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जंगल की बात : उत्‍तराखंड में बढ़ सकता है मानव-वन्यजीव संघर्ष

उत्तराखंड के जंगलों में जिस तरह से आग धधक रही है उसने बेचैनी बढ़ा दी है। आग से वन संपदा को तो क्षति पहुंच ही रही बेजबान भी बिदकने लगे हैं। इनके आबादी के नजदीक आने से मनुष्य से टकराव बढऩे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 16 Apr 2021 03:53 PM (IST)Updated: Fri, 16 Apr 2021 03:53 PM (IST)
जंगल की बात : उत्‍तराखंड में बढ़ सकता है मानव-वन्यजीव संघर्ष
पहाड़ हो या मैदान, सभी जगह वन्यजीवों के हमलों की घटनाएं सुर्खियां बन रही हैं।

केदार दत्त, देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों में जिस तरह से आग धधक रही है, उसने बेचैनी बढ़ा दी है। आग से वन संपदा को तो क्षति पहुंच ही रही, बेजबान भी बिदकने लगे हैं। इनके आबादी के नजदीक आने से मनुष्य से टकराव बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। सूरतेहाल चिंता बढ़ने लगी है। वैसे भी समूचा उत्तराखंड मानव-वन्यजीव संघर्ष से जूझ रहा है। पहाड़ हो या मैदान, सभी जगह वन्यजीवों के हमलों की घटनाएं सुर्खियां बन रही हैं। अब अगर जंगल की आग से बचने को कोई हिंसक जानवर गांव अथवा आबादी के इर्द-गिर्द पहुंचा तो खतरा बढ़ सकता है। वन्यजीव के साथ ही मनुष्यों के लिए भी। जाहिर है कि इस पहलू पर गंभीरता से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। हालांकि, आग के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में वनकर्मियों के मुस्तैद रहने का दावा है, लेकिन जनसमुदाय को भी इस दृष्टिकोण से सजग व सतर्क रहना होगा।

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वाच टावर हो रहे कारगर

वनों की आग पर नियंत्रण के लिए वन महकमे के साथ ही राष्ट्रीय व राज्य आपदा मोचन बल, पुलिस, होमगार्ड, राजस्व विभाग और स्थानीय ग्रामीण मुस्तैदी से जुटे हुए हैं। इस लिहाज से कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में जंगलों पर निगरानी रखने के लिए बनाए गए 42 वाच टावर की पहल काफी मददगार साबित हो रही है। इन वाच टावरों के माध्यम से न सिर्फ संरक्षित क्षेत्र पर नजर रखी जा रही, बल्कि कहीं भी धुंआ नजर आने पर तुरंत वनकर्मियों की टीम आग बुझाने पहुंच रही हैं। यही नहीं, वाच टावर में चौबीसों घंटे वनकर्मियों की तैनाती है। टावरों में वन कर्मियों के विश्राम के लिए भी व्यवस्था की गई है। इस प्रयोग के सफल रहने के मद्देनजर अब अन्य संरक्षित और आरक्षित वन क्षेत्रों में भी इसे विस्तार देने की तैयारी है। प्रतिकरात्मक वन रोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण में इसका प्रविधान किया जा रहा है।

बांज बचाने की भी चुनौती

बांज यानी ओक एक ऐसा पेड़ है, जिसे उत्तराखंड की लोकसंस्कृति में खास तवज्जो मिली है। यह स्वाभाविक भी है। बांज के पेड़ जल संरक्षण में सहायक होते हैं, मगर बारिश न होने से सूखे जैसे हालात पैदा होने से इन पर भी खतरा अब अधिक बढ़ गया है। पांच हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित बांज के जंगलों में भी नमी कम हुई है। जिस तरह से जंगल सुलग रहे हैं और पिछले एक पखवाड़े से आग की घटनाओं में वृद्धि हुई है, उसने बांज को लेकर चिंता बढ़ा दी है। वह यह कि यदि बांज के जंगलों में आग फैली तो इस पर नियंत्रण करने में नाकों चने चबाने पड़ेंगे। उत्तराखंड के हेड आफ फारेस्ट फोर्स ने भी वन संरक्षकों को अग्नि नियंत्रण के मद्देनजर भेजे विशेष निर्देशों में यह आशंका जताई है। साथ ही अगले डेढ़ माह में खास सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं।

अग्नि सुरक्षा दस्तों की पहल

यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। जंगलों में आग से हर साल वन संपदा के साथ ही पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुंच रही है। लंबे इंतजार के बाद सरकार को इसका अहसास हुआ है। इस मर्तबा आग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए अब दावानल से निबटने के लिए नए सिरे से रणनीति पर मंथन किया जा रहा है। यह आवश्यक भी है। इसी कड़ी में अग्निशमन विभाग की तरह वन महकमे में अग्नि सुरक्षा दस्तों के गठन पर गहनता से विमर्श चल रहा है। कोशिश ये है कि प्रथम चरण में ब्लाक व न्याय पंचायत स्तर पर इन दस्तों का गठन किया जाए और स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर बतौर फायर फाइटर इनमें शामिल किया जाए। इसके लिए उन्हें वनों में आग पर काबू पाने को आवश्यक उपकरण समेत अन्य जरूरी साजोसामान के साथ ही सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी।

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