आजादी में जौनसार-बावर का अहम रोल, 1945 को हंसत-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे ये वीर सपूत
Independence day 2021 आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के वीर शहीदों की भी अहम भूमिका रही है। इनमें प्रमुख नाम है क्यावा के वीर शहीद केसरीचंद का जिन्होंने आजादी की खातिर अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए।
सवांद सूत्र, साहिया(देहरादून)। Independence day 2021 आजादी की लड़ाई में उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के वीर शहीदों की भी अहम भूमिका रही है। इनमें प्रमुख नाम है क्यावा के वीर शहीद केसरीचंद का, जिन्होंने आजादी की खातिर अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। उनकी स्मृति में चकराता के रामताल गार्डन में हर साल तीन मई को लगने वाले मेले में हजारों लोग जुटते हैं।
वीर केसरीचंद ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर मात्र 24 साल की उम्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठा लिए थे। एक नवंबर 1920 को चकराता तहसील के क्यावा गांव में पंडित शिवदत्त के घर में जन्मे केसरीचंद में देशभक्ति का जज्बा बचपन से ही था। गांव में प्राथमिक शिक्षा के बाद केसरी चंद को 12वीं तक की पढ़ाई के लिए डीएबी कॉलेज देहरादून भेजा गया। केसरी पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर दस अप्रैल 1941 को रायल इंडियन आर्मी सर्विस कोर में बतौर सूबेदार भर्ती हो गए।
29 अक्टूबर 1941 को वीर केसरीचंद को द्वितीय विश्व युद्ध के मोर्चे पर भेज दिया गया। इसी बीच नेताजी के आह्वान पर वह आजाद हिंद फौज की जंग में कूद गया। आजाद हिंद फौज 1944 में वर्मा होते हुए मणिपुर की राजधानी इम्फाल पहुंची तो अंग्रेजी हुकूमत ने केसरीचंद को इम्फाल का पुल उड़ाते हुए पकड़ लिया। उन पर देशद्रोह का मुकदमा चला और 12 फरवरी 1945 को फांसी की सजा सुना दी गई, लेकिन केसरीचंद ने अंग्रेजी हुकूमत से दया की भीख नहीं मांगी और हंसते-हंसते तीन मई 1945 को फांसी के फंदे पर झूल गए।
जौनसार-बावर के अन्य शहीद
पंजिया गांव निवासी स्वतंत्रता सेनानी वीर फुनकू दास देश को आजाद कराने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ जेल में रहे। इसी तरह ककाड़ी निवासी कलीराम को आजादी की लड़ाई में साहिया से पकड़कर जेल में डाल दिया गया था।
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