Move to Jagran APP

ममता का गला घोंट रहे वन मानुष, पिता कर रहा जन्मे शिशु की हत्या

मेघालय की गॉरो हिल्स में हूलॉक गिब्बन के व्यवहार में खौफनाक परिवर्तन आया।नए मेहमान के जन्म लेते ही पिता दिल पर पत्थर रख उसे जमीन पर पटक देता है। इससे प्राणी वैज्ञानिक चिंतित हैं।

By BhanuEdited By: Published: Thu, 26 Oct 2017 10:07 AM (IST)Updated: Thu, 26 Oct 2017 09:32 PM (IST)
ममता का गला घोंट रहे वन मानुष, पिता कर रहा जन्मे शिशु की हत्या
ममता का गला घोंट रहे वन मानुष, पिता कर रहा जन्मे शिशु की हत्या

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: मेघालय की गॉरो हिल्स में हूलॉक गिब्बन अपनी ममता का गला घोंट रहे हैं। नए मेहमान के जन्म लेते ही पिता दिल पर पत्थर रख उसे जमीन पर पटक देता है। परिवार से प्यार करने वाले वन मानुषों के व्यवहार में आया यह हैरतंगेज बदलाव यूं ही नहीं है। स्वेच्छाचारी मानुष के आगे वन मानुष विवश है। सिमटते जंगल और घटते भोजन पर इनकी नई पीढ़ी कैसे जिंदा रहेगी। वन मानुषों ने इस सवाल का यह निर्मम हल ढूंढ निकाला है। साल दर साल अस्तित्व की लड़ाई हार रहे वन मानुषों की संख्या पिछले 25 वर्ष में 90 फीसद कम हो गई है। 

loksabha election banner

शोध में सामने आया कड़वा सच

दुनिया में औलाद से अजीज कुछ नहीं, इंसान हो या जानवर संतान सुख का भाव सबमें एक है। लेकिन इंसानी दुनिया में मची विकास की होड़ से विनाश की कगार पर पहुंच चुके वन मानुष जिंदगी की आस छोड़ चुके हैं। उन्हें अहसास हो चुका है कि भविष्य के अंधकूप में उनकी संतान संघर्ष के लायक भी नहीं रह जाएगी। 

व्यवहार में आए इस परिवर्तन का असर उनकी प्रजनन दर पर भी पड़ा है। देहरादून स्थित प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (जेडएसआइ) विभाग की टीम के हूलॉक गिब्बन पर किए गए शोध में यह हैरत में डालने वाला खुलासा हुआ।

प्राणी विज्ञानी डॉ. जगदीश प्रसाद सती बताते हैं कि मेघालय के जंगलों में किए गए इस अध्ययन के निष्कर्ष से साफ है कि तेजी से कट रहे जंगलों से वन मानुषों का रहन-सहन भी प्रभावित हुआ है। 

चिंता का सबब

डॉ. सती बताते हैं कि हूलॉक गिब्बन की प्रजनन की रफ्तार घटने से उनके अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गए हैं। यहां तक कि वे अपने बच्चों के कातिल बन बैठे हैं। जन्म लेते ही नर नवजात की पटक कर हत्या कर देता है। वर्ष 1990-1991 में सती ने पहली बार अपनी आंखों के सामने इस निर्मम दृश्य को देखा और इसे कैमरे में भी कैद किया। 

शिशु के जन्म लेते ही पिता ने उसे मां की गोद से छीना और जमीन पर पटक कर मार दिया। वर्ष 2012 तक डॉ. सती ने हूलॉक गिब्बन के आचार-व्यवहार पर बारीकी से काम किया और आदिवासियों से भी इनके व्यवहार में आए विपरीत बदलाव की खबरें सुनीं। 

उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि घटते जंगल और भोजन के संकट को देखते हुए ही हूलॉक अपनी भावी पीढ़ी को विकट संसार के हवाले करने को तैयार नहीं। इन वन मानुषों की यह दशा पर्यावरणीय चुनौती की ओर इशारा कर रही है। समय रहते सचेत हो जाने की आवश्यक्ता है।

70 हजार से 600 पर सिमटे

डॉ. सती अब रिटायर हो चुके हैं और उनकी यह शोध रिपोर्ट पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में ठंडे बस्ते में पड़ी है। यही कारण है कि वर्ष 1990 में असम में इनकी संख्या लगभग 130 थी और अब यह घटकर 80 से भी कम हो गई है। जबकि समूचे उत्तर-पूर्व में 25 साल पहले करीब 70 हजार के आसपास वन मानुष थे, जो अब 600 के आसपास सिमटकर रह गए हैं। सरकार की ओर से इनके संरक्षण की योजना तैयार की जानी है, लेकिन इस पर विलंब बना हुआ है।

शोद केंद्र सरकार को भेजा 

प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण विभाग, देहरादून की प्रमुख डॉ. अर्चना बहुगुणा के मुताबिक यह शोध केंद्र सरकार के सुपुर्द किया जा चुका है। सरकार की ओर से हूलॉक गिब्बन के संरक्षण की कार्ययोजना तैयार की जानी है। विभाग को इस मामले में किसी तरह के निर्देश जारी होते हैं तो आगे और अध्ययन कराया जाएगा। 

हूलॉक गिब्बन

-हूलॉक गिब्बन वन मानुषों की एक प्रजाति है। ये परिवार में और अपने प्राकृतिक वास में रहते हैं। 

-गिब्बन का प्राकृतिक वास त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल, असम के अलावा बांग्लादेश, म्यांमार व चीन के कुछ भागों तक फैला है। 

-बच्चे पैदा करने में सामान्यत: दो साल का अंतर।

-मादा गिब्बन का रंग भूरा, नर का रंग काला व बच्चे का रंग दूधिया होता है।

-मानव में 46 गुणसूत्र होते हैं, जबकि वन मानुषों में इनकी संख्या 44, 52, 38 व 50 होती है।

-औसत उम्र 30 साल

यह भी पढ़ें: केदारनाथ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों में पुलिस ने उगाया दो क्विंटल आलू

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड की इस मशरूम गर्ल को मिला नारी शक्ति पुरस्कार


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.