आइआइटी रुड़की प्रबंधन ने कहा, मित्रों एप से नहीं कोई वास्ता
विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म पर मित्रों एप के स्वदेशी होने पर सवाल खड़े किए जाने लगे तो आइआइटी रुड़की प्रबंधन ने इस पर अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी।
देहरादून, जेएनएन। टिक-टॉक को टक्कर दे रहे 'मित्रों' एप के स्वदेशी होने पर विवाद छिड़ गया है। इसे पाकिस्तानी सॉफ्टवेयर डेवलपर से खरीदा गया एप बताया जा रहा है, जबकि पूर्व में यह बात सामने आई थी कि इसे आइआइटी रुड़की की कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग ब्रांच के छात्र रहे शिवांक अग्रवाल ने तैयार किया है। विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म पर एप के स्वदेशी होने पर सवाल खड़े किए जाने लगे तो आइआइटी रुड़की प्रबंधन ने इस पर अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी।
बताया जा रहा है कि एप का संस्थान से सीधे तौर पर कोई वास्ता नहीं है। चूंकि मीडिया में आई खबरों में इस एप से आइआइटी रुड़की का नाम आया था, इस पर संज्ञान लेते हुए प्रबंधन ने 2011 में पासआउट शिवांक से फोन पर संपर्क साधा। मीडिया प्रभारी ने शिवांक से हुई बातचीत के हवाले से बताया कि वह बेंगलुरु में हैं और एक कंपनी में जॉब कर रहे हैं। शिवांक ने उन्हें बताया कि वह जिस कंपनी में कार्यरत हैं, उससे अलग हटकर वह एप संबंधी कार्य कर रहे हैं।
शिवांक ने उन्हें यह भी बताया कि मीडिया में इस एप के बारे जो भी छपा है, उस बारे में उनकी किसी से कोई बात ही नहीं हुई। आइआइटी के उप निदेशक एम परीदा ने स्पष्ट किया कि एप से उनका कोई वास्ता नहीं है और शिवांक अग्रवाल इस पर अधिक जानकारी देने से इन्कार कर रहे हैं। आइआइटी प्रबंधन ने पासआउट छात्र का मोबाइल नंबर साझा करने में भी असमर्थता जाहिर की।
यह भी पढ़ें: Coronavirus: सार्स-कोविड-2 के इलाज के लिए एंटी वायरल की पहचान को शोध करेगा आइआइटी
उधर, दून निवासी साइबर फोरेंसिक एक्सपर्ट व डाटा रिसर्चर अंकुर चंद्रकात का दावा है कि मित्रों एप का मूल नाम टिक-टिक है और इसे पाकिस्तानी डेवलपर से खरीदा मगया। उन्होंने कहा कि खरीदने के बाद एप के कोड में भी बदलाव नहीं किया गया और उसी रूप में सिर्फ लोगो बदलकर उपयोग कराया जा रहा है।
यह भी पढ़ें: दो प्रोफेसरों ने इजाद की सेंसर युक्त सेनिटाइजर मशीन, पढ़िए पूरी खबर