Leopard Attack: बीस साल में गुलदार के हमले में 34 मौत और 127 लोग घायल, लगातार बढ़ रहा संघर्ष
राज्य बनने के बाद से गुलदार(तेंदुआ) के हमले में टिहरी जिले में 34 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं जबकि 127 लोग घायल हुए हैं। जिले में मानव-गुलदार संघर्ष लगातार बढ़ रहा है लेकिन वन विभाग इसे रोकने के लिए ठोस कार्ययोजना नहीं बना पा रहा है।
नई टिहरी, जेएनएन। Leopard Attack उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से गुलदार(तेंदुआ) के हमले में टिहरी जिले में 34 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि 127 लोग घायल हुए हैं। जिले में मानव-गुलदार संघर्ष लगातार बढ़ रहा है, लेकिन वन विभाग इसे रोकने के लिए ठोस कार्ययोजना नहीं बना पा रहा है। बात इसी साल की करें तो यहां गुलदार के हमले में चार लोगों की मौत हुई है।
टिहरी जिले में मानव-वन्यजीव घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। उत्तराखंड बनने के बाद से अबतक यहां गुलदार के हमले में 34 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। पिछले साल टिहरी में गुलदार के हमले का एक भी मामला नहीं था, लेकिन इस वर्ष 2020 में अभी तक चार लोग जान गंवा चुके हैं और आठ लोग घायल हुए हैं। जवाबी कार्यवाही में वन विभाग के शिकारी दल ने इस वर्ष दो गुलदारों को ढेर किया है, जबकि एक गुलदार को पिंजरे में पकड़ा है।
वन्यजीव विशषज्ञों का कहना है कि गुलदार इंसानी बस्तियों के पास रहने वाला जानवर है। जंगलों में इसके खाने की कमी और बीमार होने के कारण ही गुलदार इंसानों पर हमले कर रहा है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। प्रभागीय वनाधिकारी टिहरी कोको रोसे ने बताया कि गुलदार के हमले इस साल बढ़े हैं इसे रोकने के लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है। ग्रामीणों को भी जागरुक होना होगा।
सफल रहा था लिविंग विद लैपर्ड फार्मूला
महाराष्ट्र के संजय गांधी नेशनल पार्क में सफल रहा 'लिविंग' विद लेपर्ड' फार्मूला के तहत पिछले साल टिहरी में भी कस्तल और पौखाल गांव में इसे लागू किया गया था। इसके तहत गुलदार (तेंदुए) और मानव के बीच 'दुश्मनी' खत्म करने के प्रयास किए गए जो काफी सफल भी रहे। पिछले साल टिहरी में गुलदार के हमले की किसी की भी जान नहीं गई। तितली ट्रस्ट के संजय सोंधी ने बताया कि महाराष्ट्र में संजय गांधी नेशनल पार्क से सटे क्षेत्रों में गुलदारों ने नाक में दम किया हुआ था। इसे देखते हुए वहां गुलदारों के साथ रहने का फार्मूला लागू किया गया। इसके तहत लोगों को जागरूक करने के साथ ही गांवों में रैपिड रिस्पॉन्स टीमें गठित की गईं। इन टीमों को गुलदार को भगाने और पकड़ने के लिए प्रशिक्षित किया गया। ग्रामीणों के सहयोग से ये कोशिशें रंग लाईं और वहां गुलदार के हमलों की घटनाओं में खासी कमी आ गई थी।
ये उठाए गए कदम
-ग्रामीणों को किया जागरूक
-गुलदार से बचने के तौर तरीके बताए
-जानवरों के व्यवहार के बारे में जानकारी
-बच्चों को बनाया चाइल्ड एंबेसडर
-रैपिड रिस्पॉन्स टीमों का गठन
वर्ष-मौत-घायल
2001 -1- 3
2002 -2 -14
2003 -2 -4
2004 -1 -0
2005 -0 -7
2006 -0 -4
2007 -4 -7
2008 -1 -7
2009 -2 -12
2010 -2 -11
2011 -3 -8
2012 -3 -4
2013 -0 -6
2014 -2 -8
2015 -2 -7
2016 -2 -10
2017 -1 -0
2018 -2 -6
2019 -0 -0
2020 -4 -8
2020 में गुलदार के हमले
3 अगस्त - देवल गांव में आठ साल की बच्ची की मौत
8 अगस्त- मलेथा में एक युवती को बनाया निवाला
10 अगस्त- घर में सोई महिला पर किया हमला
15 अगस्त - मलेथा में ध्वजारोहण में चार लोगों पर हमला
17 अगस्त- देवप्रयाग फरस्वाड़ी में महिला पर हमला
22 अगस्त- नरेंद्रनगर डागर गांव में ग्रामीण पर हमला
11 अक्टूबर - सात साल की बच्ची को मारा
13 अक्टूबर- पांच साल के बच्चे को मारा
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