस कदम को विरोध किया है। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सिर्फ जीवन जीने के लिए आवश्यक सुविधाएं ही देनी चाहिए, राजनैतिक सुविधाओं का औचित्य समझ से परे है।
पूर्व मुख्यमंत्रियों के मामले में पलड़ा भारी होते ही भाजपा सरकार ने भी पलटी मार दी। पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास समेत तमाम सुविधाएं नहीं देने और फिर सरकारी आवास का किराया बाजार दर से लेने के हाईकोर्ट के आदेश की तोड़ सरकार ने ढूंढऩे में देर नहीं लगाई। इसके लिए मंत्रिमंडल ने बीती 13 अगस्त को गोपनीयता बरतते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों पर मेहर बरसाते हुए अध्यादेश पर मुहर लगा दी। राज्य बनने के बाद एक भी पूर्व मुख्यमंत्री सुविधाओं का लाभ पाने से वंचित न रहे, इस वजह से अध्यादेश को नौ नवंबर, 2000 यानी राज्य बनने के दिन से लागू करने का निर्णय लिया गया है। मंत्रिमंडल के इस फैसले पर राजभवन की मुहर लगना शेष है। सोमवार तक अध्यादेश को राजभवन भेजा जा सकता है। राजभवन की मुहर के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा।
हालांकि, इस अध्यादेश को आगामी विधानसभा सत्र में सदन के पटल पर रखा जाएगा। विधानसभा से पारित होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं की व्यवस्था राज्य में स्थायी रूप से लागू किया जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। उधर, पूर्व मुख्यमंत्रियों को उक्त सुविधाएं देने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता पद्मश्री अवधेश कौशल ने कहा कि सरकार का यह फैसला हठधर्मितापूर्ण है। इस फैसले का हश्र उत्तर प्रदेश की पिछली अखिलेश यादव सरकार के फैसले की तरह होगा। अध्यादेश लागू किए जाने के खिलाफ हर स्तर पर विरोध किया जाएगा। हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी जाएगी। जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगाई जाएगी।
उधर, पिछली कांग्रेस सरकार में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं देने को अध्यादेश लाने से गुरेज करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद सुविधाएं बहाल करने के फैसले से सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा। सरकार को अगर पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं देनी ही थीं तो केवल जीवन जीने के लिए आवश्यक सुविधाएं ही देनी चाहिए। इस लिहाज से देखा जाए तो ज्यादा से ज्यादा आवासीय सुविधा ही दी जानी चाहिए।
यूं दी जाएंगी पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं:
- सरकारी किराया दर पर आवास
- चालक समेत मुफ्त वाहन
- मिलेगा ओएसडी या पीआरओ
- सुरक्षा गार्ड
- टेलीफोन व अन्य सुविधाएं
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