इस राज्य में हर बच्चा पैदा होते ही 32 हजार का कर्जदार, पढ़ें खबर
करीब 15 साल पहले कर्ज की जिस 3377.75 करोड़ रुपये की गठरी के साथ उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया, उसका आकार करीब 90 फीसद बढ़कर वर्तमान वित्तीय वर्ष तक 32 हजार 310 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
सुमन सेमवाल, देहरादून। करीब 15 साल पहले कर्ज की जिस 3377.75 करोड़ रुपये की गठरी के साथ उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया, उसका आकार करीब 90 फीसद बढ़कर वर्तमान वित्तीय वर्ष तक 32 हजार 310 करोड़ रुपये (सरकारी अनुमान के अनुसार) तक पहुंच गया है।
राज्य पर 13 स्रोतों का कर्ज चढ़ा है और इसका आंकड़ा वर्तमान वित्तीय वर्ष में कुल मिलने वाले राजस्व से भी 6532 करोड़ रुपये अधिक है। प्रदेश के कर्ज की यह तस्वीर आरटीआइ कार्यकर्ता अजय कुमार की ओर से मांगी गई जानकारी में सामने आई।
आरटीआइ दस्तावेजों के अनुसार राज्य गठन से एक दिन पहले आठ नवंबर 2000 को उत्तराखंड के हिस्से पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश से 3185.91 करोड़ रुपये मिले थे। साथ ही 3377.75 करोड़ रुपये का कर्ज भी विरासत में मिला।
यदि कर्ज को कुल प्राप्त धनराशि से घटा दें तो तब प्रदेश को चलाने के लिए 191.84 करोड़ रुपये ही सरकार की झोली में थे। जाहिर है 13 जनपदों की मशीनरी और उस समय के अनुसार 85 लाख से अधिक आबादी को सुविधाएं देने के लिए कर्ज लेना जरूरी था।
हालांकि, कर्ज से संसाधनों को विकसित करने की जगह इसे एक आदत बना लिया गया। इसके नतीजे सामने हैं। वर्तमान में राज्य के हर व्यक्ति पर औसतन 32 हजार 33 रुपये का कर्ज है। लगातार कर्ज लेने और उसे चुकाने की धीमी रफ्तार के चलते ही कर्ज की गठरी का बोझ साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है।
इस संबंध में वित्त सचिव अमित नेगी ने कहा कि प्रदेश के कर्ज लेने और चुकता करने की स्थिति अभी आरबीआइ गाइडलाइन की सीमा के भीतर है। हालांकि, प्रदेश की उम्मीदें काफी बढ़ी हैं, जिसकी पूर्ति के लिए सरकार को और धनराशि की जरूरत है। इसके लिए केंद्र सरकार से लगातार पत्राचार भी चल रहा है।
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