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उत्तराखंड में मनुष्य भी महफूज रहेंगे और बेजुबान भी, जानिए क्या उठाए जा रहे हैं कदम

वन विभाग ने मानव-वन्यजीव के बीच टकराव के कारणों का गहन अध्ययन शुरू किया है। तो कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों और हाथियों की धारण क्षमता का आकलन कराने का निर्णय भी लिया है। इससे संघर्ष को थामने के लिए कारगर योजना बनाने में मदद मिलेगी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 04:45 PM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 04:45 PM (IST)
उत्तराखंड में मनुष्य भी महफूज रहेंगे और बेजुबान भी, जानिए क्या उठाए जा रहे हैं कदम
उत्तराखंड में मनुष्य भी महफूज रहेंगे और बेजुबान भी।

देहरादून, केदार दत्‍त। कहते हैं समय के साथ चलने में समझदारी है, लेकिन यहां तो वन महकमे को यह समझने में 20 साल का वक्त लग गया। अब जाकर विभाग को अहसास हुआ है कि बाघ, गुलदार, हाथी, भालू जैसे वन्यजीवों का मनुष्य के साथ टकराव बढ़ा है। खैर, देर से ही सही, मगर अब विभाग ने टकराव के कारणों का गहन अध्ययन शुरू किया है तो कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों और हाथियों की धारण क्षमता का आकलन कराने का निर्णय भी लिया है। जाहिर है कि इन अध्ययनों की रिपोर्ट सामने के बाद जहां मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामने के लिए कारगर योजना बनाने में मदद मिलेगी, वहीं बेजबानों के लिए बेहतर वासस्थल पर भी फोकस हो सकेगा। यानी, मनुष्य भी सुरक्षित रहेंगे और वन्यजीव भी।

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विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाला उत्तराखंड वन्यजीव विविवधता के लिए भी मशहूर है और यह उसे दुनियाभर में विशिष्टता भी प्रदान करते हैं। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है और वह है वन्यजीवों व स्थानीय समुदाय के बीच बढ़ता टकराव। इसी वर्ष के अब तक के आंकड़ों को देखें तो वन्यजीवों के हमलों में राज्यभर में अब तक 36 व्यक्तियों की जान जा चुकी है, जबकि घायलों की संख्या 135 के आसपास है। ऐसा नहीं है कि यह संघर्ष अचानक उपजा हो। राज्य गठन से पहले से यहां मानव-वन्यजीव संघर्ष बना हुआ था और अब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा है। खासकर, गुलदार तो आफत बनकर टूट रहे हैं। साथ ही यमुना से लेकर शारदा नदी तक के क्षेत्र में हाथियों की धमाचौकड़ी पेशानी पर बल डाले हुए है।

 

हालांकि, राज्य गठन के बाद से ही मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामने के मद्देनजर बातें तो हर स्तर पर हुईं और योजनाएं भी बनीं, मगर मजबूत इच्छाशक्ति के अभाव में ये आकार नहीं ले पाईं। यदि ऐसा होता तो मनुष्य और वन्यजीवों के बीच छिड़े टकराव पर काफी हद तक काबू पा लिया गया होता। अब जाकर वन महकमे को भी इसका अहसास हुआ है। लिहाजा, उसने गुलदारों और हाथियों के व्यवहार में आई आक्रामकता के मद्देनजर इसका अध्ययन शुरू कराया है। इसके लिए एक-एक गुलदार और हाथी पर रेडियो कॉलर लगाया गया है और आने वाले दिनों में 15 गुलदार और 10 हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाकर उनके व्यवहार का अध्ययन किया जाएगा।

कॉर्बेट और राजाजी की धारण क्षमता का पता चलेगा

राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी का कुनबा राज्य में खूब फल-फूल रहा है। बाघों की संख्या चार सौ पार पहुंच चुकी है, जबकि हाथियों की दो हजार के पार। जाहिर है कि इस पर रश्क किया जा सकता है, लेकिन यह भी देखा जाना आवश्यक है कि जिस हिसाब से बाघ व हाथी बढ़ रहे हैं, उस लिहाज से हमारे जंगल इन्हें धारण करने की क्षमता रखते हैं या नहीं। ऐसे में भविष्य की स्थिति को देखते हुए इसका अध्ययन भी जरूरी है। इसी के मद्देनजर वन्यजीव महकमे ने कॉर्बेट और राजाजी में बाघ, हाथियों की धारण क्षमता का अध्ययन कराने का निश्चय किया है।

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महकमा गंभीरता से उठा रहा कदम

राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग के मुताबिक मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक योजनाओं पर काम चल रहा है। वन सीमा से सटे क्षेत्रों में सोलर फेंसिंग, हाथी रोधी दीवार व खाई का निर्माण, गांवों में विलेज वालेंटियर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन समेत अन्य कदम उठाए जा रहे हैं। दीर्घकालिक उपायों के तहत गुलदार और हाथियों के व्यवहार पर अध्ययन चल रहा है। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए प्रभावी कार्ययोजना बनाने में मदद मिलेगी।

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