मनुष्य में देहाभिमान पतन का कारण: मोरारी बापू
प्रख्यात संत मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने कहा कि मनुष्य में देहाभिमान पतन का कारण बनता है। संत को छोड़ कोई देहाभिमान से मुक्त नहीं है। सत्य व ज्ञान मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह जहां भी मिले तुरंत प्राप्त कर लेना चाहिए।
ऋषिकेश। प्रख्यात संत मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने कहा कि मनुष्य में देहाभिमान पतन का कारण बनता है। संत को छोड़ कोई देहाभिमान से मुक्त नहीं है। सत्य व ज्ञान मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह जहां भी मिले तुरंत प्राप्त कर लेना चाहिए।
परमार्थ निकेतन स्वर्गाश्रम में आयोजित श्रीराम कथा के छठे दिन कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि मनुष्य को देह को नहीं, बल्कि देहाभिमान को काटना चाहिए। व्यक्ति के अंदर मैं और अहं की भावना ही देहाभिमान है। महर्षि दधिची ने असुरों के नाश के लिए अपनी देह तक का दान कर दिया था।
उन्होंने कहा कि जीवन में शस्त्र की जगह शास्त्र को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। स्वधर्म की रक्षा में शस्त्र उठाना उचित है। स्वधर्म के रूप में हमारी सेना को भी यह कदम उठाना पड़ता है। संत मोरारी बापू ने कहा कि 21 वीं सदी में भगवान करे कोई भूखा न रहे।
किसी को अभाव के कारण उपवास की नौबत न आए। जीवन में जो भी दान किया जाए वह छल मुक्त होना चाहिए। धर्म के नाम पर भी छल नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी को ठेस लगे तो हमारी आंखों में आंसू आने चाहिए। गांधी ने हमेशा इस बात को महसूस किया है।
श्रीरामचरितमानस में 25 से अधिक स्थानों पर परमारथ शब्द के उल्लेख की चर्चा करते हुए उन्होंने साधक, साधना, सूर्य उपासना, चरित्र की सुचिता व उदारता आदि विषयों पर श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन किया। मोरारी बापू ने राष्ट्र के धर्मतंत्र और आध्यात्मिक जगत का आह्वान किया कि वह समाज के सबसे आखिरी आदमी को पूरा स्नेह व सम्मान दे।
धर्मतंत्र को समाज की अंतिम और अपरिहार्य आशा बताते हुए मोरारी बापू ने कहा कि सत्य व ज्ञान मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। युवाओं का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति बनना सबके लिए संभव नहीं है, लेकिन हर भारतीय को राष्ट्र पुत्र तो बनना ही चाहिए।
परिवारवाद हर युग हर काल में परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व सभी के लिए नुकसानदेह है। सबको देश, समाज, संस्कृति के प्रति निष्ठावान बनने की जरूरत है। उन्होंने इतिहासपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
मोरारी बापू ने सूर्य साधना को युग साधना बताया। कहा प्रकाश एवं प्राण के विस्तारक सूर्य को संपूर्ण लोक का पोषक कहा गया है। सभी श्रद्धालु नित्य सूर्य की उपासना करें। साधक की गति सम्यक रहनी चाहिए। उसके जीवन में जटिलता की बजाय सहजता होनी जरूरी है।इस दौरान परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती, दिल्ली से आए स्वामी रसायनी बाबा, समाजसेवी रामदेव शर्मा आदि उपस्थित थे।
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